साइमन कमीशन ¼Simon Commission ½ &
1927 ई० का वर्ष भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इस समय तक आते-आते एक तरफ स्वराज्यवादियों की असहयोग तथा अड़ंगा नीति असफल हो चुकी थी तो दूसरी ओर 1924 ई0 में जेल से मुक्त होकर महात्मा गांधी ने देश का दौरा किया। रचनात्मक कार्यक्रम और अस्पृश्यता निवारण की ओर उन्होंने जनता का ध्यान आकृष्ट किया। गांधीजी के नेतृत्व ने पुनः देश में साहस और उत्साह का संचार किया। किसानों और मजदूरों में जागृति के चिन्ह स्पष्ट दिखलाई देने लगे। उन्होंने अपना संगठन करना आरम्भ कर दिया और कांग्रेस के कार्यक्रम तथा नीति में सहयोग देने के लिए उद्यत हो गये। कांग्रेस पर समाजवादी तथा साम्यवादी विचारों का प्रभाव पड़ने लगा। श्री ए0 आर0 देसाई के शब्दों में - ’रूस में समाजवादी क्रान्ति की सफलता और समाजवादी राज्य की स्थापना ने भारत के क्रान्तिकारी राष्ट्रवादियों में समाजवादी और साम्यवादी सिद्धांतों के प्रति रुचि उत्पन्न कर दी।“ जगह-जगह मजदूरों और किसानों में आन्दोलन होने लगे। विटले कमीशन ¼Whitley Commission½ की नियुक्ति के समय मजदूरों ने हड़ताल की। बारदौली में सरदार पटेल के नेतृत्व में किसानों ने लगान-वृद्धि के विरोध में तीव्र आन्दोलन किया जिसके सामने सरकार को झुकना पड़ा। इस प्रकार 1927 के राष्ट्रीय आन्दोलन की जड़ पकड़ने लगी और जनता में नई जागृति आने लगी। इसी पृष्ठभूमि में साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई और नेहरू रिपोर्ट भारतीयों के सामने आई।
साइमन कमीशन की नियुक्ति :
1919 ई0 के भारत सरकार अधिनियम की धारा 84 में यह व्यवस्था की गई थी कि सुधारों के कार्यान्वित रूप पर विचार करने तथा नये सुधारों का सुझाव देने के लिए 10 वर्षों के उपरांत सरकार एक राजकीय आयोग ¼Royal Commission½ की नियुक्ति करेगी। इस धारा के अन्तर्गत 1929 ई0 में राजकीय आयोग की नियुक्ति होनी चाहिए थी लेकिन कई कारणों से दो वर्ष पूर्व ही राजकीय आयोग की नियुक्ति की घोषणा की गयी। 5 नवम्बर 1927 ई0 को वायसराय इरविन ने महात्मा गांधी तथा अन्य दूसरे भारतीय नेताओं को दिल्ली में भेंट करने के लिए आमंत्रित किया। महात्मा गांधी राजकीय आयोग की योजना को सुनकर बहुत खिन्न हुए क्योंकि उस योजना में उन्हें कोई सार नहीं दिखाई पड़ा। उन्होंने वायसराय से कहा कि आप इस सूचना को एक आने के लिफाफे द्वारा मेरे पास भेज सकते थे। अन्त में 8 नवम्बर, 1927 ई० को वायसराय ने एक राजकीय आयोग की नियुक्ति की घोषणा की।
समय से पूर्व कमीशन की नियुक्ति के कारण :
राजकीय आयोग की नियुक्ति सरकार ने समय से दो वर्ष पूर्व ही कर दी जिसके कई कारण थे। यूॅं तो ब्रिटिश सरकार का कहना था कि भारतीयों की मांगों के अनुसार शासन में जल्द से जल्द सुधार लाने के उद्देश्य से आयोग की नियुक्ति समय से पूर्व की गयी थी, लेकिन वास्तविक कारण कुछ और ही थे। ब्रिटेन की अनुदार सरकार उस समय भारत में आयोग भेजना चाहती थी जबकि देश में साम्प्रदायिक दंगा जोरों पर था और भारत की एकता नष्ट हो चुकी थी। सरकार चाहती थी कि आयोग भारतीयों के सामजिक तथा राजनीतिक जीवन के विषय में बुरा विचार लेकर लौटे। इंगलैंड में आम चुनाव 1929 ई० में होने वाला था। अनुदार दल को चुनाव में हार जाने का भय