window.location = "http://www.yoururl.com"; Bismarck : Foreign Policy. // बिस्मार्क की वैदेशिक नीति

Bismarck : Foreign Policy. // बिस्मार्क की वैदेशिक नीति

फ्रांस को अलग थलग कर देना ही बिस्मार्क की विदेश नीति का मूल आधार था – व्याख्या करें।
The main objectives of Bismark foreign policy was to isolate France- Explain it
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बिस्मार्क की गणना जर्मन राजनीति के महान नायकों और विश्व इतिहास के महान कूटनीतिज्ञों में की जाती है। बिस्मार्क प्रारंभिक चरण में प्रशा का एक भू-स्वामी था। फ्रैंकफर्ट संसद 1848 के अधिवेशन में उसने पहली बार राजनीति में भाग लिया जहॉ उसने प्रशा का प्रतिनिधित्व किया था। इस अधिवेशन में बिस्मार्क ने स्वयं को एक निर्मम तथा दृढप्रतिज्ञ कूटनीतिज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित किया। बिस्मार्क की नीतियों से ही प्रशा के उत्कर्ष में वृद्धि होने का सूत्रपात हुआ था। वास्तव में बिस्मार्क जर्मनी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए कोई भी नीति या मार्ग अपनाने से नही हिचकिचाया। जब उसने देखा कि उदारवाद से जर्मनी का एकीकरण सफल नही हो सकता तब उसने प्रशा के नेतृत्व में बलपूर्वक एकीकरण करना ही एकमात्र उपाय समझा। जर्मन राष्ट्रीयता की शक्ति का प्रयोग कर उसने सफलता प्राप्त की । वह हमेशा जर्मनी की आवश्यकता और प्रतिष्ठा को व्यक्तिगत सम्मान और प्रतिष्ठा से उपर समझता था।

जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क ने नीति निर्धारण के तौर पर घोषित किया कि जर्मनी संतुष्ट राज्य है और क्षेत्रीय प्रसार में उसकी कोई रूचि नही है। फिर भी सेडान युद्ध के पश्चात् अलसास और लारेन क्षेत्र को फ्रान्स से लेकर उसने जो भूल की थी, उसके लिए उसने सावधान रहना ही जरूरी समझा क्योंकि उसे विश्वास था कि फ्रान्सीसी अपनी 1870-71 की पराजय और अलसास – लारेन क्षेत्र को नही भूलेंगे। अतः उसकी विदेश नीति का प्रमुख उ६ेश्य फ्रान्स को युरोप में मित्रविहिन रखना था जिससे कि वह अलसास-लारेन को प्राप्त करने के लिए जर्मनी से युद्ध करने की स्थिती में न आ सके।

