1857 की क्रांति का स्वरूप -
1857 के विद्रोह के स्वरूप के विषय में इतिहासकारों में मतभेद रहा है। विभिन्न इतिहासकारों ने इस विद्रोह को अपनी-अपनी दृष्टिकोण से देखा है तथा उसके अनुसार ही इसका स्वरूप निर्धारित करने का प्रयास किया है। संक्षेप में, 1857 के विद्रोह के स्वरूप के सम्बन्ध में इतिहासकारों के विभिन्न दृष्टिकोण निम्नलिखित है-
1 – इस सन्दर्भ में अंग्रेज इतिहासकार टी0 आर0 होम्स (T R Homnes) ने यह मत प्रतिपादित किया है कि यह विद्रोह वास्तव में बर्बरता और सभ्यता के बीच हुआ संघर्ष था। होम्स का मानना है कि वास्वत में अंग्रेज और भारतीयों में काफी अन्तर था। अंग्रेज काफी विकसित सभ्यता के थे जबकि भारतीय असभ्य और बर्बर थे। अंग्रेजों ने जब भारतीयों को सम्यता सिखाने का प्रयास किया तो भारतीयों ने विद्रोह कर दिया।
होम्स की उक्त विचारधारा को स्वीकार नही किया जा सकता क्योंकि भारतीयों को बर्बर और असभ्य कहना ही नितान्त असंगत है। यह सर्वविदित है कि भारतीय सभ्यता अत्यन्त प्राचीन रही है तथा भारतीयों ने अपने गुणों से अन्य देशों की संस्कृतियों को भी प्रभावित किया है अतः होम्स द्वारा भारतीयों को असभ्य और बर्बर कहना अपने आप में अत्यन्त हास्यास्पद है। यह भी सर्वविदित है कि 1857 के विद्रोह के मूल कारण ब्रिटिश नीतियों में नीहित थे।
2 – एक अन्य इतिहासकार रीज (Reese) का मानना है कि यह विद्रोह वास्तव में भारतीयों द्वारा ईसाईयों के विरूद्ध किया गया विद्रोह था। रीज के शब्दों में – ‘‘ईसाईयों के विरूद्ध एक कट्टर धार्मिक युद्ध‘‘ “A war of fanatic religionist against Christianity.”
आधुनिक इतिहासकार रीज के इस बात का विरोध करते है क्योंकि इस विद्रोह में धर्म जैसी कोई बात थी ही नही। इसके अलावा अनेक भारतीयों ने भी इस विद्रोह में अंग्रेजो का साथ दिया था। यदि यह धर्म के लिए लडा गया युद्ध होता तो इसमें किसी भी भारतीय ने अंग्रेजों का साथ न दिया होता।
3 – इसके अतिरिक्त एक अन्य इतिहासकार सर जेम्स आउट्रम (Sir James Outrum) का मानना है कि यह विद्रोह वास्तव में अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीय मुसलमानों द्धारा किया गया विद्रोह था। अपने मत के समर्थन में इन्होने तर्क दिया कि अंग्रेजो ने भारतीय सत्ता मुसलमानों से छीनी थी अतः भारतीय मुसलमान अंगेजो से बैर रखते थे तथा अनुकूल अवसर पाकर वे अंग्रेजो से सत्ता पुनः अपने हाथ में लेना चाहते थे। 1857 तक आते-आते क्योंकि विभिन्न कारणोंवश भारतीयों में काफी आक्रोश उत्पन्न हो चुका था अतः भारतीय मुसलमान भारतीयों में व्याप्त असन्तोष का लाभ उठाकर जनसमर्थन प्राप्त करना चाहते थे ताकि वे जनसमर्थन का प्रयोग अंग्रेजो के विरूद्ध कर सके। 1857 के विद्रोह के समय भारतीय मुसलमानों ने यही किया था। अतः इस प्रकार आउट्रम मानते है कि यह विद्रोह न तो कुछ सिपाहियों द्धारा किया गया था और नही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।
लेकिन आधुनिक इतिहासकार इस मत को स्वीकार नही करते है क्योंकि यह सर्वविदित है कि इस विद्रोह में केवल मुसलमानों ने ही नही वरन् हिन्दू तथा अन्य धर्मो ने भी खुलकर भाग लिया था। अतः इस मत को भी स्वीकार नही किया जा सकता। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि इस विद्रोह को शुरू करने वाला भी एक हिन्दू मंगल पाण्डेय ही था।