था। वे नहीं चाहते थे कि भारतीय समस्या को सुलझाने का मौका मजदूर दल को दिया जाय क्योंकि उसके हाथ में वे साम्राज्य के हितों को सुरक्षित नहीं समझते थे। अतः उन्होंने समय से पूर्व ही आयोग की नियुक्ति करना उचित समझा। स्वराज्य दल ने सुधारं आयोग की जोरदार मांग की थी। ब्रिटिश सरकार ने इस सौदा को बहुत सस्ता समझा क्योंकि इससे यह सम्भावना थी कि स्वराज्य दल आकर्षणहीन हो जायेगा और धीरे-धीरे उसका अस्तित्व समाप्त हो जायगा। प्रो० कीथ के मतानुसार भारत में युवा क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रादुर्भाव के कारण ब्रिटिश सरकार ने यथाशीघ्र राजकीय आयोग की नियुक्ति करना उचित समझा। जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस ने कांग्रेस के तत्वावधान में एक युवा आन्दोलन का आयोजन किया जिससे उत्तेजित तथा अर्द्ध-शिक्षित युवकों में जागृति आई। ब्रिटिश सरकार ने परिस्थिति को भांप लिया और समय से पूर्व राजकीय आयोग की नियुक्ति का प्रस्ताव संसद में लाया।
कमीशन के सदस्य -
इस प्रकार सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का गठन 8 नवम्बर 1927 को किया गया। इसके प्रमुख सदस्य निम्नलिखित थे-
1. सर जॉन साइमन- स्पेन वैली के सांसद (लिबरल पार्टी)
2. क्लेमेंट एटली- लाइमहाउस के सांसद (लेबर पार्टी)
3. हैरी लेवी-लॉसन- लिबरल यूनियनिस्ट पार्टी
4. सर एडवर्ड सेसिल जॉर्ज काडोगन- फ़िंचली के सांसद (कंज़र्वेटिव पार्टी)
5. वर्नन हार्टशोम- ऑग्मोर के सांसद (लेबर पार्टी)
6. जॉर्ज रिचर्ड लेन- फॉक्स, बार्कस्टन ऐश के सांसद (कंजर्वेटिव पार्टी)
7. डोनाल्ड स्टर्लिन पामर होवार्ड- कम्बरलैंड नॉर्थ के संसद
लेकिन अध्यक्ष सहित 7 सदस्यों की इस समिति का एक भी सदस्य भारतीय न था। इसके पीछे सरकारी तौर पर यह तर्क दिया गया कि चूॅंकि साइमन कमीशन की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद के समक्ष प्रस्तुत की जानी है अतः इसके सभी सदस्यों का ब्रिटिश होना वांछनीय है। हालॉंकि यह निराधार तर्क था क्योंकि श्री सकलतवाला और लार्ड सिन्हा उस समय की भारतीय संसद में भारतीय सदस्य भी थे। ऐसी स्थिति में यदि ब्रिटिश सरकार चाहती तो सहजता से इनमें से किसी को इस आयोग में रख सकती थी।
कमीशन का बहिष्कार -
साइमन कमीशन के उद्देश्य तथा तथा इस आयोग में एक भी सदस्य भारतीय न होने से भारतीयों को बहुत क्षोभ हुआ और उन्होंने इसे अपमानजनक समझा। अतः एकमत से सभी ने कमीशन का बहिष्कार करने का निश्चय किया। कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा और लिबरल फेडरेशन ने एक स्वर से कमीशन का विरोध किया। केवल सर मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के एक वर्ग ने कमीशन का स्वागत करने का निश्चय किया। इसके अतिरिक्त दक्षिण में जस्टिस पार्टी ने सरकार का समर्थन किया। कांग्रेस ने दिसम्बर 1927 ई0 के मद्रास अधिवेशन में साइमन कमीशन के प्रति अपने दृष्टिकोण तथा नीति को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। उसने विभिन्न वर्गों के लोगों से कमीशन का बहिष्कार करने की अपील की। उसने यह अनुरोध किया कि कमीशन के आगमन के दिन जनता सामूहिक प्रदर्शनों का आयोजन करे, जहां भी कमीशन के सदस्य जाये, प्रदर्शन द्वारा उसका विरोध किया