मध्यकालीन सिक्कों का इतिहास हमें भारत पर अरबों के आक्रमण के समय से ही मिलने लगते है। संक्षेप में सल्तनत काल में प्रचलित सिक्को का विवरण निम्न है
- दिरहम – अरबो ने जब सिन्ध पर कब्जा किया तो दिरहम नामक सिक्के चलाए।
- देहलीवाल – तुर्को के आक्रमण के समय अथवा भारत विजय के समय दिल्ली और उसके आसपास प्रचलित सोना-चॉदी मिश्रित सिक्का देहलीवाल कहलाता था। महमूद गजनबी द्वारा जारी देहलीवाल सिक्कों पर अरबी और शारदा लिपि में लिखे लेख है। उल्लेखनीय है कि शारदा लिपि काश्मीर में प्रचलित थी।
- गहडवाली सिक्के – गहडवाल राज्य में प्रचलित सिक्के गहडवाली सिक्के के नाम से जाने जाते है। जब मोहम्मद गोरी ने गहडवाल नरेश जयचन्द को कन्नौज के युद्ध में पराजित कर उसपर आधिपत्य कर लिया तो वहॉ के प्रचलित सिक्कों में उसने आंशिक परिवर्तन किया। उसने गहडवाली सिक्कों पर भारतीय चिन्ह लक्ष्मी और नागरी लिपि को अपनाया। उसने अपने सिक्को पर एक तरफ कलीमा और दूसरी तरफ लक्ष्मी की आकृति अंकित करवाई। उसी के सिक्कों पर ‘अव्यकतमेक मुहम्मद अवतार‘ लिखा रहता था।
टंका – सल्तनतकालीन शासक इल्तुतमिश द्वारा जारी किया गया चॉदी का सिक्का टंका अथवा तनका कहलाता था। इसका वजन 175 ग्रेन था।
- जीतल – इल्तुतमिश द्वारा जारी ताम्बे का सिक्का जीतल कहलाता है। उल्लेखनीय है कि इल्तुतमिश ने अरबी पद्धति पर भारत में सिक्कों का प्रचलन प्रारम्भ किया। ग्वालियर विजय के पश्चात इल्तुतमिश ने अपने सिक्के पर रजिया का नाम अंकित करवाया। सिक्कों पर छपाई का वर्ष और टकसाल का नाम अंकित करने की परिपाटी भी इल्तुतमिश ने ही प्रारम्भ किया। टंका और जीतल के मध्य विनिमय दर 1ः48 होता था।
- माशा – बलबन द्वारा चलाया गया चॉदी का सिक्का।
- टंका-ए-अलाई – मुबारक शाह खिलजी द्वारा चलाया गया सोना का सिक्का।
- दीनार – मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में चलाया गया सोने का सिक्का दीनार कहलाता था। इब्नबतूता ने इसे 200 ग्रेन का बताया है।
अदली – मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में चलाया गया चॉदी का सिक्का अदली कहलाता था। इसका वजन 140 ग्रेन होता था। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने सिक्कों पर ‘‘अल सुल्तान जिल्ली अल्लाह‘‘ अंकित करवाया।
- शंशगनी – फिरोज तुगलक ने अपने शासनकाल में बडी संख्या में चॉदी और ताम्बे के मिश्रित सिक्के भी चलाए जिनमें से एक नया सिक्का शंशगनी कहलाता था जो 6 जीतल के समतुल्य था। उसके समय में 8 जीतल का सिक्का हस्तगनी या चिहल कहलाता था। शंशगनी के आधे मूल्य का सिक्का दोगानी कहलाता था।
अद्धा और बिख – फिरोज तुगलक के शासनकाल में ताम्बे का चलाया गया नया सिक्का अद्धा और बिख के नाम से जाना जाता है। उसने अपने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र फतेह खॉ का नाम भी अंकित करवाया।
- बहलोली – बहलोल लोदी द्वारा प्रचलन में लाया गया ताम्बे का सिक्का बहलोली सिक्का कहलाता है। यह 1/40 टंका के समतुल्य था।