window.location = "http://www.yoururl.com"; Mountbatten Plan & Indian Independence Act, 1947 | माउण्टवेटेन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

Mountbatten Plan & Indian Independence Act, 1947 | माउण्टवेटेन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

 माउन्टबेटन योजना (Mountbatten Plan)

लार्ड वैवेल के बाद लार्ड माउण्टबेटन 23 मार्च 1947 ई० को भारत के वायसराय नियुक्त किये गये। उन्हें ब्रिटिश सरकार का आदेश था कि वे 30 जून 1948 ई० के पहले भारतीयों के हाथ में सत्ता का हस्तान्तरण करा दें। उन्हें वायसराय बनाने का उद्देश्य यह था कि भारत-विभाजन का कार्य शीघ्र से शीघ्र सम्पन्न हो। उन्होंने अपना काम बड़ी तत्परता से शुरू कर दिया। भारत आने के उपरान्त वे इस निष्कर्ष पर पहुॅचे कि एक संयुक्त भारत के आधार पर मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता होना असंभव है। अतः विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से उन्होंने बातचीत शुरू कर दी। मुस्लिम लीग भारत-विभाजन के प्रस्ताव पर डटी हुई थी और माउण्टबेटन का भी झुकाव इस तरफ था। कांग्रेस भी इस समय तक इस निष्कर्ष पर पहुॅच चुकी थी कि भारत का विभाजन अनिवार्य है। लार्ड माउण्टबेटन स्थिति का अध्ययन कर ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल से परामर्श करने लन्दन गये। वहॉ से लौटकर 3 जून 1947 ई० को उन्होंने एक योजना सार्वजनिक रूप से घोषित कर दी। इस योजना को ही ‘‘माउण्टबेटन योजना‘‘  के नाम से जाना जाता है।

माउण्टबेटन योजना की मुख्य बातें -

माउण्टबेटन योजना की मुख्य बातें निम्नलिखित थी-

1. ब्रिटिश सरकार की यह इच्छा है कि भारत का शासन शीध्र ही ऐसी सरकार को सौंप दिया जाय जो जनता की इच्छा के अनुसार निर्मित हुई हो।

2. सरकार यह नही चाहती कि वर्तमान संविधान सभा के कार्य में किसी भी प्रकार से बाधा पड़े।

3. साथ ही यह भी स्पष्ट है कि संविधान सभा द्वारा निर्मित आसन्न व्यवस्था को देश के उन भागों पर नहीं थोपा जा सकता जो कि इसे स्वीकार करने के इच्छुक न हो।

4. बंगाल और पंजाब के बारे में यह कहा गया कि इन दोनों प्रान्तों की व्यवस्थापिकाएॅ ‘हिन्दू बहुल क्षेत्र की प्रतिनिधि‘ तथा ‘मुस्लिम बहुल क्षेत्र की प्रतिनिधि‘ के रुप में अलग-अलग बैठकें करे। यदि दोनों क्षेत्रों के प्रतिनिधि यह तय करें कि सम्बद्ध प्रान्त का विभाजन न हो तो विभाजन नहीं किया जायेगा परन्तु यदि एक भी क्षेत्र के प्रतिनिधि विभाजन चाहते है तो विभाजन कर दिया जायेगा।

5. ऐसी स्थिति में विभाजन को क्रियान्वित के लिए एक आयोग का गठन किया जायेगा। 

6. सिन्ध द्वारा अपने भाग्य का निर्णय अपनी विधानसभा के माध्यम से किया जायेगा।

7. सिलहट तथा उत्तरी-पश्चिमी सीमाप्रान्त का फैसला जनमत संग्रह द्वारा किया जायेगा।

8. बलूचिस्तान द्वारा प्रतिनिधिकारी संस्थाओं की बैठक के माध्यम से अपने भविष्य का फैसला किया जायेगा।

9. देशी रियासतें किसी अधिराज्य में सम्मिलित होने या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के लिए स्वतंत्र होंगी।

10. भारत तथा पाकिस्तान को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता छोड़ने का अधिकार होगा।

लार्ड माउण्टबेटेन ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार भारत की सत्ता को हस्तांतरित करने के लिए जून 1948 तक प्रतीक्षा नहीं करेगी। यह कार्य 1947 में ही सम्पन्न कर लिया जायेगा।

मुस्लिम लीग ने माउण्टबेटेन योजना को 9 जून 1947 को ही स्वीकार कर लिया। शुरू में कांग्रेस विभाजन सम्बन्धी प्रस्ताव के कारण इस योजना के विरुद्ध थी लेकिन 14-15 जून 1947 को दिल्ली में अखिल भरतीय कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इसकी पुष्टि कर दी गई। पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत ने प्रस्ताव की पुष्टि के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुये कहा कि- आज हमें पाकिस्तान या आत्महत्या में से एक को चुनना है। देश की स्वतंत्रता और मुक्ति पाने का यही एकमात्र रास्ता है। इससे भारत में एक शक्तिशाली संघ की स्थापना होगी। आज विकल्प है तीन जून की योजना को स्वीकार करना या आत्महत्या करना।‘‘ मौलाना आजाद ने कहा कि - “इस घोषणा के प्रकाशन के बाद भारत की एकता को बनाये रखने की सारी आशा समाप्त हो गयी। यह पहला अवसर था कि मन्त्रिमण्डल मिशन-योजना को अस्वीकृत कर दिया गया और विभाजन को अधिकारिक रूप से स्वीकृत कर लिया गया।“ अन्ततः कांग्रेस ने भी वास्तविकता को स्वीकार करते हुये इस योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। 

