लखनऊ अधिवेशन, 1916
1914 ई0 में प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारंभ होते ही भारतीय राजनीति में नवजीवन एवं उत्साह का संचार हुआ। ब्रिटेन को युद्ध में फॅसे देखकर उग्र राष्ट्रवादी तुरन्त सजग हो गये। इस दौरान 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लखनऊॅ अधिवेशन दो घटनाओं की दृष्टि से स्मरणीय था-
1. उग्र राष्ट्रवादियों, जिन्हें नौ वर्ष पूर्व कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था, का कांग्रेस में पुनर्प्रवेश।
2. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य समझौता।
उग्र राष्ट्रवादियों का कांग्रेस में पुनर्प्रवेश -
सूरत अधिवेशन, 1907 के दौरान कांग्रेस का दो दलों में विभाजन हो चुका था। गरम दल वाले उससे अलग हो गये थे और कई वर्षों तक अलग काम करते रहे। अन्त में 1916 में श्रीमती एनी बेसेन्ट के प्रयास से दोनों पक्षों में मेल हुआ और गरम दलवालों का कांग्रेस में पुनर्प्रवेश हुआ। वस्तुतः नरम दल और गरम दल में कांग्रेस के विभाजन से कांग्रेस सर्वथा आकर्षणहीन हो गयी थी और यह महसूस किया जा रहा था कि उसके द्वारा भारत की राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति होना कादापि संभव नहीं है। 1914 में बाल गंगाधर तिलक के माण्डले जेल से वापस आने के बाद उन्होने भी महससू किया कि कांग्रेस के विभाजन से देश का राष्ट्रीय आन्दोलन कमजोर हुआ है अतः वे भी कांग्रेस को संयुक्त करने के इच्छुक थे। उन्होने महसूस किया कि दोनो धडों को एकीकृत कर ही कांग्रेस में नवजीवन का संचार किया जा सकता है। दूसरी तरफ एनी बेसेण्ट जैसी राष्ट्रवादियों को भी यह भय लग रहा था कि अगर उग्रदल वालों को कांग्रेस में नहीं मिलाया जायगा तो संभव है वे क्रांतिकारियों के साथ मिल जायें। इसके अतिरिक्त श्रीमती बेसेन्ट द्वारा चलाये गये ’होम रूल आन्दोलन’ के सफल संचालन के लिए आवश्यक था कि भारत के सभी राजनीतिज्ञों का समर्थन उसे प्राप्त हो। ब्रिटिश शासन पर दबाव तभी पड सकता था जबकि सभी भारतीय राजनीतिज्ञ तथा दल मिलजुल कर काम करें। इन बातों को ध्यान में रखते हुए श्रीमती बेसेन्ट ने नरम और गरम दोनों में मेल- मिलाप कराना श्रेयष्कर समझा। इस सम्बन्ध में 1914 में उन्होंने गोखले और फिरोजशाह मेहता से बातचीत की लेकिन उन्हें अपने प्रयत्न में सफलता नहीं मिली। कुछ ही समय बाद 1915 में गोखले और फिरोजशाह मेहता दोनों की मृत्यु हो गयी। अब नरम दल में कोई प्रभावशाली नेता नहीं रह गया था। इस बीच उग्र राष्ट्रवादी नेता तिलक जेल से छूटकर वापस आ चुके थे। श्रीमती एनी बेसेन्ट ने इस सुनहरा मौका मानते हुये फिर से दोनों गुटों को मिलाने का प्रयास जारी किया। वे 1915 के कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुईं और कांग्रेस की नियमावली में संशोधन कराने में सफल हुईं। इस नियमावली के अंतर्गत अब गरम दल के लोगों के लिए भी कांग्रेस में सम्मिलित हो सकना संभव हो गया। बी0जी0तिलक ने इस संशोधन का स्वागत किया। इस प्रकार 1916 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में वे अपने अनुयायियों के साथ कांग्रेस में पुनः सम्मिलित हो गये और लगभग 10 वर्षों के बाद कांग्रेस में पुनः एकता स्थापित हो गयी। नौ वर्षों बाद 1916 का लखनऊ अधिवेशन कांग्रेस का पहला संगठित अधिवेशन था।
