window.location = "http://www.yoururl.com"; Sikander the Great (सिकन्दर महान)

Sikander the Great (सिकन्दर महान)


लगभग 326 ई0पू0 हखामनी साम्राज्य के आक्रमण के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत एक अन्य युरोपिय आक्रमण का शिकार हुआ। यह महान युरोपीय विजेता सिकन्दर के नेतृत्व में होने वाला मेसीडोन आक्रमण था जो पहले की अपेक्षा अधिक खतरनाक साबित हुआ। सिकन्दर महान एक अदम्य उत्साह, साहस और वीरता से परिपूर्ण शासक था। बचपन से ही उसकी इच्छा एक विश्व सम्राट बनने की थी। अपनी आन्तरिक स्थिती सुदृढ करने के पश्चात उसने अपनी दिग्विजय की व्यापक योजना तैयार की और शीध्र ही उसने एशिया, सीरिया, मिस्र, बेबीलोन, अफगानिस्तान, सिन्ध आदि को जीतने में आश्चर्यजनक ढंग से सफलता अर्जित की।

आक्रमण से पूर्व भारत की राजनीतिक दशा –

सिकन्दर महान के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक परिस्थितीयॉ अराजकता के दौर से गुजर रही थी। उस समय पश्चिमोत्तर भारत में अनेक छोटे-बडे जनपद, राजतंत्र और गणतंत्र विद्यमान थे जो परस्पर द्वेष और घृणा के कारण किसी बाह्य आक्रमण का संगठित रूप से मुकाबला कर सकने में असमर्थ थे। डा0 हेमचन्द्र राय चौधरी (Dr. Hemchandra Rai Chaudhry) ने इस प्रकार के कुल 28 स्वतन्त्र शक्तियों का उल्लेख किया है। समस्त परिस्थितीयों का अवलोकन कर तथा हखामनी साम्राज्य का विनाश करने के पश्चात सिकन्दर ने भारतीय विजय की ओर कूच किया। सर्वप्रथम सिन्धु नदी को पार करके सिकन्दर की सेनाएॅ तक्षशिला की ओर बढी। तक्षशिला का शासक आम्भी (Ambhi) ने स्वयं को पूरी जनता तथा सेना के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद उसकी सेनाएॅ पोरस (Porus) के राज्य की ओर बढी लेकिन पोरस के राजा ने आत्मसमर्पण करने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप दोनो शासको के मध्य भीषण संघर्ष हुआ जिसमें पोरस की पराजय हुई और उसे बन्दी बना लिया गया। लेकिन उसके स्वाभिमानपूर्ण आचरण के कारण सिकन्दर ने न केवल उसके राज्य को वापस कर दिया अपितु उसका काफी विस्तार भी कर दिया। इसके पश्चात अपना विजय अभियान जारी रखते हुए सिकन्दर मध्य पंजाब के व्यास नदी के तट पर आया। व्यास नदी सिकन्दर के उत्कर्ष का चरम बिन्दू माना जाता है। सिकन्दर इससे आगे न बढ सका क्योकि इसी समय उसकी सेना में विद्रोह हो गया और उसके सैनिकों ने आगे बढने से इन्कार कर दिया। यद्यपि सिकन्दर ने अपने सैनिकों को आगे बढने के लिए हर प्रकार से प्रेरित किया और यथासंभव हर प्रयत्न किये लेकिन वह सफल न हो सका। अन्ततः उसने अपने सैनिको को वापस लौटने का निर्देश दे दिया। इस प्रकार निराश मन से जिस मार्ग से सिकन्दर भारत आया था उसी मार्ग से वह और उसकी सेनाएॅ वापस लौट गयीं।

सिकन्दर के आक्रमण का प्रभाव -

जहॉ तक सिकन्दर के आक्रमण के प्रभावों का प्रश्न है – इस सन्दर्भ में सभी इतिहासकार एकमत नहीं है। एक तरफ इतिहासकारों का एक वर्ग विशेषकर तात्कालीन यूनानी लेखक सिकन्दर के भारतीय आक्रमण को एक बडी महत्वपूर्ण घटना मानते है वही दूसरा वर्ग इसके विपरित इसे नितान्त महत्वहीन मानते हुए यह कहता है कि इसका भारतीय जनजीवन पर कोई खास महत्व और प्रभाव नही पडा। इन इतिहासकारों का मत है कि सिकन्दर ऑधी की तरह आया और चला गया। प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेण्ट ए0 स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘Early History of India’ में लिखा है कि – ‘‘भारत अभी भी अपरिवर्तनीय बना रहा। युद्ध के जख्म बहुत जल्दी ही भर गये थे। दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्र फिर से शीध्र ही मुस्कुराने लगा और इस क्षेत्र के लोग ने फिर से अपना मजदूरी का कार्य प्रारम्भ किया….. भारत का
यूनानीकरण नही हुआ।‘‘(India remain unchanged. The wound of the battle were quickly healed. The ravaged field smiled again as the patient oxen and no less patient husband men resumed their interrupted labours…. there was no Greeckisation of India.)

