रेगुलेटिंग एक्ट -
रेग्यूलेटिंग एक्ट ब्रिटिश पार्लियामेण्ट का कम्पनी के शासन में प्रथम हस्तक्षेप था जिसके आधार पर आगे आने वाले कानूनों की रूपरेखा तैयार हुई। दीवानी अनुदान के फलस्वरूप कम्पनी बंगाल, विहार और उडीसा प्रान्तों की वास्तविक शासक बन गई। इन प्रदेशों का वास्तविक प्रशासन कम्पनी के हाथों में आ जाने से कम्पनी के अधिकारीगण स्वतन्त्र हो गये। प्रदेशों में प्रशासन की बागडोर कम्पनी के सेवकों पर ही थी, जिन्हे बहुत कम वेतन मिलता था। उन लोगों ने इस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाया और भारतवासियों का भरपूर शोषण करने लगे। स्थिती यह थी कि जहॉ कम्पनी के कर्मचारी अधिकाधिक धन एकत्रित कर रहे थे, वही कम्पनी का व्यापार घाटे में जाने लगा था। फलतः कम्पनी ने ब्रिटिश सरकार से ऋण की मॉंग की। इन परिस्थितीयों में ब्रिटिश सरकार तथा वहॉ के राजनीतिज्ञों मेंं यह धारणा बन गई थी कि इस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन में बहुत बडी गडबडी हो गयी है। कम्पनी के अवकाशप्राप्त कर्मचारियों के धनी होकर इंग्लैण्ड लौटने तथा उनकी बढती हुई अपकीर्ति को देखकर ब्रिटिश सरकार को यह विश्वास हो गया कि उनका धन एवं सम्पति भारतीय जनता के ही शोषण का ही परिणाम है। फलतः कम्पनी तथा उसके कर्मचारियों के मामलों की जॉच के लिए ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने एक गोपनीय समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कम्पनी की अनेक त्रुटियॉ दिखलायी और उनके शीध्रताशीध्र सुधार की सिफारिश की। इस समिति के सिफारिश के फलस्वरूप ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने 1773 ई0 में एक कानून बनाया जिसे रेग्यूलेटिंग एक्ट का नाम दिया गया। इस अधिनियम की प्रमुख धाराओं को दो प्रमुख वर्गो में विभाजित किया जा सकता है –
- इंग्लैण्ड में प्रस्तावित सुधार एवं परिवर्तन तथा
- भारत के प्रस्तावित सुधार एवं परिवर्तन।
रेग्यूलेटिंग एक्ट द्धारा इंग्लैण्ड के कम्पनी के विधान में निम्न परिवर्तन किये गये -
- प्रारम्भ में कम्पनी का एक कोर्ट ऑफ प्रापराइटर्स हुआ करता था जिसमें मतदान के वे अधिकारी हुआ करते थे जिनका हिस्सा 500 पाउण्ड का होता था परन्तु रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्धारा मताधिकारा उसे प्रदान किया गया जिसका हिस्सा 1000 पाउण्ड का हो।
- डायरेक्टरों का चुनाव एक वर्ष के स्थान पर चार वर्ष के लिए करने की व्यवस्था की गई जिनमें से एक- चौथाई सदस्य को प्रत्येक वर्ष अवकाश लेने की भी व्यवस्था की गई। डायरेक्टरों को कम्पनी की धन सम्बन्धी रिपोर्ट ब्रिटिश अर्थमन्त्री को और सैनिक तथा राजनीतिक कार्यो की रिपोर्ट अंग्रेज विदेशमंत्री को देनी होगी।
भारत के लिए सुधार -
- बंगाल के गवर्नर को भारत का गवर्नर बनाया गया और मद्रास तथा बम्बई के गवर्नर उसके अधीन कर दिये गये। अब बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल के नाम से जाना जाने लगा।
- प्रशासन में गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की एक परिषद नियुक्त की गई जिसमें निर्णय बहुमत द्धारा होता था। गवर्नर जनरल केवल उसी समय निर्णायक मत दे सकता था जबकि परिषद के सदस्यों के मत बराबर संख्या में विभाजित हो जाय।
