window.location = "http://www.yoururl.com"; Battle of Plassey, 1757 | प्लासी का युद्ध

Battle of Plassey, 1757 | प्लासी का युद्ध

 


विषय-प्रवेश (Introduction) :

प्लासी का युद्ध आधुनिक भारत के इतिहास की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना के रुप में जानी जाती है। 1707 ई0 में मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद शक्तिशाली एवं विशाल मुगल साम्राज्य कमजोर होकर छिन्न-भिन्न हो गया क्योंकि औरंगजेब के उत्तराधिकारी इस योग्य नही थे कि वे उस विशाल साम्राज्य को अक्षुण बनाए रखते। अतः शीध्र ही मुगल साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। अनेक छोटे छोटे राज्यों ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर लिया। तात्कालिन समय में बंगाल का शासक मुर्शिदकुली खॉ था। उसने भी परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए बंगाल में स्वतंत्र शासन की स्थापना की। मुर्शिदकुली खॉं के बाद अलीवर्दी खॉं बंगाल का नबाव हुआ। वह एक योग्य एवं कुशल शासक था अतः जबतक वह बंगाल का शासक था तबतक किसी प्रकार की समस्या बंगाल में उत्पन्न नही हुई। लेकिन 10 अप्रैल 1756 ई0 को अलीवर्दी खॉ की मृत्यु के बाद उसकी छोटी पुत्री का पुत्र शिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा। चूॅकि वह एक अयोग्य तथा अक्षम शासक था अतः नबाब बनते ही उसे अनेक समस्याओं ने घेर लिया। इन्ही समस्याओ के कारण प्लासी का युद्ध हुआ।

प्लासी के युद्ध के कारण :

प्लासी के युद्ध के निम्नलिखित कारण बताए जा सकते है-

शिराजुद्दौला की आन्तरिक समस्या -

शिराजुद्दौला जिस समय बंगाल की गद्दी पर बैठा उसके समक्ष अनेक आन्तरिक समस्याएॅं थी। अलीवर्दी खॉ की बड़ी पुत्री घसीटी बेगम तथा उसका पुत्र निरन्तर नबाब के विरुद्ध विद्रोह करने की चेष्टा कर रहे थे। पूर्णिया के नबाब तथा अंग्रेज भी बंगाल पर अधिकार करना चाहते थे। अंग्रेज निरन्तर ऐसे कार्य कर रहे थे जिससे भडककर नबाब उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही करे और वे बंगाल पर अधिकार करने की इच्छा पूरी कर सके। नबाब के समक्ष एक महत्वपूर्ण समस्या यह भी थी कि उसके अनेक दरबारी इन षडयंत्रकारियों के साथ शामिल थे । अतः कुल मिलाकर सिंहासन पर बैठते समय नबाब शिराजुद्दौला की स्थिती अत्यन्त कमजोर थी।

अंग्रेजो द्धारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग -

मुगल सम्राट फर्रुखशियर ने अंग्रेजों को मात्र 3000 रु0 वार्षिक में बंगाल, बिहार, और उडीसा मेेेेेेें व्यापार करने की अनुमति प्रदान की थी। यह सुविधा मात्र अंग्रेजों के लिए थी लेकिन अंग्रेजो ने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए अन्य व्यापारियों से धन लेकर व्यापार करने का अनुमति पत्र देना प्रारम्भ किया। इस कारण बंगाल के नबाब को अत्यधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ी। अन्ततः इसे रोकने के उद्देश्य से 04 जून 1756 ई0 को नबाब ने काशीमबाजार तथा 20 जून 1756 ई0 को कलकत्ता  पर आक्रमण किया और उसे कब्जे में ले लिया। एक तरफ जबकि अंग्रेज बंगाल पर अधिकार करना चाहते थे तो दूसरी तरफ कलकत्ता  ही उनके हाथ से निकल गया। अतः अंग्रेजो ने शक्तिशाली सेना भेजकर नबाब शिराजुद्दौला का दमन करने का निर्णय लिया जिसका स्वाभाविक परिणाम प्लासी के युद्ध के रुप में सामने आया।

