Introduction(विषय-प्रवेश) :
भारत जैसे विशाल देश का इतिहास लिखना कोई आसान काम नहीं। यहां अनेक सल्तनतें और साम्राज्य बने-बिगड़े, अनेक सल्तनतें खड़ी हुई और गर्क हुई। तत्कालीन इतिहास लेखकों ने अपने-अपने बादशाहों या राजाओं का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया। बहुत-सी ऐतिहासिक सामग्री समय के साथ नष्ट हो गई। इस कारण हमारे देश का इतिहास परस्पर विरोधी विवरणों से इतना भर गया है कि सत्य क्या है, इसका पता लगाना बहुत कठिन हो गया है। मध्ययुगीन भारतीय इतिहास के बारे में यह बात और भी ज्यादा लागू होती है। सर जदुनाथ सरकार उन गिने-चुने इतिहासकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी खोजों और प्रयत्नों से परस्पर विरोधी बातों में से सच्चाई खोज निकाली और भारतीय इतिहास के अनेक अनजाने सत्यों को पहली बार पाठकों के सामने प्रस्तुत किया।
जीवन परिचय –
सर जदुनाथ सरकार का जन्म 10 दिसम्बर 1870 ई0 को बंगाल के राजशाहीनगर जिले में हुआ। वर्तमान समय में यह स्थान बंग्लादेश में है। इनके पिता का नाम राजकुमार सरकार तथा माता का नाम श्रीमती हरिसुन्दरी था। जदुनाथ सरकार का जन्म एक अत्यन्त सम्पन्न परिवार में हुआ था और इनके पिता एक बहुत बडे जमींदार थे। बचपन से ही सरकार अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे जिसको इन्होने अपने छात्र जीवन में प्रमाणित भी किया था। जदुनाथ सरकार ने अपनी आरंभिक शिक्षा राजशाहीनगर से ही प्रारंभ की तथा उच्च शिक्षा कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीडेन्सी कॉलेज से प्राप्त की। जदुनाथ सरकार ने 1852 ई0 में एम0ए0 की परीक्षा अंग्रेजी साहित्य विषय में उत्तीर्ण की तथा उन्होने सम्पूर्ण विश्वविद्याल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए उन्हे ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु इंग्लैण्ड जाने के लिए छात्रवृति प्रदान की गई किन्तु इसी बीच कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हे अत्यन्त प्रतिष्ठित प्रेमचन्द रायचन्द छात्रवृति प्रदान की। अतः जदुनाथ सरकार ने इंग्लैण्ड जाने के स्थान पर इस छात्रवृति को स्वीकार कर लिया।
जून 1893 ई0 में जदुनाथ सरकार को कलकत्ता के रिपन कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति मिली तथा एक शिक्षक के रूप में वे अत्यन्त सफल रहे। प्रो0 के0आर0 कानूनगों ने लिखा है कि – जब पहली बार जदुनाथ सरकार कक्षा लेने गये तो छात्रों ने उन्हे भी एक विद्यार्थी ही समझा किन्तु जैसे ही उन्होने बोलना प्रारंभ किया, समस्त छात्र हतप्रभ रह गये। अपनी योग्यता के बल पर ही जदुनाथ सरकार 1898 ई0 में कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता बन गये। कुछ समय तक वहॉ कार्य करने के बाद वे पटना कॉलेज में चले आये। जदुनाथ सरकार यद्यपि अंग्रेजी के प्राध्यापक थे किन्तु इतिहास विषय में उनकी विशिष्ट रूचि थी। इसी कारणवश 1901 ई0 में उनकी पहली पुस्तक ‘‘इण्डिया ऑफ औरंगजेब‘‘ प्रकाशित हुई। इस एक पुस्तक ने उन्हे बौद्धिक जगत में एवं उच्चस्तरीय शोधकर्ता व इतिहासकार के रूप में स्थापित कर दिया। परिणामस्वरूप उन्हे अंग्रेजी के स्थान पर इतिहास का प्रोफेसर बना दिया गया। इसी पद पर पटना कॉलेज में उन्होने 1917 ई0 तक कार्य किया तत्पश्चात कुछ समय के लिए उन्होने कटक तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी कार्य किया। 1923-26 ई0 के मध्य उन्होने पुनः पटना कॉलेज में कार्य किया तथा 1926 ई0 में वे सेवानिवृत हुए।
