window.location = "http://www.yoururl.com"; Currency system during Mughal Period (मुगलकालीन मुद्रा व्यवस्था)

Currency system during Mughal Period (मुगलकालीन मुद्रा व्यवस्था)



मुगलकालीन मुद्रा व्यवस्था अत्यन्त सुव्यस्थित थी। मुगलकालीन मुद्रा व्यवस्था को त्रिपदात्मक मुद्रा प्रणाली के नाम से जाना जाता है। इस काल में तीन प्रकार के सिक्के ढाले जाते थे- सोना, चॉदी और ताम्बा। विभिन्न शासकों के अन्तर्गत मुद्राओं के विकास का विवरण निम्न है -

  • बाबर – 15वीं शताब्दी के प्रारम्भ में शाहरूख तैमूरी वंश का प्रसिद्ध शासक हुआ। उसके द्वारा ‘शाहरूख‘ नाम का एक सिक्का निकाला गया जो मध्य एशिया और ईरान में प्रचलित था। शाहरूख की तर्ज पर बाबर ने काबुल से चॉदी का एक सिक्का चलाया। तत्पश्चात उसने ‘बाबरी‘ नाम का एक सिक्का कान्धार से चलाया। चॉदी और ताम्बे के सिक्के उसने आगरा की टकसाल से 1529 ई0 में निकाला। बाबर के सिक्कों पर सीधी ओर कलमा और चारो खलीफाओं का नाम और दूसरी ओर बाबर की उपाधि ‘अल सुल्तान अल आजम वा अल खाकान अल मुकर्रम जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर बादशाह गाजी‘ अंकित था। ऐसा माना जाता है कि बाबर और हुमायूॅ ने पहले से चली आ रही मुद्रा प्रणाली को ही जारी रखा और उसी के आधार पर अपने नाम के सिक्के चलाए।

  • हुमायूॅ – हुमायूॅ के सिक्के बाबर की ही भॉति थे। सिक्कों पर बाबर के स्थान पर हुमायूॅ का नाम अंकित था।

  • शेरशाह – भारतीय मुद्राओं के इतिहास में शेरशाह का शासनकाल एक परीक्षण का काल माना जाता है। इतिहासकार बी0ए0 स्मिथ लिखते है कि – शेरशाह को ऐसी सुधरी हुई मुद्रा पद्धति को स्थापित करने का सम्मान प्राप्त है जो मुगल काल में चलती रही और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय में 1835 तक बनी रही तथा जो वर्तमान ब्रिटिश मुद्रा का आधार है। उसने मिली जुली धातुओं के सिक्कों के स्थान पर शुद्ध सोने, चॉदी और ताम्बे के सिक्के प्रचलित किये जिनका तौल और आकार निश्चित था। उसने शुद्ध चॉदी के सिक्के चलाये जो तौल में 178 ग्रेन का होता था और इसे रूपया कहा जाता था। उसके कुछ सिक्कों पर सुल्तान के अतिरिक्त इस्लाम के प्रथम चार खलीफाओं का नाम भी अंकित था। शेरशाह ने ताम्बे का जो सिक्का चलाया उसे पैसा के नाम से जानते है। उसने रूपये के आधे, चौथाई, आठवें तथा सोलहवें भाग के भी सिक्के चलाए। शेरशाह ने सोने के सिक्के भी चलाए परन्तु उसकी संख्या बहुत कम है और वे बहुत लोकप्रिय भी नही थे। शेरशाह ने साम्राज्य के विभिन्न भागों में शाही टकसाल स्थापित किये, जहॉ से सिक्के जारी किये जाते थे। एक प्रकार से उसने ऐसी मुद्रा प्रणाली की स्थापना का प्रयास किया जो खोट रहित थे इसलिए मुद्रा टंकन के इतिहास में शेरशाह का महत्वपूर्ण स्थान है।