कालकोठरी की घटना -

जिस समय नबाब शिराजुद्दौला ने कलकत्ता  पर अधिकार किया उस समय कहा जाता है कि उसने 146 अंग्रेजों को 18X14 फुट के एक छोटे से कमरे में बन्द कर दिया। अगली सुबह जब दरवाजा खोला गया तो 146 में से 123 अंग्रेजों की मृत्यु हो गई थी। अंग्रेजां को जब इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होने अपने आप को अपमानित महसूस किया और नबाब का दमन करने का निर्णय लिया। इस प्रकार इस कालकोठरी की घटना ने प्लासी के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यद्यपि आधुनिक भारतीय इतिहासकार तथा अनेक युरोपीय इतिहासकार जैसे- जे0 एच0 लिटिल आदि ने इस घटना को काल्पनिक तथा मनगढन्त बताया है लेकिन इसमें कोई सन्देह नही है कि उस समय इस घटना का अत्यधिक प्रचार किया गया जिसके दूरगामी परिणाम हुए तथा प्लासी के युद्ध को प्रारम्भ करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंग्रेजो द्धारा कलकत्ता  पर अधिकार का प्रश्न -

काशीमबाजार तथा कलकत्ता  में अंग्रेजी पराजय तथा कालकोठरी की घटना से क्रोधित होकर नबाब को सबक सिखाने के लिए लार्ड क्लाइब के नेतृत्व में एक शक्तिशाली थल सेना तथा वाटसन के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जलसेना कलकत्ता  भेजी गई। इस समय नबाब शिराजुद्दौला पूर्णिया के नबाब शौकत जंग से संघर्ष में व्यस्त था। अतः मानिकचंद के नेतृत्व में उसने एक शक्तिशाली सेना अंग्रेजों का सामना करने के लिए भेजा। दुर्भाग्यवश मानिकचंद अंग्रेजां से मिल गया और रणभूमि से मैदान छोड़ कर भाग गया। फलस्वरुप जनवरी 1757 ई0 में कलकत्ता  पर पुनः अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया। इस समय लार्ड क्लाइव ने अत्यन्त कूटनीति का सहारा लेकर नबाब शिराजुद्दौला से 09 फरवरी 1757 को अलीनगर की संधि कर ली। 1756 ई0 में बंगाल के नवाब ने कलकत्ता  को जीतने के पश्चात उसका नाम अलीनगर रख दिया था। अलीनगर की संधि की प्रमुख धाराएॅ निम्नलिखित है -

1. मुगल सम्राट ने जितनी सुविधाएॅ कम्पनी को दे रखी थी वे पुनः स्वीकार की जाय।
2. बिहार और उड़ीसा में बिना कोई कर दिये अंग्रेजों को व्यापार करने की अनुमति दी जाय।
3. नबाब शिराजुद्दौला द्धारा जब्त किया हुआ धन /सामान लौटाया जाय तथा अंग्रेजों के नुकसान की भरपाई के लिए नकद रकम दी जाय। 
4. अंग्रेजों को कलकत्ता की किलेबंदी की अनुमति दी जाए। 
5. अंग्रेजां को सिक्के ढालने का अधिकार दिया जाय।
6. इस संन्धि पत्र पर नबाब, उसके मंत्री तथा अन्य प्रमुख पदाधिकारी हस्ताक्षर करेगे।
7. अंग्रेज इस बात का वचन देगें कि जबतक नबाब शिराजुद्दौला इस संधि का उल्लंघन नही करेगा तबतक अंग्रेज नबाब के साथ शान्ति रखेगे। 

लार्ड क्लाइब द्धारा शिराजुद्दौला के विरुद्ध षड़यंत्र -

लार्ड क्लाइब निरन्तर नबाब के विरुद्ध षड़यंत्र कर रहा था। अलीनगर की संधि के पश्चात जब उसे शिराजुद्दौला और फ्रांसिसियों के मिलने का भय न रहा तो उसने बंगाल के शेष भू-भाग को अपने आधिपत्य में लेने का प्रयत्न किया। इस उद्देश्य से उसने अमीचन्द नामक व्यापारी की सहायता से शिराजुद्दौला के प्रमुख सेनापति मीरजाफर को अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया। 04 जून 1757 ई0 को दोनो के मध्य एक गुप्त संधि हुई जिसके प्रमुख शर्त निम्नलिखित है -