4 – मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भी 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम स्वीकार नही किया है। अनेक मार्क्सवादी इतिहासकार जैसे पूरन चन्द जोशी (Pooran Chand Joshi) आदि का विचार है कि किसी भी देश में राष्ट्रीय आन्दोलन तभी संभव है जब वहॉ आद्यौगिक क्रान्ति हुई हो। भारत में चूॅकि आद्यौगिक क्रान्ति नही हुई थी अतः भारत में राष्ट्रवादी आन्दोलन होने का कोई प्रश्न ही नही उठता है।
किन्तु आधुनिक इतिहासकार इस विचारधारा से सहमत नही है। यदि हम मार्क्सवादी इतिहासकारें के घोषणाओं का अध्ययन करे तो ज्ञात होता है कि उनकी अधिकांश घोषणाएॅ सत्य की कसौटी पर खरी नही उतरी थी। उदाहरण के रूप में फ्रान्सिसी क्रान्ति का उल्लेख किया जा सकता है। मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारत में साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएॅ तो देखी किन्तु वे यह भूल गये कि राष्ट्रीयता की भावनाओं का आधार केवल आर्थिक ही नही होता है वरन् इसके अनेक पहलू भी होते है। अतः आधुनिक इतिहासकार इस मत को स्वीकार नही करते है।
5 – 1857 के विद्रोह के स्वरूप के सम्बन्ध में युरोपीय विद्वान जिसमें के (Kaye), मेलेसन (Malleson), लारेन्स (Lawrence), आदि प्रमुख है, यह मानते है कि वास्तव में यह विद्रोह केवल कुछ सिपाहियों द्धारा किया गया विद्रोह था। इन इतिहासकारों के मत का समर्थन कुछ भारतीय इतिहासकार भी करते है जिनमें रमेश चन्द्र मजूमदार (R.C.Majumdar) का विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आर0सी0 मजूमदार का मानना है कि – ‘‘ यह न तो पहला, न राष्ट्रीय और नही स्वतंत्रता का युद्ध था।‘‘ (It was neither first, nor national and nor a war of Independence) आर0सी मजूमदार तथा अन्य युरोपीय इतिहासकार अपने मत के समर्थन में यह तर्क देते है कि सैनिको के आचरण में ऐसा कुछ भी नही था कि जिससे इसे स्वतंत्रता संग्राम कहा जाय। अपने मत के समर्थन में ये विद्वान तीन प्रमुख तर्क देते है –
- यह विद्रोह कुछ सिपाहियों द्वारा प्रारम्भ किया गया।
- इस समय भारत में राष्ट्रीय भावना थी ही नहीं। अतः जब तक किसी राष्ट्र में राष्ट्रवादी भावना न हो तबतक वहा राष्ट्रीय आंदोलन कैसे हो सकता है।
- 1857 के विद्रोह का क्षेत्र व्यापक नहीं था। यह भारत के एक सिमित क्षेत्र में हुआ था, अतः ऐसे विद्रोह को जो भारत के कुछ ही क्षेत्र में हुआ हो, उसे राष्ट्रीय विद्रोह कैसे कहा जा सकता है।
उपरोक्त तीन प्रमुख तर्को को आधुनिक भारतीय इतिहासकार स्वीकार नही करते क्योंकि इस मत के अनेक प्रमाण है कि चाहे राष्ट्रीय भावना रही हो या न रही हो, भारतीय अंग्रेजों के विरोधी थे तथा वे अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाना चाहते थे। 