जाय, कौंसिलों के गैरसरकारी सदस्य तथा अन्य नेतागण कमीशन के सामने गवाही न दें और उसके साथ किसी प्रकार का सहयोग न करें। धारा-सभाओं के गैर-सरकारी सदस्य कमीशन से सम्बन्धित किसी ’सिलेक्ट कमिटी’ में न रहें तथा इस प्रकार के प्रस्ताव या खर्च की मांग का विरोध करें, विधानसभा के सदस्य केवल तभी सभा की बैठकों में भाग लें जबकि बहिष्कार को प्रभावशाली बनाने के लिए वह दूसरी संस्थाओं तथा राजनीतिक दलों से सहयोग प्राप्त करें। कांग्रेस ने इसी सम्मेलन में ’पूर्ण राष्ट्रीय स्वतन्त्रता‘ के लक्ष्य की घोषणा की।
कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य दलों ने भी साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निश्चय किया। श्रीमती बेसेंट ने कहा कि यह जले पर नमक छिडकना है। नरम दलीय नेता श्री दिनशा वाचा ने कमीशन के विरुद्ध एक घोषणा-पत्र तैयार किया जिस पर कई राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किया। लाला लाजपत राय ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें कहा गया था कि कमीशन की योजना सर्वथा अमान्य है। पंडित मोतीलाल नेहरू ने इसे केवल एक दिखावा मात्र’ कहा। भारतीयों द्वारा साइमन कमीशन की निन्दा के बारे में विल्किनसन का कहना था कि - अमृतसर काण्ड के बाद ब्रिटिश सरकार के किसी भी कार्य की भारत में इतनी भारी निन्दा नहीं हुई जितनी कि साइमन कमीशन की।
3 फरवरी, 1929 ई० को साइमन कमीशन बम्बई पहुॅचा। इस दिन सारे देश में हड़ताल मनायी गयी और ’साइमन लौट जाओ’ ¼Simon go back½ के नारे से आकाश गूॅंज उठा। ब्रिटिश शासकों ने बम्बई का रंग-ढ़ंग देखकर साइमन कमीशन को तुरन्त दिल्ली रवाना किया। लेेेेेेेेेकिन वहॉं ट्रेन से उतरते ही उसका स्वागत काले झण्डों और ‘साइमन वापस जाओं‘ के नारों के साथ किया गया। राजधानी में उसके स्वागत समारोह के लिए खोजने पर भी भारतीय न मिले। जहॉ भी कमीशन गया, उसका स्वागत काले झण्डों और विशाल प्रदर्शनों से हुआ। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने कमीशन के विरुद्ध लाहौर में एक विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व किया। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज किया। घायल लाला लाजपत राय ने दहाड़ते हुए कहा था कि - ’ये लाठियों के आघात, जो मुझ पर किये गये हैं, एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के कीलें होंगे।“ इसी प्रदर्शन के दौरान लाठी चार्ज में लाजपत राय की मृत्यु हो गयी। यू0पी0 में भी पंडित नेहरू और पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के साथ ऐसी ही घटना घटी और कमीशन के आगमन के दिन सम्पूर्ण लखनऊ सैनिक शिविर ¼Armed camp½ के रूप में बदल गया। भारतीयों ने विरोध प्रदर्शित करने के लिए काली पतंग और बैलून का प्रयोग किया जो आकाश मार्ग से केसरबाग में तालुकदारों द्वारा दिये गये दावत भोज में आकर गिरा। इन पतंगों पर ‘साइमन वापस जाओं‘ के नारे लिखे गये थे। कलकत्ता में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने के लिए सुभाष चन्द्र बोस ने मोर्चा सॅंभाला। यहॉं भी विरोध प्रदर्शन कामयाब रहा। सरकार के अन्यायपूर्ण तथा अमानुषिक व्यवहार से जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत हो गयी। क्रान्तिकारी पुनः सक्रिय हो गये। उन्होंने एक पुलिस कर्मचारी सैण्डर्स की हत्या कर दी। सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा में बम विस्फोट किया। उस अव्यवस्थित वातावरण में कमीशन ने अपनी जांच-पड़ताल की।