  • अकबर – मुगलकालीन सिक्कों के विकास में अकबर ने विशिष्ट भूमिका का निर्वहन किया। शासन के प्रारंभिक वर्षो में उसने शेरशाहकालीन सिक्कों का अनुसरण किया। 1577 ई0 में मुद्रा में सुधार करने तथा उनमें कलात्मक रूप देने के लिए उसने अब्दुसमद को टकसाल का निदेशक नियुक्त किया और फतेहपुर सिकरी की टकसाल का अधिकारी नियुक्त किया। इस क्रम में अकबर ने मुजफ्फर खॉ को लाहौर की टकसाल, राजा टोडरमल को बंगाल की टकसाल और ख्वाजाशाह मंसूर को जौनपुर की टकसाल की देखभाल करने का कार्य दिया।

शासन के प्रारम्भ में अकबर ने ‘मुहर‘ नामक एक सोने का एक सिक्का चलाया जो 169 ग्रेन वजन का होता था। कहीं कही इसे अशरफी भी कहा गया है। वाणिज्यिक लेन देन में इस सिक्के का प्रयोग नही होता था। आइन-ए-अकबरी से ज्ञात होता है कि उसने 26 सोने, 9 चॉदी, और 4 ताम्बे के सिक्के चलाए। परन्तु इनमें से अभी तक कई सिक्के नही मिल पाये है। अकबर ने ‘रूपया‘ नाम से चॉदी का सिक्का चलाया जिसका वजन 178 ग्रेन का था। अकबर ने ‘जलाला‘ नाम का सिक्का भी चलाया गया जो रूपया के मूल्य के बराबर था परन्तु इसका आकार चौकोर था। इसके अतिरिक्त ‘दरब‘ (आधा रूपया), चन र्(चौथाई रूपया), पनडाउ (रूपये का पॉचवा भाग), अष्ठा (रूपये का आठवॉ भाग), दश (रूपये का दशवॉ भाग), आना (रूपये का सोलहवॉ भाग तथा सूकी (रूपये का बीसवॉ भाग) नामक सिक्के भी प्रचलित किये।

अकबर द्वारा चलाया गया ताम्बे की प्रधान मुद्रा ‘दाम‘ थी जिसे ‘पैसा‘ या ‘फलूस‘ भी कहा जाता था। इसकी तौल 323.5 ग्रेन होती थी। 40 दाम का 1 रूपया होता था। ताम्बे के सिक्कों में अधेला (आधा दाम), पावला (चौथाई दाम), और दमडी (आठवॉ भाग) नाम से भी सिक्के निकाले गये। दाम को जब पच्चीस भागों में विभक्त किया जाता था तो इसे जीतल कहते थे। अकबर कालीन सिक्के गोल और चौकोर दोनो आकार में थे। उसके सिक्को ंपर बादशाह अकबर का नाम, उसकी पदवी, टकसाल का नाम और साम्राज्य अक्षय रहे, अंकित था। बाद में उसके सिक्कों पर ‘अल्ला हू अकबर, जल्ले जलाल हू‘ अंकित कराया गया। अपने शासन के 40वें वर्ष कुछ श्रेणी के सिक्कों पर अकबर ने पद्यात्मक आख्यान अंकित कराया जिसे बाद में कुछ कारणों से बन्द कर दिया गया। असीरगढ दुर्ग विजय की स्मृति में अकबर ने एक सोने का सिक्का चलाया जिसमें एक ओर बाज तथा दूसरी ओर टकसाल का नाम, ढालने की तिथि अंकित करायी। इसी अवसर पर चॉदी के कुछ सिक्के भी ढाले गये जिसमें अकबर एक बाज के साथ घोडे पर सवार प्रदर्शित किया गया है। अपने शासन के 50वें वर्ष में अकबर ने कुछ ऐसे भी सिक्के ढलवाये जिनपर राम और सीता की मूर्ति अंकित है और नागरी लिपि में ‘राम सिया‘ लिखा हुआ है। डा0 परमेश्वरी लाल गुप्ता के अनुसार आगरे से एक अन्य सिक्का चलाया गया जिसकी एक तरफ बत्तख अंकित है। अपने शासनकाल में अकबर ने सोने के सिक्के ढालने के लिए मात्र चार स्थान सीमित कर दिये – फतेहपुर सिकरी, राजमहल (बंगाल), अहमदाबाद और काबुल। इसी प्रकार चॉदी के सिक्के 14 स्थानों पर ढाले जाते थे।