1838 ई0 में ही गवर्नर जनरल मेटकाफ (Metcaph) ने ब्रिटिश सरकार को जो अपनी रिपोर्ट भेजी थी उससे भी इस बात की पुष्टि होती है। इस रिपोर्ट में मेटकाफ ने लिखा था कि – भारतीय हमारा तख्ता उखाड फेकना चाहते है तथा यदि इस स्थिती से भारतीय ब्रिटिश सरकार को बचना है तो भारतीय आक्रोश को दबाने के लिए तुरन्त तथा प्रभावशाली सुधार किया जाना आवश्यक है। आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि महत्वपूर्ण बात यह नही है कि भारतीयों में राष्ट्रीय भावना थी अथवा नही। विचारणीय प्रश्न यह है कि इस संघर्ष में भाग लेने वालों का मुख्य उद्देश्य क्या था। इसमें कोई सन्देह नही है कि वे अंग्रेजो से भारत को मुक्त कराना चाहते थे। अतः ऐसी स्थिती में जबकि यह स्पष्ट है कि भारतीयों का मूल उद्देश्य इस विद्रोह के द्वारा अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाना था, तो फिर इसे स्वतन्त्रता आन्दोलन के अतिरिक्त और कुछ कैसे कहा जा सकता है। इस सन्दर्भ में एस0बी0 चौधरी (S.B.Chaudhry) ने लिखा है कि- ‘‘ यह विद्रोह सामान्य जनता का विद्रोह था तथा इसमें जिन राजाओं ने भाग लिया था उनकी प्रजा का भी उनको समर्थन प्राप्त था।‘‘ स्वयं कुछ अंग्रेज लेखकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि इस विद्रोह में आम जनता ने खुलकर भाग लिया था। उदाहरण के रूप में – ट्रेवेलियन लारेन्स (Travelian Lawrence )ने कानपुर नामक ग्रन्थ में लिखा है कि– ‘‘भिक्टियो (पानी पिलाने वालों) ने उन्हे (अंग्रेजो) को पानी देने से इन्कार कर दिया, अंग्रेजो के घर से आया बिना आज्ञा लिए ही चली गई। जब संदेशवाहकों को संदेश पहुॅचाने की आज्ञा दी जाती तो वे मालिको (अंग्रेजो) के सामने उदण्डतापूर्वक खडे रहते।‘‘
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुये यह मानना कि इसमें आम जनता ने भाग नही लिया था, उचित नही है। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि किसी भी आन्दोलन में उस देश की सौ प्रतिशत जनता न तो भाग लेती है और न ही समर्थन देती है। क्रान्ति का विद्रोह कुछ लोगो के द्वारा किया जाता है जिसमें जनता का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष समर्थन होता है। उदाहरण के तौर पर हम फ्रान्स और अमेरिका की क्रान्ति को ले सकते है। यह क्रान्ति भी कुछ लोगों के द्वारा की गई थी जिसमें वहॉं की जनता ने अप्रत्यक्ष समर्थन दिया था। अतः इस आधार पर कि 1857 के विद्रोह में देश की समस्त जनता ने भाग नही लिया था, इसे सैनिक विद्रोह मानना उचित नही है। इस सम्बन्ध में डा0 एस0 एन0 सेन ने लिखा है कि – ‘‘ क्रान्तियॉ प्रायः एक छोटे से वर्ग का कार्य होती है जिसमें जनता का समर्थन होता भी है और नही भी होता है। अमेरिका तथा फ्रान्स की क्रान्ति में भी यही हुआ था।
युरोपीय इतिहासकारों का तर्क है कि 1857 ई0 के विद्रोह का क्षेत्र व्यापक नही था, भी आधुनिक इतिहासकारों को मान्य नही है। आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि किसी भी क्रान्ति अथवा विद्रोह की लोकप्रियता का पैमाना यह नही होता कि वह कितने बडे क्षेत्र में हुआ अथवा किया गया। आन्दोलन अथवा विद्रोह के कारण कितने लोग प्रभावित हुए अथवा उसका प्रभाव क्षेत्र कितना था- वास्तव में यह तथ्य ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसी भी विद्रोह अथवा आन्दोलन को जनआन्दोलन कहने के लिए उसका व्यापक प्रभाव का होना आवश्यक है। यदि हम इस दृष्टिकोण से इसका अध्ययन करे तो इसमें सन्देह नही है कि तब 1857 ई0 का विद्रोह हमें जनआन्दोलन ही नजर आएगा। इस सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि – “It was much more than a military mutiny and its spread rapidly and assumed the character of Popular rebellion and a war of Independence.”