कुछ सम्प्रदायवादियों ने आयोग का स्वागत किया जो नक्कारखाने में तूती की आवाज सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त जबकि सारे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, पूॅजीपतियों और जमींदारों के कुछ प्रान्तीय संघ ब्रिटिश शासकों को मॉं-बाप समझकर अपने वर्गीय साम्प्रदायिकता अथवा जातिगत स्वार्थों की रक्षा का भारत साइमन कमीशन के हाथ में छोड़ देने को राजी थे।
कमीशन दो बार भारत आया। तमाम विरोधों के वावजूद अपनी रिपोर्ट तैयार करने में इसने दो वर्ष से अधिक का समय लिया। मई 1930 ई० में इसकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसकी मुख्य बाते निम्नलिखित थी -
1. अन्तर्निहित त्रुटियों के कारण प्रान्तों से द्वैध शासन-व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहिए और उसके स्थान पर पूर्णतया उत्तरदायी शासन की स्थापना की जानी चाहिए। प्रान्तीय सरकारों पर केन्द्र का नियंत्रण कम-से-कम होना चाहिए इस हेतु सुरक्षित विभागों (त्मेमतअमक क्मचंतजउमदज) को समाप्त कर देना चाहिए जिनके माध्यम से केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सचिव प्रान्तीय सरकारों को नियन्त्रित करते हैं।
2. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा तथा प्रान्तों में शान्तिपूर्ण व्यवस्था को अत्याधिक महत्वपूर्ण बतलाया गया। इसके लिए कमीशन ने सिफारिश की कि गवर्नर को विशेष अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए।
3. केन्द्रीय सरकार की शासन व्यवस्था में परिवर्तन के लिए कोई महत्वपूर्ण सिफारिश नहीं की गयी। उसने प्रान्तों के विपरीत केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन को उचित समझा। उसने केन्द्रीय कार्यकारिणी को केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा के नियन्त्रण से पूर्णतया स्वतन्त्र रखने की सिफारिश की किन्तु कमीशन का यह विचार नही था कि केन्द्र में सदैव अनुत्तरदायी सरकार सदा इसी प्रकार चलती रहेगी। रक्षा के प्रश्न के संतोषजनक रूप से हल हो जाने के उपरान्त वह केन्द्र में भी उत्तरदायी शासन की स्थापना करने के पक्ष में थे।
4. कमीशन ने भविष्य में भारत के लिए एक संघ-शासन की स्थापना करने की सिफारिश की जिसमें प्रत्येक प्रान्त जहॉं-तक संभव हो अपने क्षेत्र में अपना स्वामी हो। इस संघ में ब्रिटिश भारत के समस्त भारतीय देशी राज्य सम्मिलित होंगे।
5. भारतीय संघ की स्थापना के पूर्व भारत में एक वृहत्तर भारत परिषद ¼Council of Greater Indiaa½ की स्थापना की जाय जिसमें ब्रिटिश भारत के प्रान्तों और भारतीय देशी राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित हों। इस परिषद् द्वारा वे अपनी सामान्य समस्याओं का निराकरण करें।
6. कमीशन ने यह सिफारिश की कि जनता में राजनीतिक चेतना लाने के लिए मताधिकार का विस्तार (10 से 15 प्रतिशत तक) किया जाना चाहिए और प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभाओं की सदस्य संख्या को बढ़ाना चाहिए।
