मुद्रा के तौर पर आज हम जिस रूपये का प्रयोग करते है उसका चलन भारत में बहुत समय पहले से ही है। फर्क्र सिर्फ इतना है कि तब भारत में मुद्रा के तौर पर चॉदी और सोने के सिक्के चलते थे। यह चलन 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक बरकरार था लेकिन जब युरापीय कम्पनियॉ व्यापार के लिए भारत आई तब उन्होने अपने सहूलियत के लिए यहॉ निजी बैंक की स्थापना की और फिर इसके बाद से ही सोने और चॉदी की मुद्रा की जगह कागजी मुद्रा का प्रचलन प्रारम्भ हो गया। भारत की सबसे पहली कागजी मुद्रा कलकत्ता के बैंक ऑफ हिन्दुस्तान ने 1770 में जारी किया था। यह ध्यान देने योग्य बात है कि 1861 तक ये सारे रूपये राज्यों और ब्रिटिश व्यापारियों के सहयोग से स्थापित बैंकों द्वारा जारी किये गये थे।
ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी ने सूरत नामक शहर में सन् 1612 ई0 में अपना निवास बनाया और 17वीं शताब्दी के मध्य से सिक्के बनाना प्रारम्भ कर दिया। आरम्भिक युरोपिय सिक्के उनके न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर प्रचलित नही थे। 1717 ई0 में अंग्रेजों ने मुगल साम्राज्य के नाम पर अपना खुद का रूपया छापने का अधिकार प्राप्त कर लिया। हालॉकि ब्रिटिश सरकार ने भारत में पाउण्ड लाने की भरपूर कोशिश की लेकिन रूपया के आगे ऐसा नही हो सका। 1717 ई0 में अंग्रेजों ने मुगल बादशाह फर्रूखशियर से ब्रिटिश मुद्रा को बाम्बे मिण्ट में बनाने की इजाजत ली।
ब्रिटिश शासन काल में निर्मित सोने के सिक्कों को कैरोलिना, चॉदी के सिक्कों को एंगलिना और ताम्बे के सिक्कों को कापरून कहा गया। छोटे-छोटे सिक्कों को टिनी कहा जाता था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले कागज की मुद्रा को छापा गया। कागज की इस मुद्रा को सबसे पहले बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, जनरल बैंक इन बंगाल और द बंगाल बैंक ने जारी किया। 3 दिसम्बर 1812 ई0 को बैंक ऑफ बंगाल ने 250रू0 का सिक्का जारी किया। अधिकृत रूप से ब्रिटिश सरकार ने कागजी मुद्रा का चलन 1861 ई0 में ‘पेपर करेन्सी एक्ट‘ लागू करके किया। 1861 में औपनिवेशिक भारत में 10 रूपये का कागजी नोट प्रयोग में आया था। 1864 में 5 रूपये का नोट और 1899 में 100 रू0 के नोट आये। 1857 के आन्दोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने रूपये को औपचारिक रूप से सरकारी मुद्रा घोषित कर दिया। 1862 में रानी विक्टोरिया के सम्मान में उनकी तश्वीर वाले बैंक नोट छापे गये और उसके बाद कई राजाओं की तश्वीर छपती रही। यहॉ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि रिजर्व बैंक की स्थापना से पहले ब्रिटिश सरकार एक रूपये का जो नोट चलाती थी उसे करेन्सी नोट कहा जाता था। उसी पद्धति पर एक रूपये का नोट भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा करेन्सी नोट के रूप में चलाया जाता है। 1928 में नासिक में भारत का पहला प्रिटिंग प्रेस लगाए जाने के पहले तक सारी कागजी मुद्राएॅ बैंक ऑफ इंग्लैण्ड से छप कर आती थी।
औपचारिक रूप से 1935 ई0 में भारतीय रिजर्व बैंक स्थापित हुआ और फिर इसके द्वारा ही भारतीय सरकार की विभिन्न मुद्रा छपने लगी। रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये गये नोटों पर प्रामिस के कारण ही इन नोटों को ‘‘प्रोमिसरी नोट‘‘ कहा जाता है। जनवरी 1938 में भारतीय रिजर्व बैंक ने सबसे पहला नोट 5 रूपये का जारी किया था जिसपर किंग जार्ज षष्टम की तश्वीर छपी थी। 1944 ई0 में जापानियों द्वारा जाली नोट बनाए जाने के डर से रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने पहली बार सुरक्षा धागे और वाटरमार्क का प्रयोग किया। 1947 में भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद ‘‘आना पद्धति‘‘ सामने आया। इसी वक्त ब्रिटिश राजा की तश्वीर को सारनाथ के अशोक स्तम्भ से बदल दिया गया। 1949 ई0 में भारत के स्वतन्त्र होते ही सरकार ने अशोक स्तम्भ की छाप वाला एक रूपये की करेन्सी नोट छपवाना शुरू किया और 5, 10 और 100 रू0 के प्रामिसिंग नोट रिजर्व बैंक ने पहले से ही छापना शुरू कर ही दिया था। भारतीय रिजर्व बैंक ने अबतक सबसे ज्यादा मूल्य का नोट 10000 रू0 का जारी किया जिसे स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद बन्द कर दिया गया। वर्ष 1955 ई0 में इण्डियन कॉइनेज एमेंडमेंट एक्ट के बाद 1 अप्रैल 1957 से ‘‘दशमलव प्रणाली‘‘ पेश की गई जिसके अन्तर्गत एक रूपये में 100 पैसे होने लगे और इनका आकार ऐसा रखा गया कि नेत्रहीन लोग भी इसे पहचान सके। गॉधी के तश्वीर वाले नोट 1996 ई0 में लागू किया गया। 2010 में डी0 उदय कुमार ने भारतीय रूपया के लिए देवनागरी में नवीन चिन्ह बनाया जिसे 2012 में भारत सरकार ने लागू कर दिया। भारतीय मुद्रा छापने का अधिकार केवल भारत सरकार को है। भारत में केवल चार जगहों पर ही नोट छपते है मुद्रा – नासिक, सालबोनी-पश्चिम बंगाल, मैसूर-कर्नाटक और देवास- मध्यप्रदेश। इसका मुख्य कारण यह है कि केवल इन्ही जगहों पर बैंक नोट प्रेस, चार टकसाल और एक पेपर मिल है। जबकि भारतीय सिक्के भारत सरकार द्वारा छापे जाते है जिसकी शाखाएॅ मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा-उ0प्र0 में है।