कुछ इसी प्रकार के विचार डा0 ईश्वरी प्रसाद ने भी व्यक्त किये है। उन्होने लिखा है कि – “For long this rising for being planned, Its organization being perfected, Its thread being spread to the remotest corners of the land by a band of selfless patriots who had nothing dearer to them freedom to their country.”
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों के आधार पर इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ही माना जाना चाहिए। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि 1857 ई0 में ब्रिटिश संसद में प्रतिपक्ष के नेता लार्ड डिजरायली ने 1857 ई0 में ही इस विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह मान लिया था। उसने ब्रिटिश संसद में भाषण देते हुए कहा था कि – “It was neither military nor a sepoy mutiny but a National revolt.”
यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि जिस विद्रोह के स्वरूप को लार्ड डिजरायली ने उसी समय पहचान लिया था उसके स्वरूप को निर्धारित करने के लिए हम आज भी बहस कर रहे है। वास्तव में 1857 ई0 के विद्रोह को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अतिरिक्त कुछ और स्वीकार नही किया जा सकता है। यहॉ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अंग्रेजों का मूल उद्देश्य भारत पर ब्रिटिश शासन बरकरार रखना था तथा वे नही चाहते थे कि भारत में राष्ट्रीय भावनाओं का जन्म हो अथवा उसका प्रसार हो। इसलिए जानबूझकर युरोपीय इतिहासकारों ने भारतीयों के हृदय में यह बात बैठाने की चेष्टा की है कि यह विद्रोह मात्र एक सैनिक विद्रोह था। जहॉ जक आर0 सी0 मजूमदार और डा0 सेन जैसे इतिहासकारों का प्रश्न है उन्होने क्यों युरोपीय इतिहासकारों के मत का समर्थन किया है, इसका एकदम सही उत्तर हर्डीकर ने दिया है। हर्डीकर के शब्दों में – ‘‘ ये दोनो इतिहासकार इस क्रान्ति के पीछे कोई निश्चित योजना, संगठन अथवा कार्यक्रम को नही देखते है। इसमें इन प्रकाण्ड पण्डितो का कोई दोष नही है। दोष है उस सामग्री का जिसके आधार पर इन्होने अपने ग्रन्थों की रचना की है। ये दोनो इतिहासकार सरकारी रिकार्ड के जाल से स्वयं को मुक्त न कर सके। क्रान्तिकारियां की योजनाओं तथा कार्यक्रम का आभास उन्हे तभी मिल सकता था जब वे उसके शिविर में प्रवेश करते। यह तभी संभव था जबकि वे अभी तक भूमिगत तथा अज्ञात क्रान्ति पक्ष पर प्रकाश डालने वाली सामग्री खोज कर लाते पर ऐसा करने की अपेक्षा इन्होने सरकारी रिकार्डो तथा अंग्रेज लेखकों को ही अपना मार्गदर्शक मान लिया।‘‘
इस प्रकार इन सम्पूर्ण विवेचनों से यह स्पष्ट है कि 1857 ई0 का विद्रोह भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था और लगभग सभी भारतीय तथा आधुनिक इतिहासकारों ने भी इस तथ्य को एक मत से स्वीकार किया है।
*guruji You have activated a new vision in my life.*🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete*आपने ही इस काबिल बनाया है*
*की अपना नाम लिख भी सकूं*
*और बना भी सकूं।*
*ये समझना मुश्किल है पर*
*आपके ज्ञान के बदले*
*में कैसे कुछ कर सकूं?*
🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️🙇♀️
*हर अंधेरे में*
*रोशनी है आप।*
*मेरे जीवन में श्रेष्ठ*
*मेरे गुरु हैं आप।*
*Fantastic session👍👍👍👍All Time My respected* favourite and my supportive guruji