1. मीर जाफर को बंगाल का नबाब बनाया जायेगा।
2. मीर जाफर क्षतिपूर्ति के रूप मे अंग्रेजों को एक करोड़ रूपया देगा।
3. नबाब बनने के बाद मीरजाफर कलकत्ता  की किलेबन्दी का विरोध नही करेगा।

4. यदि मीरजाफर सभी शर्तो का पालन करेगा तो अंग्रेज उसकी सभी शत्रुओं से रक्षा करेंगें।

इस प्रकार लार्ड क्लाइब ने बंगाल पर अधिकार करने का अपना मार्ग प्रशस्त कर लिया। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि इस कार्य के लिए क्लाइब ने अमीचन्द को 30 लाख रू0 देने का वादा किया था लेकिन क्लाइब ने अमीचन्द को धोखा देकर पैसे देने से इन्कार कर दिया। उधर जून के मध्य तक शिराजुद्दौला को इस गुप्त सन्धि की सूचना मिल गई थी किन्तु नबाब ने मीरजाफर के खिलाफ कोई कार्यवाही नही की। इसके विपरीत उसने मीरजाफर से अनुरोध किया कि वे अंग्रेजों का साथ न दे। ऐसा करना नबाब शिराजुद्दौला की एक बड़ी भारी भूल थी।

इस सन्दर्भ में आर0 सी0 मजूमदार ने लिखा है कि - ’’यदि शिराजुद्दौला ने शीध्रता से कार्य किया होता और मीरजाफर को बन्दी बना लिया होता तो अन्य षड़यंत्रकारी स्वतः ही आतंकित हो जाते तथा षड़यंत्र पूर्ण रूप से असफल हो जाता लेकिन नबाब के साहस ने उसका साथ छोड़ दिया। किसी सख्त कार्यवाही के स्थान पर वह स्वयं मीरजाफर से भेट करने उसके निवास पर गया और उससे मिन्नते की।’’

महत्वपूर्ण घटनाक्रम -

इन षड़यंत्रो में सफल होने के बाद लार्ड क्लाईब शिराजुद्दौला पर आक्रमण करने का बहाना ढूॅढने लगा। इसके लिए उसने नबाब के समक्ष कुछ भड़काऊ शर्ते रखी। जैसे- यदि काई भारतीय कर्मचारी अंग्रेजों से किसी प्रकार का कोई कर मॉग दे तो उस कर्मचारी को दण्ड़ित करने का अधिकार अंग्रेजों को होगा। यदि किसी भारतीय पर अंग्रेजां का कोई कर हो तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी नबाब पर होगी। नबाब कलकत्ता  के एक मील तक अपनी सेना नही रख सकेगा। इसी प्रकार की कुछ अन्य भड़काऊ शर्ते नबाब के उपर थोपी गई। जब नबाब ने इन शर्तो को मानने से इनकार कर दिया तो क्लाईब ने शिराजुद्दौला पर यह आरोप लगाया कि वह अलीनगर की संधि का उल्लंघन कर रहा है। अतः लार्ड क्लाईब नें शिराजुद्दौला पर आक्रमण करने के लिए सेना के साथ प्रस्थान किया। दोनो तरफ की सेनाएॅ 22 जून 1757 ई0 को भागीरथी नदी के तट पर प्लासी के मैदान में आमने सामने आ खड़ी हुई। 23 जून को लार्ड क्लाईब ने आक्रमण किया। इसी समय मीरजाफर नबाब शिराजुद्दौला की एक बड़ी सेना के साथ मैदान से अलग हो गया। फलस्वरुप नबाब शिराजुद्दौला को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। बाद में उसे पटना जाते समय गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि नबाब की सेना में करीब पचास हजार सैनिक थे जबकि अंग्रेजी सेना में मात्र तीन हजार सैनिक थे फिर भी राबर्ट क्लाइब के कुशल निर्देशन में अन्ततः शिराजुद्दौला की पराजय हुई और बंगाल पर अंग्रेजों का अप्रत्यक्ष प्रभाव हो गया।