कांग्रेस-लीग समझौता :
1912-13 तक आते-आते मुस्लिम लीग का ब्रिटिश सरकार के प्रति मोहभंग होने लगा था। 1913 के उपरान्त लगभग एक दशक तक मुस्लिम लीग उदारवादी मुस्लिम नेताओं के प्रभाव में रही जिनमें मौलाना मुहम्मद अली, अजहर-उल-हक, सैयद वजीर हुसैन, हसन इमाम, मुहम्मद अली जिन्ना प्रमुख थे। इसका प्रभाव मुस्लिम लीग की नीतियों तथा उद्देश्यों पर पड़ा। वह पृथकता की नीति से दूर होने लगी और प्रगतिवादी तथा राष्ट्रीय नीति को अपनाने लगी। फलतः वह कांग्रेस के निकट आ गयी तथा उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए मिलजुल कर काम करने लगी।
मुस्लिम लीग के दृष्टिकोण में परिवर्तन के अनेक कारण थे। लार्ड कर्जन ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता को उभाड़ने के लिए बंगाल का विभाजन किया था। इस घटना ने मुसलमानों को काफी प्रोत्साहित किया था तथा अंग्रेजी सरकार के प्रति उनकी वफादारी बढ़ गयी थी लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा जनता द्वारा घोर विरोध के कारण सरकार ने 1911 ई0 में बंगाल विभाजन के फैसले को रद्द कर दिया। फलस्वरूप मुसलमान असंतुष्ट हो गये और अंग्रेजी सरकार से उनका विश्वास उठने लगा। इसी बीच राष्ट्रवादी तथा प्रगतिशील मुस्लिम नेताओं के प्रभाव ने लीग के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने में बहुत बड़ा योग दिया। इस समय कई ऐसे मुसलमान नेताओं ने राजनीति में प्रवेश किया जो राष्ट्रवादी थे। उन्हें विश्वास हो गया कि अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से मुसलमानों को राष्ट्रीय आन्दोलन से पृथक रखने की चेष्टा की है जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों की प्रगति और चेतना अवरुद्ध हो गयी है। मुहम्मद अली द्वारा सम्पादित ’कामरेड’ और ’हमदर्द’ तथा मौलाना आजाद द्वारा सम्पादित ’अलहिलाल‘ नामक पत्रों ने मुसलमानों में नवचेतना का संचार किया और उन्हें कांग्रेस के निकट ला दिया। दूसरी ओर हिन्दू राष्ट्रवादियों ने भी मुसलमानों के प्रति सहानुभूति दिखायी जिससे मुसलमान उनमें विश्वास करने लगे और यह महसूस करने लगे कि हिन्दुओं और मुसलमानों के हितों में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। पान-इस्लामिक आन्दोलन (Pan Islamic Movement) ने भी मुसलमानों में यूरोपीय जातियों के प्रति विरोधी-भावना उत्पन्न किया। 1912-13 के बाल्कन युद्ध तथा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने तुर्की के सुल्तान, जो सम्पूर्ण मुस्लिम जगत का खलीफा था, के विरुद्ध नीति अपनायी। इससे मुसलमान अंग्रेजों के प्रति सशंकित हो उठे। दूसरी ओर हिन्दुओं ने खलीफा के प्रति सहानुभूति दिखलायी अतः भारत में हिन्दू और मुसलमान बहुत निकट आ गये। तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग ने कांग्रेस तथा राष्ट्रवादियों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया जबकि उसके पूर्व लार्ड मिण्टों ने मुसलमानों के प्रति पक्षपात तथा विशेष सहानुभूति अपनायी थी। सरकार की नीति में परिवर्तन होते देख मुसलमान सशंकित हो उठे और सरकार की ओर से वे उदासीन होने लगे। फलतः सरकार को मुस्लिम लीग का सहयोग मिलना कम हो गया।