अपने पूरे जीवन में वे समय के बहुत पाबन्द थे तथा 1926 ई0 में जिस दिन वे सेवानिवृत हुए उस दिन भी उन्होने अपनी पूरी कक्षाएॅ ली। उनकी योग्यता को देखते हुए 1926 ई0 में ही उन्हे कलकत्ता विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया जिसपर उन्होने 1928 ई0 तक कार्य किया। 1928 ई0 में उन्हे पुनः इस पद पर तीन वर्ष के लिए नियुक्त किया गया लेकिन उन्होने यह कहकर इस पद पर कार्य करने से इन्कार कर दिया कि इससे उनके शोध कार्यो में बाधा पडती थी। उनके कार्यो को देखते हुए 1929 ई0 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ‘‘नाइट‘‘ की उपाधि से विभूषित किया। जदुनाथ सरकार ने जिस समय अपना शैक्षणिक कार्य प्रारम्भ किया था उस समय उन्हे केवल अंग्रेजी और संस्कृत भाषाएॅ ही आती थी किन्तु इतिहास के अध्ययन के लिए उन्होने फारसी, मराठी, जर्मन, फ्रेन्च व पुर्तगाली भाषाओं को भी सीखा। उन्होने विभिन्न भाषाओं के महत्वपूर्ण ग्रन्थों को भी ढूॅढा तथा उसका गहन अध्ययन भी किया। यही कारण है कि जदुनाथ सरकार की रचनाओं में विभिन्न प्रकार के स्रोतों का उपयोग देखने का मिलता है।
सर जदुनाथ सरकार के कार्यो का देश-विदेश में स्वागत हुआ किन्तु उल्लेखनीय है कि उनका सम्मान पहले विदेशी संस्थाओं द्वारा हुआ तत्पश्चात भारतीय संस्थाओं द्वारा। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि सर जदुनाथ सरकार को Royal Asiatic Society ने अपना सदस्य बनाकर सम्मानित किया। बाद में कलकत्ता तथा बम्बई की Asiatic society ने भी उन्हे सम्मानित किया। सर जदुनाथ सरकार को अमेरिक की Historical Society ने भी अपना सदस्य बनाया था।
सर जदुनाथ सरकार के महत्वपूर्ण ग्रन्थ –
अपनी शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त सर जदुनाथ सरकार 1857 के विद्रोह पर अपना शोध कार्य करना चाहते थे लेकिन बाद में उन्हे महसूस हुआ कि 19वीं शताब्दी में ही इस शीर्षक पर शोध कार्य करना उचित नही है अतः उन्होने औरंगजेब पर कार्य करने का निर्णय लिया तथा इसी का परिणाम 1901 में प्रकाशित “India of Aurangzeb” थी। यह पुस्तक वास्तव में इतिहास से अधिक भारत का भौगोलिक परिचय देती है यद्यपि यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। इस ग्रन्थ में सबसे अधिक राय छत्रभान की पुस्तक ‘‘चहार-ए-गुलशन‘‘ से सहायता ली गई है।
सर जदुनाथ सरकार ने अपना दूसरा ग्रन्थ “History of Aurangzeb” प्रकाशित किया जो पॉच खण्डों में है। इस ग्रन्थ का प्रथम खण्ड 1912 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें शाहजहॉ का शासनकाल और औरंगजेब के प्रारंभिक काल का वर्णन किया गया है। इसका दूसरा खण्ड भी 1912 ई0 में ही प्रकाशित हुआ जिसमें शाहजहॉ के काल में हुए उत्तराधिकार के युद्ध का विस्तृत विवरण देते हुए औरंगजेब की विजय के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। इसका तीसरा खण्ड 1916 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें औरंगजेब की प्रारंभिक उपलब्धियों का वर्णन है। इसी खण्ड में औरंगजेब की नीतियॉ और प्रशासन पर भी प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक का चौथा खण्ड 1919 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें औरंगजेब की दक्षिण नीति का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस पुस्तक का पॉचवा खण्ड 1924 