window.location = "http://www.yoururl.com"; Ramesh chandra Majumdar | रमेश चंद्र मजूमदार

Ramesh chandra Majumdar | रमेश चंद्र मजूमदार




विषय-प्रवेश-

शायद ही इतिहास का कोई ऐसा छात्र हो जिसने आचार्य रमेश चंद्र मजूमदार को न पढ़ा हो। आर0 सी0 मजूमदार अपने स्कूल के दिनों में ईश्वर चंद्र विद्यासागर से बहुत प्रभावित थे और बाद में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े भक्त बन अपने जीवन के अंत तक उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया। आर.सी. मजूमदार ने गर्व से स्वामी विवेकानंद की एक आदमकद पेंटिंग को अपने लिविंग रूम में प्रदर्शित किया। इन और अन्य प्रेरणाओं से, उन्होंने भारतवर्ष की शाश्वत प्रतिभा में एक अटल विश्वास विकसित किया और एक महान देशभक्त के रूप में अपनी पहचान बनाई। वास्तव में, यह भारत के प्रति उनका लगाव ही था जिसने उन्हें हमारे अतीत की पड़ताल करने और इस तथ्य को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया कि हम दो हजार वर्षों तक निर्बाध रूप से दुनिया में सबसे बड़ी सभ्यता थे।
डॉ. रमेशचंद्र मजूमदार जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित और एक विवादित इतिहासकार हैं। भारतीय इतिहास के प्रति उनके असाधारण मौलिक योगदान के कारण उन्हें इतिहास का अग्रणी माना जाता है। जदुनाथ सरकार से प्रेरित और सर आशुतोष मुखर्जी द्वारा पल्लवित मजूमदार ने प्राचीन भारत के अध्ययन में अपने अकादमिक करियर की शुरुआत की। अगले पांच दशकों में उन्होंने बंगाल के क्षेत्रीय इतिहास, भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव की देखरेख, प्राचीन हिंदू उपनिवेशवादियों और आधुनिक भारतीय इतिहास पर बड़े पैमाने पर शोध किया।

जीवन-परिचय :

