जीवन-परिचय :
इब्नबतूता अफ्रीका का रहने वाला था जिसका जन्म 1304 ई0 में हुआ था। बचपन से ही उसे समुद्री यात्राओं में रूचि थी अतः 1325 ई0 में वह अपना घर छोडकर एशियाई देशों की यात्रा पर निकल पडा और 1354 ई0 में वापस स्वदेश लौटा। 1355 ई0 में उसने अपनी यात्राओं का विवरण यात्रा संस्मरण लिखा जिसका नाम है ‘‘अजाइब-अल-सफर‘‘। 1356 ई0 में इब्नजुस्सी नामक व्यक्ति ने ‘सफरनामा‘ नाम से ‘अजाइब-अल-सफर‘ का संक्षिप्त रूप प्रकाशित किया। इब्नबतूता की ‘अजाइब-अल-सफर‘ अरबी भाषा में है। इसके यात्रा संस्मरणों के आधार पर दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के इतिहास का पुनर्निमाण किया जा सकता है।
इब्नबतूता ने 1333 से 1342 ई0 के बीच लगभग आठ वर्षो से अधिक समय तक भारत में व्यतीत किया। इब्नबतूता के यात्रा वृतान्त के अनुसार 1325 ई0 में अपने देश से निकलने के बाद मुख्यतः पश्चित और मध्य एशिया होते हुए वह भारत पहुॅचा। मध्य एशिया में अबतक ट्रान्सआक्सियाना में था तो उसे लगभग 56 दिन का समय मंगोल नेता के साथ व्यतीत करने का सौभाग्य मिला। यह वही मंगोल नेता तरमाशरींन था जिसने 1328 ई0 में हिन्दुस्तान के उपर आक्रमण किया जिसमें सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक पराजित भी हुआ था। 1333 ई0 में जब वह सुल्तान पहुॅचा तो भारत में मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था। जिस समय वह दिल्ली दरबार में पहुॅचा उस समय सुल्तान कन्नौज गया था अतः राजमाता मखदूम-जहॉं तथा वजीर ‘ख्वाजा-ए-जहॉं‘ ने उसका स्वागत किया। उसे भत्ते के रूप में 2000 दीनार दिये गये। कन्नौज से सुल्तान ने आदेश भेजा कि इस विदेशी यात्री को 5000 वार्षिक आय की एक जागीर प्रदान की जाय। इसके साथ साथ दिल्ली के पास स्थित साढे तीन गॉंव प्रदान किये गए। सुल्तान जब कन्नौज से दिल्ली पहुॅचा तो इसे काजी के पद पर नियुक्त किया। इब्नबतूता के सत्ता से जुड जाने के बाद उसने सरकारी धन का गबन किया और बहुत ही ऐशो आराम का जीवन व्यतीत करने लगा। दिल्ली के काजी के रूप में उसपर 55 हजार दीनार कर्ज के रूप में चढ गया। वह धीरे धीरे राजनीति में गहरी रूचि लेने लगा और एक समय ऐसा भी आया जब वह सुल्तान का कट्टर विरोधी हो गया। ऐसी स्थिती में 1348 ई0 में उसे नजरबन्द कर दिया गया लेकिन सुल्तान से क्षमा मॉगने के पश्चात उसे स्वतन्त्र कर दिया गया। तत्पश्चात सुल्तान ने इसे चीन में अपना राजदूत बनाकर भेजा लेकिन चीन जाते समय रास्ते में उसका जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसके सभी साथी मारे गये। वह अकेला किसी तरह कालीकट आया, वहॉ से मालद्वीप, श्रीलंका होते हुए कुछ समय तक मदुरई में रहा। अन्ततोगत्वा बंगाल से जावा, सुमात्रा आदि होते हुए दुबारा चीन पहुॅचा। यद्यपि आधुनिक इतिहासकार कर्नल यूल ने अपनी पुस्तक में यह सन्देह व्यक्त किया है कि वह कभी चीन गया भी था। लेकिन अन्य स्रोतों से इस बात की पुष्टि होती है कि वास्तव में वह चीन गया था। चीन से लौटते समय पुनः कुछ समय के लिए वह कालीकट रूका और तत्पश्चात वहॉ से सीधे 1354 ई0 में अपने देश लौट गया।
- ली (Lee) ने Travels of Ibn-Battuta नाम से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है लेकिन यह अनुवाद त्रुटिपूर्ण तथा अपूर्ण है और अब उसे अप्रमाणित माना जाता है।
- दूसरा अनुवाद फ्रांसिसीयों ने किया है जो वर्तमान समय में विद्यमान है। C. Defenery तथा B.R.Sanguienette ने इसका अनुवाद किया है जिसका तीसरा और चौथा भाग भारत से सम्बद्ध है।