मुस्लिम लीग और कांग्रेस द्वारा स्वीकार कर लेने के उपरान्त इसे तुरन्त क्रियान्वित कर दिया गया। पश्चिमी पंजाब और पूर्वी बंगाल ने पाकिस्तान में बने रहने का निर्णय लिया। यही निर्णय सिन्ध, बलूचिस्तान तथा असम के सिलहट जिले ने लिया। उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त के विलय के प्रश्न पर कांग्रेसी नेता खॉं अब्दुल गफ्फार खॉ का कहना था कि इस प्रश्न पर वोट न लिया जाय कि यह प्रान्त पाकिस्तान में शामिल हो या भारत में, पर उनकी बातों पर किसी ने ध्यान नही दिया। इसलिए खुदाई-खिदमतगारों ने जनमत संग्रह का बहिष्कार करने का निश्चय किया। जनमत संग्रह द्वारा उत्तरी-पश्चिमी सीमाप्रान्त ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना मत प्रकट किया। खॉं अब्दुल गफ्फार खॉं ने विभाजन को कांग्रेस की ओर से विश्वासघात माना और अनुभव किया कि - ‘‘खुदाई खिदमतगारों को भेंड़ियों के सामने फेंका जा रहा है।‘‘ विभाजन को लागू करने के लिए 7 जून 1947 को एक विभाजन समिति का गठन किया गया। इसके अतिरिक्त सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में एक सेना आयोग की नियुक्ति की गई जिसका कार्य बंगाल और पंजाब के विभाजित क्षेत्रों की सीमा को निर्धारित करना था। हिन्दू महासभा ने भी भारत विभाजन की योजना की कटु आलोचना की।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 -

माउण्टबेटेन योजना की प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता विधेयक प्रस्तुत किया गया और दो सप्ताह के अन्दर ही ब्रिटिश संसद ने इसे पारित कर दिया। भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम पारित होने पर वे सारे बंधन भी समाप्त हो गये जो कैबिनेट मिशन योजना द्वारा संविधान सभा पर लगाये गये थे। इसके मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे -

1. अधिनियम में 15 अगस्त, 1947 से भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र अधिराज्यों के गठन का प्राविधान था।

2. पाकिस्तान में शामिल प्रदेशों अर्थात पश्चिम पंजाब, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त, सिंध और पूर्वी बंगाल को छोड़कर शेष भाग भारतीय अधिराज्य क्षेत्र होगा। इसमें समूचा ब्रिटिश भारत शामिल होगा। इन दोनों अधिराज्यों (भारत तथा पाकिस्तान) की सीमाओं का निर्धारण सीमा आयोग द्वारा किया जाएगा।

3. प्रत्येक अधिराज्य के विधानमण्डल को अपने अधिराज्य के लिए कानून बनाने का पूरा अधिकार होगा। 15 अगस्त, 1947 के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कोई भी अधिनियम किसी भी अधिराज्य में वैध नहीं होगा। संक्षेप में भारत पर ब्रिटिश संसद का क्षेत्राधिकार उस तारीख से समाप्त हो जाएगा।

4. 15 अगस्त, 1947 से ब्रिटिश सरकार की ब्रिटिश भारत की सरकार के प्रति कोई जिम्मेवारी नहीं रहेगी और उसकी महामहिम सरकार तथा भारतीय (देशी) रियासतों के शासकों या जनजातीय क्षेत्रों या किसी प्राधिकारी के बीच सम्पन्न हुई सभी संधियाँ और करार समाप्त हो जाएँगे।

5. दोनों अधिराज्यों तथा प्रान्तों का संचालन “जहाँ तक संभव हो सके“ 1935 के अधिनियम के अनुसार उस समय तक चलाया जाएगा तब जक कि संबंधित संविधान सभा इसके लिए अन्य कोई संवैधानिक व्यवस्था तय नहीं कर लेती।

6. नए अधिराज्यों के बीच सशस्त्र सेनाओं तथा सिविल सेवाओं के विभाजन का भी प्रावधान किया गया। प्रत्येक अधिराज्य की अपनी सशस्त्र सेनाओं और सिविल सेवाओं पर अधिकार होगा।