प्लासी के युद्ध का महत्व -

प्रभावों तथा महत्व के दृष्टिकोण से प्लासी का युद्ध आधुनिक भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है क्योकि इसने भारतीय इतिहास की दिशा को ही परिवर्तित कर दिया। सैन्य दृष्टिकोण से यद्यपि यह युद्ध उतना महत्वपूर्ण नही था क्योंकि न तो यह लम्बे समय तक लड़ा गया था और न ही इसमें कोई भीषण रक्तपात हुआ था। लेकिन यदि हम अन्य प्रभावों के दृष्टिकोण से देखे तो इस युद्ध को अत्यन्त महत्वपूर्ण पायेंगे क्योंकि इसके स्थायी और दूरगामी परिणाम हुये। वास्तव में इस युद्ध ने ही भारत पर ब्रिटिश शासन की नींव स्थापित की थी तथा उसका रास्ता प्रशस्त कर दिया था। इसी कारणवश जदुनाथ सरकार ने इस सन्दर्भ में लिखा है कि“A might of eternal gleom of India.”

इसी प्रकार वाटसन ने भी प्लासी के युद्ध के महत्व को स्वीकार करते हुये लिखा है कि- ’’प्लासी का युद्ध कम्पनी के लिए नही अपितु सामान्य रुप से ब्रिटिश जाति के लिए असाधारण महत्व रखता है।’’

यहॉ यह उल्लेखनीय है कि यह युद्ध वास्तव में सैनिक दृष्टिकोण से एक युद्ध कहलाने लायक भी नही था। वास्तव में यह एक छोटी सी मुठभेड़ थी जो कि अंग्रेजों तथा बंगाल के सैनिको के बीच हुआ था किन्तु इसके इतने दूरगामी परिणाम हुए कि इसे विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक माना जाता है। इस सन्दर्भ में इतिहासकार आर0 सी0 मजूमदार ने लिखा है कि -’’प्लासी का युद्ध वस्तुतः एक सैनिक मुठभेड़ से थेड़ा कही अधिक था लेकिन इसका परिणाम विश्व के कई  महानतम युद्धों से ज्यादा महत्वपूर्ण था।’’ 

(The battle of plassey was hardly more than a mere skirmish but its results was more important than that of many of the greatest battle of the world.)


संक्षेप में , इसके महत्व की चर्चा निम्न शीर्षकों के तहत् की जा सकती है -

बंगाल पर ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना -

प्लासी के युद्ध के फलस्वरूप बंगाल पर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित हो गया। इस युद्ध के बाद मीरजाफर बंगाल का नबाब बना जो कि वास्तव में अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली था। इसका बंगाल की जनता पर विपरित प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने आर्थिक दृष्टिकोण से भी बंगाल का शेषण करना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से ही सही बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

कम्पनी को आर्थिक लाभ -

प्लासी के युद्ध में विजय होने के कारण कम्पनी को अत्यधिक आर्थिक लाभ हुआ। मीरजाफर ने नबाब बनने के पश्चात एक विशाल धनराशी क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजां को प्रदान की थी। साथ ही उसने लार्ड क्लाईब तथा अन्य अंग्रेज अधिकारियों को व्यक्तिगत रुप से बड़ी मात्रा में धन दिया था। इसके अतिरिक्त बंगाल, बिहार, और उड़ीसा में कम्पनी को व्यापार करने की सुविधा मिल गई। इसके अलावा 24 परगना क्षेत्र पर भी अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।

दक्षिण भारत में प्रभाव -

कम्पनी की आर्थिक स्थिती सुदृढ होने के पश्चात कम्पनी ने एक विशाल सेना का गठन किया जिसको कर्नल फोर्ट के नेतृत्व में लार्ड क्लाईब ने दक्षिण भारत भेजा। इस सेना ने दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फं्रासिसियों के विरूद्ध कम्पनी को विजय दिलाने का श्रेय बहुत हद तक इस सेना को भी है। इस प्रकार इस युद्ध ने न केवल बंगाल में अपितु दक्षिण भारत में भी अंग्रेजी राज्य की स्थापना करने में अंग्रेजां की मदद की।