                                                                        मुहर सिक्के

                                                            राम-सिया सिक्के

  • जहॉगीर – जहॉगीर के काल के सिक्के भी अकबर के काल के सिक्कों के आधार पर ही है। जहॉगीर पहला बादशाह था जिसने सिक्कों पर अपनी ही मूर्ति खुदवाई और उसके एक सिक्के पर तो सीधे हाथ में शराब का प्याला लेते हुए उसकी मूर्ति अंकित है। उसके कुछ सिक्कों पर उसकी अर्द्धप्रतिमा का पार्श्व चित्र अंकित है। उसने ‘निसार‘ (एक रूपये का चौथाई) नाम का सिक्का चलाया। इसके अतिरिक्त उसने ‘नरअपशॉं‘ तथा ‘खैर काबुल‘ नामक सिक्के भी प्रचलित किये। उसके शासनकाल में सिक्कों के भार में 20 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गयी और सोने के सिक्के 202 ग्रेन के तथा चॉदी के सिक्के 212 ग्रेन के बनने लगे। सिंहासनारूढ होने के उपरान्त एक सोने की मुहर चलाइ्र्र गयी जिसपर अकबर का चित्र अंकित था। जहॉगीर के एक सिक्के पर राशी चक्र भी मिलता है।

  • शाहजहॉ – शाहजहॉ ने भी जहॉगीर की भॉति अकबर की मुद्रा प्रणाली को जारी रखा किन्तु दोनो ने सिक्कों पर अपना नाम अवश्य खुदवाया। शाहजहॉ के सिक्कों पर भी पद्यात्मक आख्यान अंकित है।

  • औरंगजेब – औरंगजेब के शासनकाल में पहले से प्रचलित मुद्रा व्यवस्था में थोडा सा परिवर्तन हुआ और रूपये में 5/8 प्रतिशत वृद्धि कर दी गयी। मुगल साम्राज्य के पतन तक यह प्रणाली जारी रही। औरंगजेब ने सिंहासनारोहण होने के बाद सिक्कों पर कलमा अंकित होने की प्रथा को बन्द कर दिया और इसके बाद सिक्कों पर कलमा अंकित नही किया गया। औरंगजेब के सिक्कों पर उसका नाम और पदवी इस प्रकार अंकित किया गया था – ‘‘अबू अल जफर मुइउद्दीन मुहम्मद बहादुरशाह आलमगीर औरंगजेब बादशाह गाजी।‘‘ इसके बाद के सिक्कों पर मीर अब्दुल बाकी शाहबाई द्वारा रचित एक पद्य अंकित करवाया गया।

  • तटीय इलाकों में छोटे-मोटे खरीद-फरोख्त के लिए कौडियों (समुद्री शिपी) का प्रयोग किया जाता था जो मुख्य रूप से मालद्वीप के क्षेत्र से लाई जाती थी। लगभग 2500 कौडी 1 रूपये के बराबर होता था। मुगल साम्राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में चॉदी के रूपये के अलावा अन्य प्रकार के सिक्के भी उपयोग में लाए जाते थे। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण ‘महमूदी‘ था जो गुजरात का काफी पुराना चॉदी का सिक्का था। गुजरात में मुगल शासन की स्थापना के बावजूद इसकी ढलाई जारी रही और वहॉ के वाणिज्यिक लेनदेन में इसका प्रयोग होता रहा। विजयनगर साम्राज्य मे ‘हूण‘ या ‘पगोडा‘ नामक सोने का सिक्का चला करता था जो विजयनगर के विघटन के बाद बीजापुर और गोलकुण्डा राज्यों में भी प्रचलित रहा।

  • सिक्कों के लिए सामान्यतया इस काल में सोने चॉदी अधिकांशतः पूर्वी अफ्रीका से आता था। राजपूताना, मध्यभारत, तथा हिमालय पर्वतमाला मे ताम्बा अधिक पाया जाता था। मुगल काल में टकसाले केन्द्रीय नियंत्रण में होते हुए भी ढलाई के क्षेत्र में इस कदर स्वतन्त्र थी कि कोई भी व्यक्ति वहॉ चॉदी ले जाकर सिक्के ढलवा सकता था। सिक्के ढलवाने का शुल्क ढाले हुए सिक्कों का लगभग 5-6 प्रतिशत होता था। जारी किये गये वर्ष के बाद के वर्षो में सिक्के के मूल्य से कुछ खास राशी काट ली जाती थी। अगर कोई सिक्का एक वर्ष से अधिक प्रचलन में रहा तो 3 प्रतिशत काटा जाता था और यदि यह दो वर्ष से ज्यादा पुराना होता था तो 5 प्रतिशत की कटौती की जाती थी।