सर्वप्रथम बिस्मार्क ने आस्ट्रिया तथा रूस से दोस्ती करनी चाही। वास्तव में प्रशा से रूस की दोस्ती की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही थी जब प्रशा क्रीमिया युद्ध में रूस के खिलाफ शामिल नही हुआ था और पोलैण्ड के विद्रोह में रूस का साथ दिया था। इसके अलावा रूस का जार जर्मनी के सम्राट विलियम प्रथम का सम्बन्धी भी था। आस्ट्रिया से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के सम्राट को बर्लिन आने का निमन्त्रण दिया जिसमें रूस के जार ने भी भाग लेने की इच्छा प्रकट की। फलस्वरूप 1872 ई0 में बर्लिन में रूस, जर्मनी तथा आस्ट्रिया के सम्राट मिले तथा उन्होने निश्चय किया कि युरोप में शान्ति बनाए रखने तथा समाजवादी आन्दोलन से निपटने के उ६ेश्य से वे एक दूसरे के साथ सहयोग तथा विचार विनिमय करते रहेंगे। इसी आधार पर तथाकथित ‘‘तीन सम्राटों के संघ‘‘ का निर्माण हुआ। हालॉकि इस संघ का शीध्र ही अन्त हो गया और जर्मनी और आस्ट्रिया ने पारस्परिक सन्धि कर ली कि रूस अथवा फ्रान्स से आक्रमण की स्थिती में ये दोनो देश आपस में सहयोग करते रहेंगे। इस नीति को 1879 के द्वि-गुट सन्धि से क्रियान्वित किया गया लेकिन पुनः 1881 ई0 में रूस, आस्ट्रिया और जर्मनी ने आपस में मिलकर एक सन्धि ‘‘त्रि-सम्राट सन्धि‘‘ को जन्म दिया। यह सन्धि बिल्कुल गुप्त और रक्षात्मक थी।
बिस्मार्क इटली से दोस्ती कर फ्रान्स को बिल्कुल युरोपीय राजनीति में अकेला कर देना चाहता था। इसी समय फ्रान्स तथा इटली ट्यूनिसिया पर अधिकार करने को इच्छुक थे। आरम्भ में जर्मनी ने फ्रान्स को ट्यूनिसिया पर अधिकार करने को प्रोत्साहित किया ताकि इटली के असन्तोष को भुलाया जा सके। 1881 ई0 में फ्रान्स द्धारा ट्यूनिसिया पर अधिकार कर लेने पर इटली की क्षुब्दता से लाभ उठाकर बिस्मार्क ने उसे त्रिगुट ‘जर्मनी, आस्ट्रिया तथा इटली‘‘ बनाने को कहा। बिस्मार्क ने इटली को समझाया कि बिना दूसरे देशों की सहायता से इटली साम्राज्य नही कायम कर सकता और इटली ने भी महसूस किया कि जर्मनी तथा आस्ट्रिया से सन्धि किये बगैर साम्राज्यवाद का विस्तार नही किया जा सकता। अतः 1882 ई0 में इटली, जर्मनी और आस्ट्रिया के बीच एक पारस्परिक सन्धि हुई जिसे त्रि-गुट सन्धि के नाम से जाना जाता है। इस सन्धि के अनुसार जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली ने यह निश्चय किया कि यदि फ्रान्स इटली पर आक्रमण करे तो आस्ट्रिया तथा इटली उसकी मदद करेंगे। यदि फ्रान्स जर्मनी पर आक्रमण करे तो आस्ट्रिया तथा इटली उसकी मदद करेंगे। कहने का तात्पर्य यह था कि यदि फ्रान्स त्रि-गुट के किसी राष्ट्र पर आक्रमण करता है तो शेष सदस्य उसकी मदद करेंगे। यह सन्धि 5 वर्षो के लिए की गई लेकिन समय-समय पर इसका पुनर्मूल्यांकन किया जाता रहा और यह सन्धि 1915 ई0 तक कायम रही। इस सन्धि की सभी शर्ते गुप्त रखी गई थी।
त्रि-गुट सन्धि बिस्मार्क की सफल कूटनीति का परिणाम था। अब जर्मनी को फ्रान्स से बिल्कुल भी भय नही रहा। इसके अलावा बिस्मार्क ने ब्रिटेन तथा फ्रान्स के मतभेदों से भी फायदा उठाना चाहा और इस दिशा में कई कार्य भी किये गये। बिस्मार्क रूस की दोस्ती खोना नही चाहता था और उसे भय था कि ऐसी हालत में रूस और फ्रान्स में दोस्ती हो सकती है। अतः उसने आस्ट्रिया को बताए बिना ही रूस से एक गुप्त सन्धि कर ली जिसे ‘‘पुनर्राश्वासन सन्धि‘‘ कहते है। इस सन्धि के अनुसार रूस और जर्मनी के बीच यह तय हुआ कि यदि उनमें से कोई एक देश किसी तीसरे देश से युद्ध में फॅस जाय तो दूसरा देश उस युद्ध में तटस्थ रहेगा। इससे जर्मनी को यह लाभ हुआ कि रूस और आस्ट्रिया उसके मित्र भी बने रहे और फ्रान्स अलग-थलग पडने लगा।
इन सन्धियों द्धारा बिस्मार्क ने फ्रान्स को मित्रविहिन कर दिया। आस्ट्रिया तथा रूस के हित परस्पर बाल्कन प्रायद्वीप में टकराते थे और आस्ट्रिया को इटली से मनमुटाव था फिर भी बिस्मार्क ने ‘‘पुनर्राश्वासन सन्धि‘‘ द्धारा रूस से मित्रता कायम की और त्रि-गुट सन्धि द्धारा आस्ट्रिया तथा इटली से। इससे जर्मनी पर फ्रान्स का भय समाप्त हो गया। वास्तव में बिस्मार्क अपने समय का एक महान कूटनीतिज्ञ था और अपनी इन कूटनीतिक सन्धियों का जाल फेलाकर जर्मनी का एकीकरण किया तथा फ्रान्स से अलसास और लारेन प्रान्त ले लिया। फ्रान्स के आक्रमण से बचने के लिए उसने रूस, आस्ट्रिया तथा इटली से सन्धि कर फ्रान्स को युरोपीय राजनीति में मित्रविहिन बनाए रखा। संभव था कि वह यदि भविष्य में रहता तो फ्रान्स को अलग-थलग ही बनाए रखता लेकिन 1890 ई0 में विलियम द्वितीय ने बिस्मार्क को चान्सलर पद से हटाकर एक भयानक भूल की क्योंकि कोई भी दूसरा व्यक्ति बिस्मार्क द्धारा स्थापित सन्धियों को कायम रख पाने में सक्षम नही था। परिणामस्वरूप फ्रान्स, रूस और इंग्लैण्ड से सन्धि करने में सफल हो गया।

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