मजूमदार का जन्म 4 दिसंबर 1888 को, खंडारपारा जिले, फरीदपुर में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। वे तीन भाइयों में सबसे छोटे थे और उनका प्रारंभिक जीवन आसान नहीं था। जब उन्होंने अपनी माँ को खोया तब वह सिर्फ 18 महीने के थे। भाई-बहनों के साथ उनका पालन पोषण चाची द्वारा किया गया। एक समय ऐसा आया जब वह बिना भोजन किये दो दिन तक रहे। जब पाँच या छह साल के थे तब शर्ट पहनने को मिली… वे दिन बेहद दर्दनाक थे। बहुआयामी विद्वान सर आशुतोष मुखर्जी की सलाह पर आर0 सी0 मजूमदार जुलाई 1914 ई0 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विभाग में एक व्याख्याता के रूप में विश्वविद्यालय में शामिल हुए। उसके पहले वे कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और फिर नागपुर विश्वविद्यालय में पहले प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त हुए। वह शिकागो और पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में भारतीय इतिहास के गेस्ट प्रोफेसर थे। वह ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी और बॉम्बे के मानद फेलो थे। वह कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी के अध्यक्ष बने इसके साथ-साथ भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना के मानद सदस्य थे। उन्हें भारतीय इतिहास कांग्रेस और अखिल भारतीय ओरिएंटल सम्मेलन का अध्यक्ष भी बनाया गया। उन्हें रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कलकत्ता का अध्यक्ष भी बनाया गया था।
प्रोफेसर आर0 सी0 मजूमदार ने मुख्य रूप से अंग्रेजी और बंगाली में कुल सैंतीस खंड और सैकड़ों लेख और पत्र लिखे। बंगाल का प्रारंभिक इतिहास, ढाका 1924, चंपा (सुदूर पूर्व में प्राचीन भारतीय उपनिवेश), सुवर्णद्वीप (सुदूर पूर्व में प्राचीन भारतीय उपनिवेश), बंगाल का इतिहास, कंबुज देश या कंबोडिया में एक प्राचीन हिंदू कॉलोनी, भारत का एक उन्नत इतिहास जैसी मानद पुस्तकें लिखीं। ग्यारह खंडों में भारतीय लोगों का इतिहास और संस्कृति, तीन खंडों में भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास, वाकाटक, पूर्व में हिंदू उपनिवेश, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया और प्राचीन लक्षद्वीप का इतिहास भी उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं।
उनका पहला काम ‘प्राचीन भारत में कॉर्पोरेट जीवन’ 1919 में प्रकाशित हुआ था, जब भारतीय इतिहास लेखन ज्यादातर विदेशियों के हाथ में छोड़ दिया गया था। इस काम ने यूरोपीय लेखकों की प्रचलित नस्लीय श्रेष्ठता को चुनौती दी और प्राचीन भारत पर अनुसंधान की गुणवत्ता और नए दृष्टिकोण के लिए यूरोपीय विद्वानों से प्रशंसा प्राप्त की। उन्होने दक्षिण-पूर्व एशिया के राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में भारत की भूमिका का व्यापक रूप से पता लगाया। उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में हिंदू साम्राज्यों और सुदूर पूर्व में हिंदू उपनिवेशों पर भी व्यापक रुप से लिखा। एक प्रशंसक होने के नाते, उन्होंने विवेकानंद पर एक संक्षिप्त ऐतिहासिक समीक्षा लिखी, जिसमें उन्होंने कई ऐसे तथ्य प्रकाश में लाए जो पहले ज्ञात नहीं थे।
दिसंबर 1952 ई0 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का आधिकारिक इतिहास लिखने के लिए संपादकों का बोर्ड नियुक्त किया। डॉ0 आर0 सी0 मजूमदार के निर्देशन में बोर्ड में इतिहासकार और राजनेता दोनों शामिल थे परंतु, इसके अध्यक्ष और सचिव “कट्टर कांग्रेसी” थे। एक विशिष्ट राजनीतिक दल से राजनेताओं की भागीदारी आधिकारिक इतिहास लिखने के लिए अनुकूल नहीं थी अतः आर0 सी0 मजूमदार ने इस पक्षपातपूर्ण रवैये का विरोध किया।
बाद में, मजूमदार ने स्वतंत्रता आंदोलन के पूरे इतिहास को ‘भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास’ शीर्षक से तीन खंडों की श्रृंखला में प्रकाशित किया। इस पुस्तक में मजूमदार ने हिंदू मुस्लिम संबंध, स्वदेशी आंदोलन, गांधीजी की भूमिका, उग्रवादी राष्ट्रवाद जैसे विभिन्न विषयों पर कई प्रचलित धारणाओं को साहसपूर्वक चुनौती दी। 1857 के विद्रोह पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के साथ वैचारिक संघर्ष के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपनी पुस्तक- “The Sepoy Mutiniy” और “Revolt of 1857” प्रकाशित किया। उनके अनुसार भारत के स्वतंत्रता संग्राम की उत्पत्ति अंग्रेजी-शिक्षित भारतीय मध्यम वर्ग और स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1905 में बंग भंग आंदोलन से हुई। स्वतंत्रता संग्राम पर उनके विचार उनकी पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया” में पाए जाते हैं।

रमेश चन्द्र मजूमदार की महत्वपूर्ण कृतियॉ :