कम्पनी के लिए भारत विजय का मार्ग प्रशस्त -

प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजो में अत्यधिक उत्साह का संचार किया तथा उन्हे भारत के शक्तिशाली राजाओं के विरुद्ध अनुभव तथा शक्ति प्रदान की। इस युद्ध ने ही अंग्रेजों को शेष भारत पर कब्जा करने की प्रेरणा दी क्योंकि वे जान चुके थे कि भारतीयों की कमजोरी पैसा है अतः किसी भी शक्तिशाली राजा को हराने के लिए उनके किसी वरिष्ठ अधिकारी को रिश्वत देकर अपनी ओर किया जा सकता है। इस प्रकार भारतीयों की कमजोरी को जानने के बाद स्वतः ही शेष भारत पर विजय प्राप्त करने का उनका मार्ग प्रशस्त हो गया। इस सन्दर्भ में श्री निवास शास्त्री ने लिखा है कि - ’’बंगाल की विजय ने अंग्रेजो को वास्तव में युद्ध के लिए शारीरिक बल तथा मुख्य भूमि पर कार्यवाही करने के लिए आधारभूत आधार प्रदान किया।’’ 

(The  conquest  of  Bengal  really  gives  the English  the sinews  of war and  a  firm  base  of  operation  on  the  main  land.)

कम्पनी के गौरव में वृद्धि -

1757 इ्र्र0 से पहले ईस्ट इण्ड़िया कम्पनी को एक साधारण व्यापारिक कम्पनी समझा जाता था तथा भारतीय राजा उसको विशेष महत्व नही देते थे लेकिन प्लासी के युद्ध ने कम्पनी को एक ऐसी शक्ति के रुप में परिवर्तित कर दिया जो किसी भी व्यक्ति को शासक बना सकती थी अथवा शासक के पद से हटा सकती थी। इस प्रकार इस युद्ध के बाद कम्पनी के सम्मान में काफी वृद्धि हुयी तथा भारतीय शासक  इससे भयभीत होने लगे। 

बंगाल का शोषण -

प्लासी के युद्ध का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव बंगाल पर पड़ा था। इस युद्ध के पश्चात बंगाल का अधिकाधिक शोषण किया गया। इस दृष्टिकोण से बंगाल में अंग्रेजों का हस्तक्षेप इतना बढ गया कि मीरजाफर के लिए उसकी बातों को स्वीकार करना कठिन हो गया। ऐसी स्थिती में अंग्रेजों ने मीरजाफर को हटाकर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नबाब बनाया ताकि उन्हे पुनः बंगाल से धन प्राप्त हो सके। इस सन्दर्भ में मैलसन ने लिखा है कि- ’’मीरजाफर को वे एक सोने की बोरी के रुप में प्रयोग करना चाहते थे जिसमें जब उनकी इच्छा हो हाथ ड़ाले और धन प्राप्त हो जाय।’’

इस प्रकार अंग्रेजों द्धारा बंगाल से अत्यधिक धन का शोषण तथा बार-बार नबाब बदले जाने से बंगाल की स्थिती अत्यन्त सोचनीय हो गई और बंगाल की जनता को अपार कष्टों का सामना करना पड़ा।

नैतिक प्रभाव -

प्लासी के युद्ध का कुछ नैतिक प्रभाव भी पड़ा। इस युद्ध ने नैतिक रुप से बंगाल की जनता को तोड़ दिया। वे अपने आप को असहाय महसूस करने लगे क्योंकि अंग्रेजी शिकंजे से निकलने का उन्हे कोई रास्ता नजर नही आ रहा था। अतः बंगाल की जनता ने अपार कष्ट सहते हुए परिस्थितियों से समझौता कर लिया जिससे अंग्रेजों का बंगाल पर प्रभाव और अधिक बढ गया। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्लासी के युद्ध के अनेक दूरगामी तथा व्यापक प्रभाव पड़े और सबसे बढकर इस युद्ध ने अंग्रेजों के लिए भारतीय विजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। निष्कर्षतः इतिहासकार मैलिसन के शब्दों में यह कहा जा सकता है- ’’ऐसा कोई युद्ध नही है जिसका परिणाम इतना व्यापक, प्रभावी तथा स्थायी हो।’’ 

(There  never  was  a  battle  in  which  the  consequences  were so  vast , so  immediate  and  so  permanent.)

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