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें औरंगजेब की मराठों के विरूद्ध नीति, उत्तर भारत में अव्यवस्था तथा अन्त में औरंगजेब का चरित्र चित्रण किया गया है। मध्यकालीन इतिहास के अध्ययन के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक है जैसा कि पुस्तकों के पॉच खण्डों तथा उसकी विषय वस्तु से स्पष्ट है। यद्यपि इस पुस्तक के कारण अनेक इतिहासकारों द्धारा सर जदुनाथ सरकार की कटु आलोचना की गई है किन्तु यह भी सत्य है कि उनकी इसी पुस्तक ने उन्हे भारत के शीर्ष इतिहासकारों की श्रेणी में ला खडा किया है।
यह भी कम दिलचस्प नही है कि “History of Aurangzeb” लिखते समय सर जदुनाथ सरकार को मराठा इतिहास और शिवाजी का भी अध्ययन करना पडा था और इस दौरान वे शिवाजी के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित हुए थे परिणामस्वरूप 1919 ई0 में उन्होने “Shivaji and His Times” नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में सर जदुनाथ सरकार ने बताया कि अनेक सफलता के बाद भी शिवाजी एक राष्ट्र का निर्माण क्यों नही कर सके थे। यह भी उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में सर जदुनाथ सरकार ने अनेक स्थानों पर शिवाजी की कटु आलोचना की है तथा उनके द्वारा अपनाये गये अनेक नीतियों को पहले से ही प्रचलित बताया जिसके कारण उनका घोर विरोध हुआ तथा उनपर इस बात के लिए भी दबाव पडा कि वे शिवाजी के प्रति की गई आलोचनात्मक टिप्पणी को अपनी पुस्तक से हटा दे लेकिन सर जदुनाथ सरकार इसके लिए तैयार नही हुए। इसके बाद उन्होने एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक “The Mughal Administration” लिखी। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि इस विषय पर प्रकाशित यह पहली पुस्तक थी। तत्पश्चात 1928 ई0 में उन्होने “India through Ages” नामक पुस्तक लिखी जिसमें सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का वर्णन किया गया है। 1932 ई0 में उन्होने अपनी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रथम खण्ड प्रकाशित किया और यह पुस्तक थी – “Fall of Mughal Empire” । इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में नादिरशाह के आक्रमण से सम्राट अहमदशाह आलमगीर तक का वर्णन मिलता है। इसी पुस्तक का द्वितीय खण्ड 1934 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें आलमगीर के सिंहासनारूढ होने से लेकर 1771 ई0 तक का वर्णन है। इस पुस्तक का तृतीय खण्ड 1938 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें दिल्ली सरकार की समस्याएॅ तथा तात्कालीन अनेक घटनाओं का विवरण मिलता है। इसी पुस्तक का चौथा और अंतिम खण्ड 1950 ई0 में प्रकाशित हुआ जिसमें 1803 ई0 तक का इतिहास तथा मुगलों के पतन का निष्कर्ष वर्णित है।
सर जदुनाथ सरकार की “Fall of Mughal Empire” भी “History of Aurangzeb” के समान अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है। जिस समय वे इस पुस्तक का लेखन कार्य कर रहे थे, उसी बीच में 1940 ई0 में उन्होने एक अन्य पुस्तक भी लिखी जिसका नाम “House of Shivaji” था। इस पुस्तक में मराठा नेताओं का मराठा इतिहास पर प्रभाव दिखाया गया है। इसके अतिरिक्त भी सर जदुनाथ सरकार ने कुछ अन्य पुस्तक लिखी जिनमें प्रमुख “Military History of India” थी जो कि उनकी मृत्यु (मई 1958 ई0) के बाद 1960 ई0 में प्रकाशित हुई थी। इसमें युद्ध की कला का भारत में कैसे विकास हुआ, इसे रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