यह ‘अजाइब-अल-सफर का प्रामाणिक रूप माना जाता है क्योंकि यह अनुवाद इब्नबतूता की मूल पुस्तक पर आधारित है। जबकि ली का अनुवाद ‘अजाइब-अल-सफर‘ का संक्षिप्त रूप ‘सफरनामा‘ पर आधारित है। एक युरोपीय विद्धान Dozy Lyden ने लिखा है कि इब्नबतूता का संस्मरण प्रथम श्रेणी का यात्रा वृतान्त है। रिनाडे का मत है कि इब्नबतूता वास्तव में इब्नहौनल तथा अलमसूदी से भी उच्च कोटि का यात्री रहा है। फ्रांसीसी अनुवाद के तृतीय भाग में कुछ पॅंक्तियॉ मिलती है जिनमें यह लिखा है कि जब इब्नबतूता ने अपने देश मोरक्को लौट कर यात्रा संस्मरण लोगों को बताने लगा तो आम लोगों को उसकी बात पर यकीन नही हुआ। उसपर उसके साथियों ने यह विश्वास दिलाया कि उसकी बात में सत्यता का अंश पूर्णतः नीहित है। ‘अजाइब-अल-सफर‘ को सफरनामा, रेहला आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इस पुस्तक के द्धारा मुहम्मद बिन तुगलक के इतिहास का पुनर्निमाण किया जा सकता है। इब्नबतूता ने अपनी पुस्तक में मुहम्मद बिन तुगलक के पूर्व के दिल्ली सुल्तानों के बारे में संक्षिप्त उल्लेख किया है। उसके विवरण हसन निजामी, मिनहाज-उस-सिराज, अमीर खुसरो, जियाउद्दीन बरनी के तत्सम्बन्धी विवरणों से मेल खाते है। खिलजियों के शासनकाल के लिए भी अजाइब-अल-सफर महान ग्रन्थ है। डा0 के0एस0 लाल ने अपनी पुस्तक History of the Khalji's में अलाउद्दीन के शासनकाल के सम्बन्ध में इब्नबतूता के विवरणों के महत्व पर प्रकाश डाला है। इब्नबतूता अलाउद्दीन की मृत्यु के कुछ समय बाद ही हिन्दुस्तान आया था अतः उसे अलाउद्दीन के समकालीन बहुत से लोग मिल गए थे जो समकालीन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी थे। अतः अलाउद्दीन के शासनकाल के सम्बन्ध में अजाइब-अल-सफर में जो भी विवरण प्राप्त हो सकते है उसे काफी हद तक प्रामाणिक माना जा सकता है। यद्यपि इब्नबतूता स्वयं तिथिक्रम से इतिहास नही लिखता है लेकिन उसके भारत में आगमन की तिथि निश्चित होने से तात्कालीन अनेक घटनाओं की तिथि निर्धारित करने में सहायता प्राप्त होती है। इब्नबतूता मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल के सम्बन्ध में कुछ विशेष सूचनाएॅ देता है जैसे दरबारी जीवन, क्रियाकलाप, समकालीन परम्पराएॅं, रीतिरिवाज, सुल्तान की योजनाएॅ, प्रशासनीक सुधार, सुल्तान का चरित्र आदि। जियाउद्दीन बरनी ने सुल्तान का जो पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन किया है उसको निष्पक्ष बनाने में इब्नबतूता हमारी सहायता करता है। इब्नबतूता को एक निष्पक्ष इतिहासकार माना जा सकता है क्योंकि वह जब भारत में हजारों मील दूर अपने देश में बैठकर इतिहास लिख रहा था इस सम्बन्ध में न तो उसके उपर किसी का दबाव था और न ही उसे कोई लालच हो सकता था। इब्नबतूता द्धारा दी गई बहुत सी सूचनाएॅं बरनी की ‘‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘‘ में मिलती है लेकिन साथ ही इब्नबतूता बहुत सी ऐसी सूचनाएॅ भी देता है जो बरनी की पुस्तक में नही मिलती है। उदाहरणार्थ – सुल्तान गयासुद्दीन की मृत्यु के अनेक कारणों में इब्नबतूता ने सरकार की कार्यप्रणाली तथा प्रशासनीक न्याय की जो बात कही है वह इसलिए अधिक प्रामाणिक माना जा सकता है क्योंकि वह स्वयं न्याय विभाग से सम्बद्ध था। इब्नबतूता ने इतिहास की घटनाओं को दैवीय इच्छा के अनुसार घटित होने पर विश्वास किया। जैसा कि लगभग सभी समकालीन भारतीय और विदेशी इतिहासकार मानते थे। उसने पारम्परिक, नैतिक और धार्मिक सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि में इतिहास की व्याख्या की है। उसका यह विश्वास था कि इतिहास का प्रयोग इस्लाम को महिमामण्डित करने के लिए किया जाना चाहिए। उसने इतिहास के उपदेशात्मक तथ्यों पर बहुत बल दिया। उन तथ्यों के बारे में इब्नबतूता पर अधिक विश्वास नही किया जाना चाहिए जिसको उसने स्वयं नही देखा था। यद्यपि कि जिन घटनाओं के उसने नही देखा था उसके बारे में उसने किसी न किसी महत्वपूर्ण प्रत्यक्षदर्शी विवरण के आधार पर विवरण दिया है। एक प्रकार से इब्नबतूता ने इतिहास को रोमान्स तथा कल्पना से मिला दिया है। उसमें गप हॉंकने की भी आदत थी और अक्सर वह घटनाओं को बढा-चढा कर प्रस्तुत करने का आदि भी था। यद्यपि वह तिथिक्रम का अनुसरण नही करता है फिर भी वह इतिहास का पूर्णरूपेण मूल्यांकन करता है।
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