  1. ‘‘कॉरपोरेट लाइफ इन एंशियण्ट इण्डिया‘‘ प्राचीन भारतीय इतिहास से सम्बन्धित मजूमदार की यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। उन्होंने इसकी रचना 1998 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी उपाधि के लिए की थी। इसमें मजूमदार यह दावा करते हैं कि, ’सभ्यता की वर्तमान अति विकसित स्थिति में जो बात सबसे अधिक प्रभावोत्पादक रही है वह है सहकारिता की भावना। संस्कृति के इस पक्ष में वर्तमान भारत बहुत पिछड़ा हुआ है, परन्तु प्राचीन काल में परिस्थिति बिल्कुल भिन्न थी। सहकारिता की भावना प्राचीन भारत के प्रायः सभी क्षेत्रों में बहुत स्पष्ट रूप् से विद्यमान थी और सामाजिक तथा धार्मिक जीवन में ही नहीं. राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन में भी वह व्याप्त थी। इस ग्रन्थ में मजूमदार अपने इस दावे के निर्वाह में पूर्णतः सफल हुए हैं। ग्रन्थ की महत्ता को देखते हुए प्रोफेसर कृष्णदत्त बाजपेयी जी ने ’प्राचीन भारत में संघटित जीवन’ शीर्षक से इसको आधिकारिक ढंग से हिन्दी में अनुवादित किया है।
  2. रमेश चन्द्र मजूमदार की दूसरी महत्वपूर्ण कृति है- ‘‘ऐंशियेण्ट इण्डिया‘‘
  3. ‘‘द वाकाटक गुप्त एज‘‘( ए0 एस0 अल्टेकर के साथ)- यह पुस्तक ’ए न्यू हिस्टी ऑफ दि इण्डियन पीपुल’ का छठा खण्ड है। अब यह पुस्तक माला भारतीय इतिहास कांग्रेस द्वारा नियोजित 12 खण्ड वाले इतिहास के साथ सम्मिलित कर दी गयी है।
  4. ‘‘दि क्लासिकल अकाउन्ट्स ऑफ इण्डिया‘‘।
  5. ‘‘दि हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दि इण्डियन पीपुल‘‘- ए0 डी0 पुसलकर आदि के सहसम्पादकत्व में 10 खण्डों में प्रकाशित भारत का विस्तृत इतिहास इस पुस्तक माला में सम्मिलित है। यह योजना भारतीय इतिहास समिति, बम्बई की है।
  6. ‘‘एंशियेण्ट इण्डियन कॉलोनीज इन दि फार ईस्ट‘‘
    7 ‘‘हिन्दू कॉलोनीज इन दि फार ईस्ट‘‘
  7. ‘‘एशियेण्ट इण्डियन कॉलोनीज इन साउथ ईस्ट एशिया‘‘
  8. ‘‘इन्सक्रिप्सन्स ऑफ कम्बुज कन्ट्री‘‘
  9. ‘‘हिस्ट्री ऑफ एंशियेण्ट बंगाल एण्ड ऑफ मेडिवल बंगाल‘‘
  10. ‘‘दि अरब इन्वेजन ऑफ इण्डिया‘‘
  11. ‘‘एक्सपेंशन ऑफ आर्यन कल्चर इन ईस्टर्न इण्डिया‘‘
  12. ‘‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेन्ट इन इण्डिया‘‘
  13. ‘‘थ्री फेसेज ऑफ इण्डियाज स्ट्रगल ऑफ फ्रीडम‘‘
  14. ‘‘दि रिवोल्ट ऑफ 1857‘‘
  15. ‘‘हिस्टोरियोग्राफी इन माडर्न इण्डिया‘‘ (उनके हेरास मेमोरियल लेक्चर्स का संग्रह जिनमें उन्होंने अपनी इतिहास सम्बन्धी मान्यताओं को स्पष्ट किया है।)
  16. ’इण्डियन हिस्टोरियोग्राफी : सम रीसेन्ट ट्रेन्ड्स’ ( इन्स्टीट्यूट ऑफ हिस्टारिकल स्टडीज, कलकत्ता द्वारा श्रीनगर में 1968 में आयोजित वार्षिक सम्मेलन में दिया गया अध्यक्षीय भाषण ) आदि ।
    डॉ. मजूमदार की कृतियों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि इतिहास के तीन कालों का सम्यक ज्ञान होने के कारण उन्हें इतिहास लेखन में पूर्ण दक्षता प्राप्त थी। उन्होंने अपने व्याख्यानों में इतिहास लेखन कला पर भी व्यापक प्रकाश डाला है। इतिहास लेखन के सम्बन्ध में उनका मत है कि शासन की ओर से एक निश्चित राजनीतिक आदर्श के रूप में इतिहास लेखन को प्रेरित किया जा सकता है। डॉ0 मजूमदार इतिहास लेखन में पौराणिक तिथिक्रम को मान्यता नहीं देते हैं। उनका कहना है कि पौराणिक तिथिक्रम ने भारतीय इतिहासकारों को दिग्भ्रमित किया है। उनके अनुसार, आधुनिक भारतीय इतिहासकार वस्तुनिष्ठता से कुछ हट कर राजनीतिक नीतियों एवं सिद्धान्तों की ओर उन्मुख हो रहा है और शासन भी इतिहासकारों को पद तथा प्रतिष्ठा से आकर्षित कर रहा है। यह भारतीय इतिहासकार के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है। डॉ0 मजूमदार ने इतिहास के सम्बन्ध में लिखा है कि, ’इतिहास का सम्बन्ध आन्तरिक सत्य के प्रति जिज्ञासा है। सत्य का अन्वेषण ही इतिहास है।’