सर जदुनाथ सरकार की लेखन शैली –
जहॉ तक सर जदुनाथ सरकार की लेखन शैली का प्रश्न है निःसन्देह इस कला में वे पारंगत थे। सामान्यतया यदि कोई शोधकर्ता एक दो अथवा कुछ पुरानी रचनाएॅ का इस्तेमाल करता है तो उसके कार्य को उच्चस्तरीय माना जाता है किन्तु मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर कार्य करने वाले शायद ही कोई ऐसा इतिहासकार होगा जिसने सारे समकालीन स्रोतों का इस्तेमाल किया हो। प्रारंभ में सामान्यतया यह धारणा थी कि मध्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोत तात्कालीन दरबार से सम्बन्धित विभिन्न रचनाएॅ ही थी, किसी ने भी ऐतिहासिक पत्रों, डायरियों, दरबारी आज्ञापत्रों व बुलेटिनों, घोषणापत्रों आदि के महत्व को नही समझा था, जो विभिन्न भाषाओं में थे। किन्तु सर जदुनाथ सरकार ने न केवल इसके महत्व को समझा वरन् उसका इस्तेमाल भी किया। उन्होने अपनी रचनाओं में सरकारी कागजों का ही नही, व्यक्तिगत दस्तावेजों का भी प्रयोग किया। विभिन्न भाषाओं के दस्तावेजों के अध्ययन के लिए विभिन्न भाषाओं का ज्ञान आवश्यक था अतः सर जदुनाथ सरकार ने अनेक भाषाओं का सीखा। सर जदुनाथ सरकार का मानना था कि शोधकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक स्रोतों का अध्ययन करे तथा तभी किसी निष्कर्ष पर पहुॅचे। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि सर जदुनाथ सरकार किसी भी स्रोत पर ऑख बन्द करके भरोसा नही करते थे जबतक कि वे उसकी वैज्ञानिक ढंग से उसकी व्याख्या न कर ले व अन्य स्रोतों से उसकी पुष्टि न करले, वे उसे प्रामाणिक मानने के लिए तैयार नही होते थे। यह वास्तव में एक अच्छे शोधकर्ता का गुण होता है। प्रत्येक स्रोत में क्या सही है क्या गलत है, इसका पूरा अंदाजा उन्हे रहता था। उनको इस विषय में इतना ज्ञान था कि वे एक नजर में देखकर बता सकते थे कि यह दस्तावेज असली है या नकली। सही स्रोतों का वे अंग्रेजी में अनुवाद करते थे तथा उसका गहराई से अध्ययन करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुॅचते थे।
सर जदुनाथ सरकार की एक अन्य विशेषता यह थी कि वे लिखित दस्तावेजों पर सौ प्रतिशत विश्वास नही करते थे। जिस क्षेत्र का वे अध्ययन कर रहे होते थे, जबतक वे व्यक्तिगत रूप से स्वयं उसको न देख ले, वहॉ के भूगोल और संस्कृति से पूरी तरह परिचय न कर ले तथा आम जनता किस प्रकार से रहती है, यह देख न ले तबतक वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुॅचते थे। इसी उद्देश्य से उन्होने मुगलों व मराठों से सम्बद्ध प्रत्येक स्थान व किले का अध्ययन किया था। इसी कारण उनकी रचनाओं में प्रत्येक ऐतिहासिक स्थल का विस्तृत भौगोलिक विवरण भी मिलता है। उनकी रचनाएॅ एकदम निष्पक्ष है और देश, जाति, व्यक्ति अथवा किसी अन्य बात से प्रभावित हुए बिना साक्ष्यों के आधार पर वे इतिहास की रचना करते थे।