उपरोक्त पृष्ठभूमि में मुस्लिम लीग की नीतियों और उद्देश्यों में परिवर्तन आया और 1913 के अपने अधिवेशन में औपनिवेशिक स्वराज्य से सम्बन्धित प्रस्ताव पारित किया। स्पष्ट है कि ध्येय की एकता के कारण वह कांग्रेस के निकट आ गई। 1915 में मुसिलम लीग का अधिवेशन बम्बई में बुलाया जहाँ कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। मुस्लिम लीग के इस अधिवेशन में पंडित मदनमोहन मालवीय और श्रीमती सरोजिनी नायडू जैसे कई कांग्रेसी नेता सम्मिलित हुए। एक प्रस्ताव द्वारा यह निर्णय लिया गया कि भारत शासन सुधार की एक ऐसी योजना तैयार की जाय जिसके लिए कांग्रेस और लीग एक साथ मिलकर यत्न करें। दूसरी ओर कांग्रेस ने भी एक प्रस्ताव द्वारा अपनी महासमिति को आदेश दिया कि वह लीग से परामर्श करके शासन-सुधार की एक ऐसी योजना तैयार करे जो कांग्रेस और लीग दोनों को स्वीकार हो। सुधार योजना को तैयार करने के लिए कांग्रेस और लीग की एक संयुक्त समिति संगठित की गयी। इसी अधिवेशन में मुस्लिम लीग और कांग्रेस ने एक ही स्थान और एक ही समय पर अपने अगले वार्षिक अधिवेशनों को आयोजित करने का निर्णय लिया।
दिसम्बर 1916 ई0 में मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों ने लखनऊ में अपने वार्षिक अधिवेशनों का आयोजन किया। इन दोनों दलों ने पृथक्-पृथक् रूप से संवैधानिक सुधारों की संयुक्त योजना के संबंध में प्रस्ताव पारित किए और संयुक्त कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के संबंध में एक समझौता किया। यह समझौता सामान्यतया लखनऊ समझौता या कांग्रेस-लीग समझौता के नाम से प्रसिद्ध है। इस समझौते में एनी बेसेण्ट और बाल गंगाधर तिलक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि मदन मोहन मालवीय समेत कई वरिष्ठ नेता इसके बिल्कुल खिलाफ थे क्योंकि उनका आरोप था कि यह समझौता मुस्लिम लीग को बहुत तजब्बो देता है। सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के अनुसार- ‘भारत के इतिहास में यह एक सुनहरा दिन था।‘
लखनऊ समझौते के अन्तर्गत एक उन्नीस सूत्री ज्ञापन पत्र ¼Nineteen Memorundum½ तैयार किया गया जिसकी कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित थी -
1. केन्द्रीय और प्रान्तीय विधानसभाओं में 80 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित और 20 प्रतिशत सदस्य मनोनीत होने चाहिए।
2. केन्द्रीय विधानसभा की सदस्य संख्या 150, मुख्य प्रान्तों की विधानसभाओं की सदस्य-संख्या कम-से-कम 125 और अन्य प्रान्तों की विधानसभाओं की सदस्य संख्या 50 से 75 तक हो।
3. विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को जनता द्वारा चुना जाय और मताधिकार को यथासंभव विस्तृत किया जाय।
4. विधानसभाओं में मुसलमानों को पृथक् प्रतिनिधत्व दिया जाय। विभिन्न विधानसभाओं में उनकी संख्या इस प्रकार हो- केन्द्रीय विधानसभा एक तिहाई, पंजाब 50 प्रतिशत, संयुक्त प्रान्त 30 प्रतिशत, बिहार 25 प्रतिशत, बम्बई एक तिहाई, मध्यप्रदेश 15 प्रतिशत, और मद्रास 15 प्रतिशत।
5. केन्द्रीय सरकार का शासन गवर्नर-जनरल कार्यकारिणी परिषद की सहायता से करे जिसमें आधे सदस्य भारतीय हों।
6. प्रांतों का शासन गवर्नर कार्यकारिणी परिषद् की सहायता से करें जिसमें कम-से-कम आधे सदस्य भारतीय हों।
