window.location = "http://www.yoururl.com"; Rani Padmini | रानी पद्मिनी

Rani Padmini | रानी पद्मिनी




रानी पद्मिनी भारत के इतिहास में रानी पद्मावती के नाम से भी प्रसिद्ध है। रानी पद्मिनी के जीवन की कहानी वीरता, त्याग, त्रासदी, सम्मान और छल को दिखाती है। रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता के लिए समस्त भारत देश में प्रसिद्ध थी। वैसे ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि रानी पद्मिनी वास्तव में अस्तित्व में थी या नहीं। ‘पद्मावत‘ एक एक काव्य ग्रन्थ है जिसे मालिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में लिखा था, जिसमें पहली बार पद्मावती के बारे में लिखित दस्तावेज मिले थे, जो कि लगभग उस घटना के 240 सालों बाद लिखा गया था। रानी पद्मावती राजा गन्धर्व और रानी चम्पावती की बेटी थी जो कि सिंघल कबिले में रहा करती थी। पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता ‘हीरामणि’ भी था, जो उनके बेहद करीब था। पद्मावती बहुत सुंदर राजकुमारी थी, जिनकी सुन्दरता के चर्चे दूर-दूर तक थे। पद्मावत कविता में कवि ने उनकी सुन्दरता को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार पद्मावती के पास सुंदर तन था, अगर वे पानी भी पीती तो उनके गले के अंदर से पानी देखा जा सकता, अगर वे पान खाती तो पान का लाल रंग उनके गले में नजर आता। पद्मावती के लिए उनके पिता ने एक स्वयंवर आयोजित करवाया, जिसमें देश के सभी हिन्दू राजा और राजपूतों को आमंत्रण भेजा गया। मलकान सिंह जो एक छोटे से राज्य के राजा थे, उन्होंने सबसे पहले राजकुमारी पद्मावती का हाथ माँगा। चित्तौड के राजा राणा रतन सिंह भी इस स्वयंवर में गए थे, लेकिन उनकी पहली से 13 रानियाँ थी। राणा रतन सिंह ने मलकान सिंह को इस स्वयंवर में हरा दिया और रानी पद्मावती से विवाह कर लिया। वे अपनी पत्नी पद्मावती के साथ चित्तौड आ गए।
12 वीं एवं 13 वीं शताब्दी के समय चित्तौड में राजपूत राजा राणा रतन सिंह का राज्य था, जो सिसोदिया राजवंश के थ् एक बहादुर और महान योद्धा थे। राणा रतन सिंह अपनी पत्नी पद्मावती से अत्याधिक प्रेम किया करते थे, इससे पहले इनकी 13 शादियाँ हो चुकी थी, लेकिन पद्मावती के बाद इन्होने कोई विवाह नहीं किया था। राजा बहुत अच्छे शासक थे, जो अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे, इसके अलावा राजा को कला का बहुत शौक था। देश के सभी कलाकारों, नर्तकियों, कारीगरों, संगीतकार, कवि, गायक आदि का राजा स्वागत करते और उन्हें सम्मानित करते थे। उनके राज्य में एक बहुत अच्छा गायक ‘राघव चेतक’ था जो बहुत ही अच्छी बॉसुरी बजाता था। लेकिन गायकी के अलावा राघव को काला जादू भी आता था और यह बात किसी को नहीं पता थी। राघव ने अपनी इस प्रतिभा का इस्तेमाल अपने ही राजा के खिलाफ करना चाहा, और वह एक दिन रंगे हाथों पकड़ा भी गया। राजा को जब ये बात पता चली, तब उसने सजा के रूप में उसका मुॅह काला कर उसे गधे पर बिठाकर अपने राज्य से बहिष्कृत कर दिया। इस कड़ी और घिनौनी सजा से राजा रतन सिंह के दुश्मन और बढ़ गए और राघव चेतन ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी।
राघव चेतक अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए व्याकुल हो उठा। वह दिल्ली के सुल्तान से हाथ मिला कर चित्तौड पर हमला करने की योजना बनाने लगा। राघव चेतक अलाउद्दीन खिलजी के बारे में अच्छे से जानता था, उसे पता था कि सुल्तान दिल्ली के पास जंगल में रोज शिकार के लिए आता है। राघव अलाउद्दीन खिलजी से मिलने की चाह में रोज जंगल में बैठे बांसुरी बजाता रहता था। एक दिन राघव की किस्मत ने पलटी खाई, उसने अलाउद्दीन खिलजी के जंगल में आते ही सुरीली आवाज में बांसुरी बजाना शुरू कर दिया। इतनी सुंदर बांसुरी की आवाज जब अलाउद्दीन खिलजी और उसके सैनिको के कानों में पड़ी तो सब आश्चर्यचकित हो गए। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों को उस इन्सान को ढूढने के लिए भेजा और शीध्र ही राघव को उसके सैनिक ले आये। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे दिल्ली में अपने दरबार में आने को कहा। चालाक राघव ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सुल्तान से कहा कि जब उसके पास इतनी सुंदर-सुंदर वस्तुएं है, तो वो क्यूँ इस साधारण से संगीतकार को अपने राज्य में बुला रहा है। सुल्तान सोच में पड़ गए और राघव से अपनी बात को स्पष्टता से समझाने को कहा। राघव तब सुल्तान को चित्तौड और वहां की रानी पद्मावती की सुन्दरता का वखान कुछ इस तरह करता है कि अलाउद्दीन खिलजी उसकी बात सुन कर ही उत्तेजना से भर जाता है और चित्तौड पर हमले का विचार कर लेता है। अलाउद्दीन खिलजी सोचता है कि इतनी सुंदर रानी को उसके हरम की सुन्दरता बढ़नी चाहिए।