सर जदुनाथ सरकार इतिहास में अवश्यंभाविता पर विश्वास रखते थे अर्थात उनका मानना था कि जिसका उत्थान हुआ है उसका पतन भी अवश्य होगा और यही इतिहास का नियम है। प्राचीन काल से ही इस बात का प्रमाणित करने के लिए ही अनेक उदाहरण दिये जा सकते है। इसी कारणवश औरंगजेब की असफलता का कारण बताते हुए उन्होने लिखा था कि समय के अनुसार उसका पतन होना स्वाभाविक था। सर जदुनाथ सरकार इतिहास में दैवीय कृपा पर भी विश्वास रखते थे। उदाहरण के लिए – नादिरशाह के आक्रमण का वर्णन करते हुए उन्होने लिखा था कि नादिरशाह की लूट के बाद उसके द्वारा प्रताडित क्षेत्रों की आर्थिक स्थिती अत्यन्त खराब हो गयी थी अतः इन क्षेत्रों पर दैवीय कृपा हुई और आगे आने वाले अनेक वर्षो में वहॉ असाधारण रुप से बहुत अच्छी फसलें हुई। सर जदुनाथ सरकार का यह भी मानना था कि इतिहास हम सबको सबक देता है और पिछली घटनाओं से सबक लेकर वर्तमान व भविष्य को सुधारा जा सकता है। स्वयं सर जदुनाथ सरकार के शब्दों में – ‘‘सच्चा इतिहास आने वाले सभी युगों के लोगों के लिए एक बस्तु सबक है।‘‘ भाषा पर नियंत्रण होने के कारण सर जदुनाथ सरकार द्वारा लिखे गये कुछ वाक्य, मुहाबरे अथवा कहावतों की तरह प्रयुक्त किये जाते थे। उदाहरणस्वरुप – ‘‘एक राष्ट्र का सबसे बडा दुश्मन उसके अन्दर होता है।‘‘ ‘‘युद्ध एक राष्ट्र की दक्षता की सर्वोच्च परीक्षा है।‘‘
सर जदुनाथ सरकार के बडी संख्या में आलोचक भी थे जो उनके द्वारा लिखे गये निष्कर्षो से सहमत न होने के कारण उनकी आलोचना करते थे किन्तु किसी भी आलोचक ने उनपर तथ्यों को तोडने-मरोडने का आरोप नही लगाया है। उनकी आलोचना मुख्यतः तीन बातों को लेकर होती है –
- औरंगजेब की धार्मिक नीति का वर्णन करते हुए उन्होने औरंगजेब द्वारार बनारस फरमान की ओर ध्यान नही दिया जिसमें विश्वनाथ मन्दिर को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई थी।
- जजिया कर के विषय में सर जदुनाथ सरकार का विवरण उचित नही है। उल्लेखनीय है कि सर जदुनाथ सरकार ने हिन्दुओं से जजिया कर वसूल करने की कटु आलोचना की है।
- शिवाजी के द्वारा अफजल खॉ की हत्या को सर जदुनाथ सरकार ने अपनी आत्मरक्षा के लिए किया गया खून अर्थात प्रिवेन्टिव मर्डर बताया।सर जदुनाथ सरकार ने उपरोक्त आरोपों का अपने तर्को के द्वारा खण्डन भी किया। प्रथम आरोप के विषय में सरकार ने कहा कि उन्होने बनारस फरमान का अनदेखा नही किया है लेकिन उल्लेखनीय प्रश्न यह है कि बनारस फरमान कब जारी किया गया था। सरकार के अनुसार औरंगजेब ने बनारस फरमान उस समय जारी किया जिस समय वह उत्तराधिकार का युद्ध लड रहा था तथा उसे शुजा के विरुद्ध हिन्दूओं की सहायता चाहिए थी। उन्होने कहा कि अगर उनका कथन गलत है तो औरंगजेब ने वास्तविक शासक बनने के बाद किसी हिन्दू मन्दिर को आर्थिक सहायता क्यों नही दी।दूसरे आरोप के जबाब में सर जदुनाथ सरकार ने कहा है कि किसी भी धर्म विशेष के लोगों से किसी विशेष प्रकार का कर वसूलना किसी भी शासक के लिए सैद्धान्तिक रुप से गलत है। इसके अतिरिक्त उन्होने यह भी कहा कि जजिया कर के सम्बन्ध में उन्होने अपना मत समकालीन मुसलमान न्यायविदों के निर्णयों के आधार पर दिया था।तीसरे आरोप के प्रत्युत्तर में सर जदुनाथ सरकार ने कहा है कि इसमें कोई सन्देह नही है कि पहले अफजल खॉ ने ही शिवाजी पर आक्रमण किया था। इस बात की पुष्टि अहमदनगर के वजीर मीर आलम जो कि स्वयं एक इतिहासकार था, उसके कथनों से भी होती है। अतः मेरा उद्देश्य शिवाजी को बचाने का कतई नही था।