  • मुगलकाल में टकसाल देश के विभिन्न शहर जैसे – आगरा, फतेहपुर सिकरी, राजमहल, अहमदाबाद, इलाहाबाद, दिल्ली, काबुल, पटना, लाहौर, मुल्तान, और काश्मीर में थे। टकसाल का प्रमुख अधिकारी दारोगा-ए-दारूलजर्ब होता था और सराफी उसके सहायक होते थे। ‘सराफी‘ सिक्कों की शुद्धता देखने के लिए जिम्मेदार था। ‘मुशरिफ‘ लेखे की देखरेख करता था और तहसीलदार प्रतिदिन के लाभ का हिसाब-किताब रखता था। ‘महरकान‘ सिक्कों को ढालने अथवा खॉचे बनाता था और ‘वजनकश‘ नामक कर्मचारी सिक्कों का वजन जॉचता था। ‘सिक्काची‘ नामक कारीगर सिक्के पर ठपपा लगाने का कार्य करता था। अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में टकसालों की एक सूची दी है जिसके अनुसार 42 टकसालों में ताम्बे के सिक्के, 14 टकसालों में चॉदी के सिक्के और 4 टकसालों में सोने के सिक्के ढाले जाते थे। 17वीं शताब्दी के अन्त तक चॉदी के सिक्के ढालने वाले टकसालों की संख्या बढकर 40 हो गयी। सोने का सबसे प्रचलित सिक्का मुगलकाल में ‘मुहर‘ था। आइन-ए-अकबरी के अनुसार 1 मुहर 9 रूपये के बराबर थी। हाकिन्स (1608-1612) लिखता है कि 1 अशरफी 10 रूपये के बराबर होती थी। सोने की एक मुहर 1620 ई0 में 14 रूपये के बराबर थी जबकि 1676 में 11 या 12 रूपये के बराबर थी। 1695 ई0 में यही मुहर 13.25 रूपये के बराबर था। 1 दाम का वजन 323 ग्रेन अर्थात 1 तोला 8 माशा और 7 सुर्ख था। सामान्यतया 40 दाम के बराबर 1 रूपया होता था। समय और स्थान के हिसाब से दाम का मूल्य परिवर्तित होता रहता था। गुजरात में 1636 इ्र्र0 में 26 या 27 दाम का 1 रूपया था। जनवरी 1627 ई0 में आगरा में 25 दाम का 1 रूपया होता था। 1640 ई0 में बंगाल में 28 दाम का 1 रूपया था। 1661 ई0 में आलमगीरी रूपये का मूल्य औरंगाबाद में लगभग 15 दाम था। मुगल भारत में एक ऐसी अर्थव्यवस्था का विकास हुआ जो मुद्रा पर आधारित थी, जिसमें हुण्डी, बीमा, बैंकिंग आदि सभी विकसित वाणिज्य पद्धतियॉ विद्यमान थी। यही मुद्रा प्रणाली आगे चलकर ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली का आधार बनी।

सन्दर्भ –

  1. वी0 ए0 स्मिथ : कैटलाग आफ द क्वायन्स इन द इण्डियन म्यूजियम, कलकत्ता जिल्द-1
  2. हरिश्चन्द्र वर्मा : मध्यकालीन भारत, जिल्द-1 व 2 हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, नयी दिल्ली
  3. इरफान हबीब : मुगलकालीन भारत की कृषि व्यवस्था (1556-1707)
  4. तपनराय चौधरी एवं इरफान हबीब : द कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, जिल्द-1
  5. एच0 सी0 वर्मा : मध्यकालीन भारत
  6. एच0 के0 शेखानीए, पी0एम0 जोशीः हिस्ट्री ऑफ मेडिवल डेक्कन(1295-1724)ए जिल्द-2

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