अधिनियम का महत्व -

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम,1947 ने भारतीय इतिहास में ब्रिटिश शासन के अध्याय को समाप्त कर दिया और स्वतंत्र भारत के नये अध्याय को शुरू किया। प्रधानमंत्री एटली ने ब्रिटिश लोकसभा में कहा था कि यह घटनाओं की लम्बी तांता की चरम सीमा है। लार्ड सैमूयल ने कहा था कि यह इतिहास में एक अनोखी घटना है - बिना युद्ध के क्रान्ति। यह घटना अन्य दृष्टिकोणों से भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है। इस अधिनियम से भारत की सदियों पुरानी दासता समाप्त हो गयी और ब्रिटिश राज का अन्त हो गया लेकिन देश के विभाजन ने राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर दिया। इसने भारतीयों के समक्ष देशी रियासतों को स्वतंत्रता देकर एक कठिन समस्या खडी कर दी। भारतीयों के सामने न केवल नये संविधान के निर्माण की समस्या खडी हुई अपितु उनपर देश के शासन संचालन का महान उत्तरदायित्व भी आ पडा।

देशी रियासतों का एकीकरण-

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अन्तर्गत देशी रियासतों से ब्रिटिश प्रभुता 15 अगस्त, 1947 को समाप्त हो गई थी। सिद्धान्ततः इसका तात्पर्य यह था कि अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ देने पर राज्यों की अपनी प्रभुसत्ता होगी। तथापि, कांग्रेस ने भारत में स्वतंत्रता की घोषणा करके शेष भारत से अलग रहने वाले किसी राज्य के अधिकार को नहीं माना। स्वतंत्रता प्राप्ति से एक माह से कम अवधि में ही देशी रियासतों की समस्या ने एक अन्य गंभीर चिन्ता उत्पन्न कर दी। वल्लभ भाई पटेल तथा वी0 पी0 मेनन को ही यह श्रेय जाता है कि उन्होंने सफलतापूर्वक देशी रियासतों का एकीकरण किया। सरदार पटेल जैसे राजनीतिज्ञों ने रियासतों के राजाओं को प्रेरित किया कि भारतीय संघ में शामिल होना ही उनके हित में है। लम्बी बातचीत के बाद, हैदराबाद, जूनागढ़ कश्मीर के अतिरिक्त, भौगोलिक रूप ’भारत के साथ सम्बद्ध देशी रियासतों के सभी शासकों ने 15 अगस्त, 1947 से पूर्व भारत के साथ विलय समझौते (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर दिए।

जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान के साथ विलय चाहता था लेकिन उसके विरुद्ध में हुए जन विद्रोह के कारण उसे भाग कर पाकिस्तान चला जाना पड़ा। जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, तब अक्टूबर, 1947 में कश्मीर के महाराजा ने कश्मीर का भारत के साथ विलय कर दिया। हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई की गई तथा आन्तरिक अराजकता के दबाव में आकर उसे विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।

विभाजित स्वतंत्रता -

7 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना भारत से करॉची चले गए। पाकिस्तान की संविधान सभा ने 11 अगस्त को हुई अपनी बैठक में उन्हें राष्ट्रपति चुन लिया और तीन दिन बाद उन्हे पाकिस्तान के गवर्नर जनरल की शपथ दिलाई गई।

14 अगस्त, 1947 की रात को भारतीय संघ की संविधान सभा की बैठक हुई। स्वतंत्रता के अवसर पर संविधान सभा के सदस्यों के मध्य प्रभावशाली भाषण देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा - “अर्द्ध रात्रि के समय जब दुनिया सो रही होगी, भारत को नवजीवन और स्वतंत्रता मिलेगी। इतिहास में कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जो विरले ही आते हैं, जब हम प्राचीनता से नवीनता की ओर अग्रसर होते हैं, जब एक युग समाप्त होता है और चिरकाल से दमित राष्ट्रीय आत्मा मुखर हो उठती है। यह उपयुक्त ही है कि इस अवसर पर हम भारत तथा भारत के लोगों की सेवा और यहाँ तक कि मानवता के अपेक्षाकृत अधिक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पण का प्रण लें।“

इसके बाद संविधान सभा ने लॉर्ड माउण्टबैटन को भारत के अधिराज्य का प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया। 15 अगस्त की प्रातः जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में नए मंत्रिमण्डल को शपथ दिलाई गई। जो स्वतंत्रता हमें मिली वह केवल विभाजित स्वतंत्रता थी। इसके साथ ही साम्प्रदायिक घृणा और क्रूरता के रूप में एक बड़ी मानवीय त्रासदी प्रारम्भ हुई, जिसका कोई सादृश्य भारत के लिखित इतिहास में नहीं मिलता। यह कहना ही पर्याप्त होगा कि भारत को अपनी स्वतंत्रता के लिए एक भारी कीमत चुकानी पड़ी। दूसरी तरफ भारतीयों को संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण का अधिकार दिया गया। लगभग आठ महीने के बहस के उपरान्त कुल मिलाकर 2 बर्ष 11 महीने और 18 दिन के अथक परिश्रम के बाद 26 नवम्बर 1949 तक संविधान निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया। इस तरह भारत से लगभग दो सौ पुराना अंग्रेजी राज्य समाप्त हो गया और भारत में एक नवीन स्वर्ण युग का सूत्रपात हुआ।


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