पद्मावती की सुन्दरता को सुन अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड पर चढ़ाई शुरू कर देता है। वहां पहुँच कर अलाउद्दीन खिलजी देखता है कि चित्तौड में सुरक्षा व्यवस्था बहुत पुख्ता है, वो निराश हो जाता है। लेकिन पद्मावती को देखने की उसकी चाह बढ़ती जा रही थी, जिस वजह से वो राणा रतन सिंह को एक सन्देश भेजता है और कहता है कि वो रानी पद्मावती को एक बहन की हैसियत से मिलना चाहता है। वस्तुतः राजपूतों में रानी को बिना परदे के देखने की इजाज़त किसी को नहीं होती है। अलाउद्दीन खिलजी एक बहुत ताकतवर शासक था, जिसके सामने किसी को न कहने की हिम्मत नहीं थी। हताश रतन सिंह, सुल्तान के रोष से बचने और अपने राज्य को बनाए रखने के लिए उनकी यह बात मान लेते है।
रानी पद्मावती अपने राजा की बात मान लेती है लेकिन उनकी एक शर्त होती है कि सुल्तान उन्हें सीधे नहीं देख सकता बल्कि वह उनका आईने में प्रतिबिम्ब देख सकता है। अलाउद्दीन खिलजी उनकी इस बात को मान जाता है और अपने सबसे ताकतवर सैनिकों के साथ किले में जाता है। अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती को आईने में देख मदहोश ही हो जाता है, और निश्चय कर लेता है कि वो उनको पाकर ही रहेगा। अपने शिविर में लौटते समय, रतन सिंह उसके साथ आते है, खिलजी इस मौके का फायदा उठा लेता है और रतन सिंह को अगवा कर लेता है, वो पद्मावती एवं उनके राज्य से राजा के बदले रानी पद्मावती की मांग करते है।
अन्ततः संगारा चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने अपने राजा को बचाने के लिए सुल्तान से युद्ध करने का फैसला किया। पद्मावती के साथ मिलकर दोनों सेनापति एक योजना बनाते है जिसके के तहत वे खिलजी को सन्देश भेजते है कि रानी पद्मावती उनके पास आने को तैयार है। अगले दिन सुबह 150 पालकी खिलजी के शिविर की ओर पलायन करती है जहाँ राजा रतन सिंह को रखा गया था। खिलजी के सभी सैनिक और रतन सिंह जब ये देखते है कि चित्तौड से पालकी आ रहा है तो उन्हें लगता है कि वे अपने साथ रानी पद्मावती को लेकर आये है। इसके बाद सब राजा रतन सिंह को बहुत अपमानित करते है। सबको आश्चर्य में डालते हुए इन पालकियों से रानी या उनकी दासी नहीं बल्कि रतन सिंह की सेना के जवान निकलते है, जो जल्दी से रतन सिंह को छुड़ाकर खिलजी के ही घोड़ों पर बैठकर चित्तौड की ओर भाग जाते है। गोरा युद्ध में पराक्रम के साथ लड़ता हुआ मारा जाता है, जबकि बादल राजा को सही सलामत किले में वापस लाने में सफल होता है।
अपनी हार के बाद अलाउद्दीन खिलजी क्रोध में आ जाता है और अपनी सेना से चित्तौड पर हमला करने का आदेश देता है। अलाउद्दीन खिलजी की सेना रतन सिंह के किले को तोड़ने की बहुत कोशिश करती है, लेकिन वो सफल नहीं हो पाती है। जिसके बाद अलाउद्दीन अपनी सेना को किले को घेर कर रखने को बोलता है। घेराबंदी के लिए एक बड़ी और ताकतवर सेना को खड़ा किया गया। लगातार कई दिनों तक वे घेराबंदी किये खड़े रहे, जिससे धीरे धीरे किले के अंदर खाने पीने की कमी होने लगी। अंत में रतन सिंह ने अपनी सेना को आदेश दिया कि किले का दरवाजा खोल दिया जाए और दुश्मनों से मरते दम तक लड़ाई की जाये। रतन सिंह के इस फैसले के बाद रानी हताश होती है, उसे लगता है कि खिलजी की विशाल सेना के सामने उसके राजा की हार हो जाएगी और उसे विजयी सेना खिलजी के साथ जाना पड़ेगा। इसलिए रानी पद्मिनी निश्चय करती है कि वो जौहर कर लेगी। जौहर का मतलब होता है आत्महत्या। इसमें रानी के साथ किले की सारी औरतें आग में कूद जाती है। 26 अगस्त सन 1303 ई0 को पद्मावती भी जौहर के लिए तैयार हो जाती है और आग में कूद कर अपने पतिव्रता होने का प्रमाण देती है। किले की महिलाओं के मरने के बाद, वहां के पुरुषों के पास दो रास्ते होते है या तो वे दुश्मनों के सामने हार मान लें अथवा मरते दम तक लड़ते रहें। चित्तौड का एक एक व्यक्ति लडता हुआ मारा जाता है। अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना के साथ चित्तौड के किले में प्रवेश करता है, लेकिन उसे वहां सिर्फ मृत शरीर, राख और हड्डियाँ मिलती है।

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