- इस अधिनियम द्धारा कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। उल्लेखनीय है कि यह सर्वोच्च न्यायालय भारत के लिए उच्चतम न्यायालय नही था। कुछ मामलों में अपील लंदन स्थित प्रिवी परिषद् में की जा सकती थी।
- देशी राज्यों से युद्ध और शान्ति के लिए गवर्नर जनरल तथा कौन्सिल को सीमित अधिकार प्राप्त थे। मद्रास और बम्बई के गवर्नर युद्ध और शान्ति विषयक निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र नही थे।
- इस अधिनियम के द्धारा कम्पनी के कर्मचारियों का निजी व्यापार बन्द कर दिया गया। उनके उपहार, भेंट, रिश्वत आदि स्वीकार करने पर रोक लगा दी गई तथा इसका उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की गई।
रेगुलेटिंग एक्ट की समीक्षा -
इस अधिनियम द्वारा ब्रिटिश संसद ने कम्पनी के राजनीतिक तथ्यों को निश्चित रूप से मान्यता प्रदान की। संसद ने प्रान्तों के शासन के स्वरूप को निर्धारित करने का अधिकार अपने हाथ में ले लिया। इसके पूर्व वे प्रान्त जो कम्पनी के अधीन थे कम्पनी की व्यक्तिगत सम्पति समझे जाते थे। इस अधिनियम के पश्चात वे ब्रिटिश संसद के अधीन हो गये। प्रोफेसर कीब ने लिखा है कि – ‘‘इस अधिनियम से कम्पनी की इंग्लैण्ड स्थित संस्थाओं के विधान में विशेष परिवर्तन किया गया। भारत सरकार के स्वरूप में भी चन्द सुधार किये गये। कम्पनी के सभी विजित क्षेत्रों पर एक शक्ति का नियंत्रण स्थापित किया गया। कम्पनी को किसी अंश तक ब्रिटिश मन्त्रीमण्डल की देखरेख में रखने का प्रयत्न किया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा भारत सरकार को विधायीनी शक्तियॉ प्रदान की गई। गवर्नर जनरल को अपनी परिषद् की सलाह से कम्पनी के प्रदेशों के लिए नियम बनाने का अधिकार प्रदान कर दिया गया।
- इस अधिनियम द्वारा कम्पनी के भारतीय प्रदेशों में केन्द्रीय शासन का सूत्रपात हुआ। इसके पूर्व बम्बई तथा मद्रास में अलग-अलग कम्पनी का शासन था और बंगाल का शासन अलग था परन्तु इस अधिनियम द्वारा बम्बई तथा मद्रास के प्रेसीडेन्सी और उनके परिषदों को बंगाल के गवर्नर के अधीन और उसके निरीक्षण में कर दिया गया और उनकी स्वतन्त्र सत्ता छीनकर केन्द्रीय शासन की नींव डाली गयी।
- इस अधिनियम द्वारा एक तरह से न्यायपालिका का जन्म हुआ। अधिनियम द्वारा बंगाल में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई जिसे प्रारंभिक और अपीलीय दोनो प्रकार के अधिकार प्रदान किये गये।
- इस अधिनियम के द्वारा यह भी स्पष्ट हो गया कि कम्पनी की कोई स्वतन्त्र सत्ता नही है और ब्रिटिश संसद को कम्पनी के शासनाधिकार में हस्तक्षेप करने का पूर्ण अधिकार है।
- कम्पनी के प्रबन्ध को यह बात समझ में आ गई कि यदि उन्होने सुधारवादी नीति के तहत् कार्य नही किया तो ब्रिटिश सरकार कम्पनी को अपने अधिकार में कर लेगी। अतः कम्पनी के अधिकारियों ने भी ऐसे कृत्यों को करना कम कर दिया जिससे उनका व्यक्तिगत लाभ होता था।
- इस अधिनियम के द्वारा भारतीय सेवाओं में आए दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा एक व्यक्ति के स्थान पर कौंन्सिल के शासन की स्थापना हुई।