7. अल्पसंख्यकों को किसी विधेयक को निषिद्ध ¼Veto½ करने का अधिकार दिया जाय। यदि अलपसंसंख्यक वर्ग में तीन-चौथाई प्रतिनिधि किसी विधेयक के विरुद्ध हों, तो उसपर विधानसभा में विचार नहीं किया जायगा।
8. भारत-मंत्री की परिषद को समाप्त कर दिया जाय और भारत सरकार के साथ उसका वही सम्बन्ध रहे जो औपनिवेशिक मंत्री का औपनिवेशिक सरकारों के साथ हो।
9. भारतीय प्रशासकीय सेवा (सिविल सर्विस) में नियुक्तियाँ करने का अधिकार भारत सरकार में निहित होना चाहिए।
10. ब्रिटिश भारतीय सेना में सेना और नौसेना के कमिशण्ड और गैर-कॉमिशण्ड पदों पर भारतीय लोगों की नियुक्ति की जाए।
लखनऊॅं समझौते में कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचक-मण्डल की माँग को भी औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया, जो मुस्लिम लीग के लिए एक बहुत बडी सकारात्मक उपलब्धि थी, क्योंकि कांग्रेस अब तक इसका विरोध करती आ रही थी। इसमें शक नहीं कि इस समझौता से कम-से-कम इतना फायदा अवश्य हुआ कि भारत में राष्ट्रीय एकता का वातावरण उत्पन्न हुआ और हिन्दू तथा मुसलमान परस्पर मिलकर स्वराज्य आन्दोलन में अग्रसर हुए। इस प्रकार कांग्रेस-लीग समझौता राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम था, लेकिन कांग्रेस को इसके लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। मुसलमानों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को स्वीकार करके कांग्रेस ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि मुसलमान एक पृथक् राष्ट्रीयता है। कांग्रेस ने इन मॉगों को मानकर सदा के लिए मुस्लिम लीग और साम्प्रदायिकता के सामने घुटने टेक दिया। डा0 ईश्वरी प्रसाद ने ठीक ही कहा है कि- ’‘लखनऊॅ समझौता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग को संतुष्ट करने की नीति का प्रारम्भ था।“
कांग्रेस का यह सोचना कि विशेष सुविधाएं प्रदान करने से मुसलमानों की साम्प्रदायिक भावना भविष्य में शांत हो जायगी, यह भी ख्याली पोलाव सिद्ध हुआ। कालान्तर में मुसलमानों की साम्प्रदायिक प्रवृत्तियां निरन्तर तीव्रतर होती गयीं जिसका भयानक परिणाम हुआ। लखनऊ समझौता केवल एक अस्थायी विराम समझौता था। मुस्लिम लीग ने इस समझौते के बावजूद अपना पृथक् अस्तित्व बनाए रखा। मुस्लिम लीग हिन्दुओं के सामान्य हितों से भिन्न, मुसलमानों के लिए पृथक् राजनीतिक अधिकारों की वकालत करती रही। 1922 में चौरी-चौरा घटना के परिणामस्वरूप असहयोग आन्दोलन के स्थगन तक कांग्रेस और लीग दोनों इस समझौते की भावना के अनुरूप एक-दूसरे के साथ सहयोग करते रहे और एकसाथ राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रहे। परन्तु असहयोग आन्दोलन के स्थगन के साथ ही लखनऊॅ समझौता भंग हो गया और लीग ने पुनः अपना पुराना पृथक् रास्ता पकड़ लिया। लखनऊ समझौता भंग हो जाने के उपरान्त मुस्लिम लीग कांग्रेस और राष्ट्रीय आन्दोलन दोनों की पहले से कहीं अधिक कटु शत्रु बन गई। डॉ0 रमेश चन्द्र मजूमदार ने लखनऊॅ समझौते की बहुत कटु आलोचना करते हुए लिखा है कि - “परवर्ती घटनाओं की पृष्ठभूमि में निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि 1916 में कांग्रेस द्वारा लखनऊ समझौता करने के निर्णय ने वस्तुतः वह नींव डाली जिसके ऊपर तीस वर्षों बाद पाकिस्तान का निर्माण किया गया।
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