इसके अतिरिक्त कलकत्ता, महाराष्ट्र, इलाहाबाद तथा अलीगढ में भी उनकी कटु आलोचना की गई। कलकत्ता में उनपर यह आरोप लगाया गया कि उन्हे अंग्रेजी तथा फारसी नही आती है तथा इन भाषाओं का उन्हे समुचित ज्ञान नही था। इन आरोपों का मुख्य कारण कलकत्ता विश्वविद्यालय की आन्तरिक राजनीति थी। मराठा इतिहासकारों ने उनके द्वारा मराठा इतिहास लिखे जाने को पसन्द नही किया तथा उन्होने इसे अपने अधिकारों में हस्तक्षेप बताया। इसके अतिरिक्त वे शिवाजी की आलोचना भी सहने के लिए तैयार नही थे। इलाहाबाद के इतिहासकारों ने उनके लेखन पर मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुॅचाने वाला बताया क्योंकि उन्होने मुगलों द्वारा मन्दिरों को तोडे जाने का उल्लेख किया था। इन इतिहासकारों का मत था कि इससे हिन्दु-मुस्लिम एकता प्रभावित होगी और उनके बीच दूरी बढेगी। अलीगढ के इतिहासकार मध्यकालीन इतिहास पर अपना विशेषाधिकार मानते थे अतः सर्वप्रथम तो उन्हे यही पसन्द नही आया कि सर जदुनाथ सरकार मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर लिखे। उसपर वे औरंगजेब के हिन्दू विरोधी नीति का वर्णन करने के कारण उनके घोर विरोधी हो गये। उन्होने सर जदुनाथ सरकार पर इस्लाम और मुसलमानों का विरोधी होने का आरोप लगाया।उल्लेखनीय है कि उनपर लगाये गये ये तमाम आरोप बेबुनियाद है। उन्होने जो कुछ भी लिखा तथ्यों के आधार पर लिखा। यदि एक तरफ उन्होने औरंगजेब के हिन्दू विरोधी नीति का वर्णन किया तो दूसरी तरफ न केवल शिवाजी की कटु आलोचना की वरन् मराठों द्वारा उत्तर भारत में किये गये अत्याचार को भी अपनी पुस्तक में स्थान दिया। इसी कारणवश युरोपीय इतिहासकारों ने उनपर यह आरोप नही लगाये है। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि जो इतिहासकारा उनकी कटु आलोचना करते थे, वे मन ही मन उनका सम्मान भी करते थे तथा सरकार के द्वारा अपने विषय में लिखे गये शब्दों का गर्व से उल्लेख भी करते थे। अतः स्पष्ट है कि वो सर जदुनाथ सरकार को एक विशिष्ट इतिहासकार मानते थे।मूल्यांकन –सर जदुनाथ सरकार अपने समय के निःसन्देह एक महान इतिहासकार थे जिसका प्रमाण यह है कि शायद ही कोई ऐसा इतिहासकार होगा जिसने मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर कार्य किया हो तथा उसने सर जदुनाथ सरकार की पुस्तकों की मदद न ली हो। इससे बडी उपलब्धि किसी इतिहासकार के लिए और क्या हो सकती है। सर जदुनाथ सरकार की लगन, मेहनत व विषय के प्रति ईमानदारी आज भी वर्तमान इतिहासकार के लिए आदर्श है। उनकी मृत्यु से उसका प्रभाव संक्षिप्त नही हुआ है। शोध कार्य करने के लिए और अपने अनुयायियों के लिए उन्होने एक रास्ता प्रस्तुत किया है जिसमें उन्होने निम्न बातों पर ध्यान देने के लिए कहा है –
- विषय से सम्बन्धित सभी भाषाओं का ज्ञान।
- सभी भाषाओं में उपलब्ध सभी स्रोतों की खोज व उसे एकत्र करने के लिए कडी मेहनत।
- इस प्रकार एकत्र सभी स्रोतों की वैज्ञानिक व्याख्या।
- सही स्रोतों को पहचानना व उन्हे अलग करना।
- सही सही तथ्यों को ध्यान में रखते हुए विषय को सरल व गंभीर तरीके से लिखना।इस प्रकार स्पष्ट है कि सर जदुनाथ सरकार का इतिहास के क्षेत्र में किये गये योगदान को नकारा नही जा सकता है। इतिहास के विद्यार्थी होने के नाते हमें उनकी एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि ज्ञान कभी पूरा नही होता। “Knowledge in not a static.” इतिहासकार को सदैव नवीन स्रोतों व ज्ञान की खोज में लगे रहना चाहिए तथा अपने विषय में निरन्तर हो रहे शोध कार्यो की पूरी जानकारी रखनी चाहिए तभी हम अपने लेखन के द्वारा इतिहास के प्रति न्याय कर सकते है। अन्ततः प्रो0 शेख अली के शब्दों में कहा जा सकता है कि – ‘‘भारतीय इतिहास के शोध क्षितिज पर सर जदुनाथ सरकार एक तेज चमकता हुआ सितारा है।‘‘
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इतिहास लेखन