  1. इतिहास लेखन एवं इतिहास दृष्टि –

  1. डॉ० मजूमदार ने ’हेरास स्मारक भाषण माला‘ में इतिहास लेखन से से सम्बन्धित जो भाषण दिया वह कालान्तर में ‘हिस्टोरियोग्राफी इन माडर्न इण्डिया’ (Historiogrphy in Modem India) के नाम से प्रकाशित हुआ। इन व्याख्यानों में प्रो० मजूमदार ने मात्र इतिहास लेखन के विकासात्मक पक्षों को ही प्रस्तुत नहीं किया वरन् इतिहास में कला पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने इतिहास के सम्बन्ध में लिखा है कि ’इतिहास सत्य की एक आंतरिक खोज के रूप में देखा जाना चाहिए। यह इतिहास के अध्यका मूल आधार है। अर्थात् उनकी दृष्टि से सत्य केवल सत्य और पूर्ण सत्य ही इतिहास का पूर्ण लौह ढांचा होना चाहिए जिसके आधार पर विभिन्न विन्यास खड़े किये जा सकते है। डॉ० मजूमदार ने इतिहास की यहाँ दार्शनिक व्याख्या की है कि जिस प्रकार सभी विषय और व्यक्तियों का उद्देश्य सत्य का अन्वेषण है, उसी प्रकार इतिहास का अर्थ उपयोगित, उद्देश्य और आदर्श भी मात्र सत्यान्वेषण ही है।
    इतिहास लेखन के सम्बन्ध में डॉ० मजूमदार का कथन है कि आधुनिक काल में हम ऐतिहासिक सत्यान्वेषण की दृष्टि से भटक रहे हैं। उनका कथन है कि-’शासन की ओर से एक निश्चित राजनैतिक आदर्श के रूप में इतिहास लेखन को प्रेरित किया जा रहा है। स्वतन्त्रता के पश्चात् शासन द्वारा महात्मा गाँधी के अहिंसा दर्शन पर आधारित इतिहास लेखन को प्रेरित किया जा रहा है परन्तु हम भारतीय इतिहास के संघर्षों और स्वतन्त्रता संग्राम की उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि प्राचीन भारत में अश्वमेध यज्ञ, दिग्विजय और समरशत विजय को अहिंसा के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

  1. ऐतिहासिक व्याख्या –

  1. डॉ मजूमदार ने अपने 10 खण्डों के “History & Culture of the Indian People” में प्रकाशित लेखों में प्रारम्भिक काल से आधुनिक काल तक का विवरण दिया है। स्वातंत्रोत्तर भारतीय इतिहास लेखन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इस पुस्तक में डॉ० मजमूदार ने भारतीय इतिहास को तीन काल खण्डों में विभाजित किया है। प्राचीन काल 1000 ई० तक, मध्यकाल 1000 ई० से 1818 ई0 तक और आधुनिक काल 1818 से आगे। चार खंडों में प्राचीन काल का विवरण दिया गया है। प्रथम खंड वैदिक है जिसमें परम्परागत इतिहास का विवरण पार्जिटर के अनुसार ही दिया गया है। सर्वाधिक ध्यातव्य यह है कि एक संक्षिप्त परिशिष्ट में यह मत प्रतिपादित किया गया है कि आर्यों की आदि निवास भूमि भारत ही थी। डॉ0 मजूमदार ने पार्जिटर के पौराणिक तिथि क्रम की भी आलोचना करते हुए कहा है कि यह वास्तविक इतिहास को दिग्भ्रमित करता है।
    वास्तव में डॉ० मजूमदार एक राष्ट्रीय इतिहासकार थे परन्तु उन्होंने स्मिथ और जायसवाल और उनके अनुसरण करने वाले दोनों प्रकार के अतिवादियों की आलोचना भी की है। डॉ० मजूमदार ने ऐसे इतिहासकारों की भी आलोचना किया है जिन्होंने भारत की प्राचीनता को अत्यधिक गौरवान्वित करने का प्रयास किया है। उनकी पुस्तक “The History and Cultrue of the Indian People” एक राष्ट्रीयता से पूर्ण इतिहास दृष्टि को प्रस्तुत करती है।

  1. मूल्यांकन –

  1. डॉ० रमेश चन्द्र मजूमदार की सेवाओं और इतिहास लेखन को भारतीय इतिहास के क्षेत्र में एक विशिष्ट मान्यता प्राप्त है। अपनी विशिष्ट मौलिक प्रतिभा से उन्होंने भारतीय विद्या भवन से अनेकशः इतिहास लेखन को दिशा प्रदान की। अपने इतिहास लेखन से, ऐतिहासिक व्याख्या से और निष्पक्ष राष्ट्रीयता के विचारों से उनका योगदान सर्व स्वीकृत है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि डॉ0 मजूमदार की सेवाओं और इतिहास लेखन को भारतीय इतिहास के क्षेत्र में एक विशिष्ट मान्यता प्राप्त है।
    वस्तुतः मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और कांग्रेस के पक्षपातपूर्ण रवैये और भारतीय गौरव के मानमर्दन का विरोध करने की सज़ा उन्हें दी गयी। कालान्तर में उन्हें हर पद और ओहदों से हटा दिया गया। हालांकि, वो ढाका विश्वविद्यालय के कुलपति बने और कई पुस्तकें लिखी। मजूमदार नें एक बार कहा था- “तुम मुझे और मेरी लिखी हुई कृतियों को तो मिटा दोगे पर उसे नहीं जो मेरे दिमाग में है।“ उनकी योग्यता भी तभी सार्थक होगी जब भारत की जनता उन्हें अपने दिल में भी अमर रखे और इतिहास के पन्नों में भी।

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