7. कमीशन ने यह सिफारिश की कि प्रतिनिधित्व का आधार साम्प्रदायिक मतदान होगा। अतः साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व को पूर्ववत् जारी रखा जाय।
8. बर्मा को भारत से और सिन्ध को बम्मई से पृथक कर दिया जाय।
9. सेना का भारतीयकरण हो।
10. समय-समय पर संसदीय जांच-पड़ताल की पद्धति को छोड़ दिया जाय और ऐसे लचीले संविधान का निर्माण किया जाय जो स्वयं विकसित हो।
11. संघ की व्यवस्थापिका सभा का निर्माण संघीय व्यवस्था के आधार पर किया जाना चाहिए। उनके दोनों सदनों का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से होना चाहिये।
साइमन कमीशन रिपोर्ट का मूल्यांकन :
साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय राजनीति की समस्त कठिनाईयों और समस्याओं पर प्रकाश डाला। किन्तु उसने तत्कालीन भारत और जनता की अभिलाषाओं और आकांक्षाओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के सभी तबकों द्वारा विरोध किया गया क्योंकि -
1. रिपोर्ट में औपनिवेशिक स्वराज्य ¼Dominion status½ की स्थापना के विषय में कहीं भी उल्लेख तक नहीं किया गया था।
2. केन्द्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के सम्बन्ध में रिपोर्ट में कोई उल्लेख नही था।
3. रिपोर्ट में प्रान्तों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की बात तो कही गयी परन्तु गवर्नर को विशिष्ट शक्तियॉं देने की बात भी कही गई।
4. इसमें जनता की अभिलाषाओं और आकांक्षाओं की पूर्ण उपेक्षा की गई थी। इसी कारण यह भारत के किसी भी राजनैतिक वर्ग को मान्य नही थी।
एण्डूज के शब्दों में- “उसने उस भारत को अपने सामने रखा जो मैंने राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारम्भ होने से 30 वर्ष पूर्व, जब मैं यहां से बाहर गया था, देखा था। राष्ट्रीय जागृति के परिणामस्वरूप उदीयमान भारत का इससे परिचय नहीं मिलता। सर शिवस्वामी अय्यर ने तो यहां तक कहा था कि - ’साइमन कमीशन रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल देना चाहिए।‘ भारतीय कमीशन की रिपोर्ट से आयोग बहुत असंतुष्ट हुए क्योंकि इसने भारतीयों की औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की पूर्णतया उपेक्षा की। इसने भारतीयों की केन्द्र में उत्तरदायी शासन की मॉंग को स्वीकार नहीं किया और प्रान्तीय गवर्नरों को ऐसे विशेषाधिकारों से सुसज्जित किया कि प्रान्तों में लोकप्रिय तथा उत्तरदायी मंत्रिमण्डल का कोई मूल्य ही नहीं रह गया। निस्संदेह रिपोर्ट निरर्थक था लेकिन भारतीय समस्याओं के अध्ययन के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण प्रलेख है। कूपलैंड के शब्दों में - “यह भारतीय समस्याओं का सबसे अधिक सम्पूर्ण अध्ययन है और इसने राजनीतिशास्त्र के पुस्तकालय को एक और उच्च कोटि की रचना प्रदान की।“ इस रिपोर्ट की कई सिफारिशों को 1935 के भारत सरकार अधिनियम में स्थान दिया गया। 1935 में जब प्रांतों में स्वशासन स्थापित किया गया तो गवर्नरों और गवर्नर-जनरल को जो विशेष शक्तियॉं प्रदान की गई उनका आधार यही साइमन कमीशन रिपोर्ट थी।
Thanks my guruji 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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