यद्यपि विन्सेण्ट ए0 स्मिथ का यह कथन सत्य है कि भारत का यूनानीकरण नही हुआ तथापि केवल इसी आधार पर यह कहना कि सिकन्दर के आक्रमण का भारतीय जनजीवन पर कोई प्रभाव ही नही पडा, सर्वथा अनुचित है। सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनो दृष्टियों से कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पडा। सिकन्दर के आक्रमण से पूर्व पश्चिमोत्तर भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य विद्यमान थे। सिकन्दर ने इन प्रदेशों को विजित कर अपने साम्राज्य में मिला लिया। प्रशासनीक सुविधा की दृष्टि से सिकन्दर ने इन प्रदेशों को 04 प्रशासनीक ईकाईयों में विभक्त किया। प्रथम प्रान्त में सिन्धु नदी के निचले भाग को सम्मिलित किया गया। यहॉ का क्षत्रप पिथोन था। द्वितीय प्रान्त में सिन्धु नदी के उत्तरी तथा पश्चिमी भाग को सम्मिलित किया गया। पहले इसका क्षत्रप निकानोर था लेकिन उसकी हत्या के बाद सिकन्दर ने फिलिप को यहॉ का क्षत्रप नियुक्त किया। तृतीय प्रान्त में सिन्धु तथा झेलम नदी के बीच का भू-भाग सम्मिलित किया गया जिसे तक्षशिला का शासक आम्भी के अधीन कर दिया गया। चतुर्थ प्रान्त में झेलम नदी के पूर्वी भाग को सम्मिलित किया गया। यह इन सबमें सबसे बडा प्रान्त था जो पोरस के अधीन रखा गया।
स्पष्ट है कि सिकन्दर ने अपने इन कृत्यो से अप्रत्यक्ष रूप से ही सही भारत का राजनीतिक एकीकरण कर दिया और भारतीय एकता को प्रोत्साहन दिया जिसके फलस्वरूप कालान्तर में चन्द्रगुप्त ने बडी आसानी से इन प्रदेशों को विजित कर अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस प्रकार हम यह कह सकते है कि भारत के पूर्वी भाग में यदि उग्रसेन महापद्म चन्द्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रगुुुुुप्त मौर्य का पूर्वगामी था तो वही पश्चिम भारत में अलेक्जेण्डर सिकन्दर मौर्य राजवंश का अग्रगामी था। (If Ugrasen Mahapadam was the precursor of ChandraGupta Maurya in the East, Alexendar Sikandar was the forerunner of that Emperor in the Western India.)


सिकन्दर के आक्रमण के फलस्वरूप भारत तथा पश्चिमोत्तर देशों के व्यापारिक सम्बन्धों में और अधिक सुदृढता आई। चुॅकि भारत में सिकन्दर के अनेक उपनिवेश स्थापित हो गये थे अतः इन उपनिवेशों के माध्यम से भारत तथा यूनान एक दूसरे के घनिष्ठ सम्पर्क में आये तथा दोनों के मध्य आवागमन के लिए सामुद्रिक तथा स्थलीय मार्ग खुल गये। फलस्वरूप आम जनता का भौगोलिक ज्ञान और अधिक विस्तृत हो गया। व्यापारिक आदान-प्रदान से जहॉ एक तरफ व्यापार-वाणिज्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई वही दूसरी तरफ नगरीकरण की प्रक्रिया भी तेज हुई। व्यापारिक सम्पर्क के बढने के फलस्वरूप भारत में भी यूनानी मुद्राओं का अनुकरण करते हुए ‘‘उलख शैली‘‘ के सिक्के ढाले गये। इस प्रकार भारतीय मुद्रा निर्माण कला का पर्याप्त विकास हुआ।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी सिकन्दर के आक्रमण के अनेक प्रभाव पडे। यूनानी शासन पद्धति से भारतीय शासन व्यवस्था भी प्रभावित हुई और शाही व्यवस्था ;(Imperial systerm)हिन्दू राजतंत्र का एक स्थायी तत्व बन गया। कला और ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में भी भारतीयों ने यूनानवासियों से बहुत कुछ सीखा। Nihar Ranjan Rai  के शब्दों में – ‘‘मौर्यकालीन शीर्ष स्तम्भों को मण्डित करने वाली पशु आकृतियों पर यूनानी कला का ही प्रभाव था। कालान्तर में प्रचलित ‘गान्धार कला शैली‘ यूनानी कला के प्रभाव से ही विकसित हुई थी तथा दूसरी तरफ यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस पर भारतीय दर्शन का स्पष्ट प्रभाव दिखाई पडता है। …………….. सबसे बडी बात तो यह है कि सिकन्दर के साथ कुछ लेखक आये जो कालान्तर में इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायक सिद्ध हुये।‘‘ प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर ;(Romila Thapar)के शब्दों में -‘‘सिकन्दर के आक्रमण का उल्लेखनीय परिणाम न राजनीतिक था और न ही सैनिक, उसका महत्व इस बात में है कि वह अपने साथ कुछ ऐसे यूनानियों को साथ लाया था जिन्होने भारत के विषय में अपने विचारों को लिपिबद्ध किया जो इस काल पर प्रकाश डालने की दृष्टि से मूल्यवान है।‘‘

इन सम्पूर्ण विवेचनों से यह स्पष्ट है कि सिकन्दर के आक्रमण ने भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा अन्य सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्रभावित किया लेकिन यहॉ यह बात उल्लेखनीय है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के मूल आधार पूर्णतया अप्रभावित रहा। भारतीय संस्कृति के उपर पडने वाले यूनानी प्रभाव के सन्दर्भ में प्रसिद्ध कवि मैथ्यू आरनाल्ड (Mathew Ornald) ) की अग्रलिखित पंक्तियॉ अत्यन्त उल्लेखनीय है। उनके शब्दों में – ‘‘भारत विदेशी आक्रमण के सामने धीर और गंभीर रूप से घृणा के साथ नतमस्तक हुआ। सेना के गर्जन के निकल जाने के बाद भारत पुनः विचार सागर में निमग्न हो गया।‘‘

(India Bowed low before the blast in patience deep disdain. She left the legion
thunder pass and plunqed in thought again.)

Post a Comment

Previous Post Next Post