window.location = "http://www.yoururl.com"; Revolt of King Payassi. | पायस्सी राजा का विद्रोह

Revolt of King Payassi. | पायस्सी राजा का विद्रोह

 


पायस्सी राजा  का विद्रोह :

1792 की फरवरी और मार्च की श्रीरंगपट्टम की संधियों के अनुसार कुर्ग और कोचीन समेत सारा मालाबार ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ आ गया। 1799 की मैसूर के बॅटवारे की संधि के अनुसार केरल का वाइनाड तालुका भी अंग्रेजों को मिल गया, लेकिन यहाँ के छोटे-छोटे सामन्त सरदारों ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार न की। इन अंचलों को पाने के बाद अंग्रेजों ने उन पर बहुत बढ़ा-चढ़ा कर मालगुजारी लादी, लेकिन वसूल करने की हिम्मत किसमें थी ? अंग्रेजों ने तब एक चाल चली। उन्होंने मालगुजारी की वसूली का ठेका सामन्त सरदारों को देना शुरू किया। इससे सामन्त सरदारों में फूट देखी गयी, ठेका लेने के लिए वे एक दूसरे से प्रतिद्वन्द्विता करने लगे। अंग्रेज तो इनको आपस में भिड़ा कर अपनी गोटी लाल कर लेना चाहते थे।

केरल के कोट्टायम परिवार के राजा केरल वर्मा, जिन्हें आम तौर पर पायस्सी राजा कहा जाता है, अंग्रेजों की इस नीति से विद्रोही बन गये। इस राजा का कोट्टायम में बड़ा असर था । अंग्रेजों  ने इनको धोखा देकर कोट्टायम की मालगुजारी वसूल करने का पट्टा कुरुम्बनाड के राजा को दे दिया। इस पर क्रुद्ध होकर पायस्सी राजा ने 28 जून 1795 को अपने जिले की मालगुजारी की सारी वसूली बंद कर दी। जब अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तो वे विद्रोही बन गये और अपने साथियों के साथ वाइनाड के जंगल में चले गये।

अंग्रेज डर गये कि कहीं पायस्सी राजा टीपू सुल्तान के साथ न मिल जायँ; इसलिए उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की। वादा किया कि जुलाई-अगस्त 1796 में उनका जिला और जायदाद उन्हें सौंप दी जायगी। लेकिन अंग्रेजों ने यह समझौता लागू करने में जान बूझ कर देरी की। इसलिए राजा पायस्सी का यह संदेह करना बिलकुल स्वाभाविक था कि अंग्रेज अपना वादा पूरा करने की जगह उन्हें गिरफ्तार करने की फिराक में हैं। उनके साथ धोखा किया गया है और संधि जाल मात्र है। इसलिए वे फिर जंगल में चले गये और इस तरह विद्रोह संगठित किया कि अंग्रेजों की नींद हराम हो गयी। उनके विद्रोह की ताकत बढ़ती देख कंपनी की तरफ से घोषणा जारी की गयी कि जो लोग पायस्सी राजा की मदद करेंगे या साथ देंगे, उन्हें कठोर दण्ड दिया जायगा ।

लेकिन विद्रोह की आग बढ़ती गयी। मालाबार के असंतुष्ट सामान्त सरदार इसमें शामिल हुए। कोहट के राजा अपने सैनिकों के साथ पायस्सी राजा से आ मिले। कहा जाता है कि यह राजा टीपू सुल्तान से मिल कर आया था। कुरुम्बनाड के राजा के भी विद्रोह में शामिल होने की बात पायी जाती है। जनवरी 1797 ई0 में पायस्सी राजा के समर्थकों और कंपनी के सैनिकों के बीच कितनी ही भिड़ंतें हुईं। 17 मार्च को कैप्टेन लारेंस की बटालियन के 80 आदमियों के दस्ते पर विद्रोही यकायक टूट पड़े और उसे काट कर रख दिया। कर्नल डाउ को भी विद्रोहियों के हाथ बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। कहा जाता है कि पायस्सी राजा की मदद टीपू के सैनिक कर रहे थे।’

18 मार्च 1797 को भी अंग्रेज सेना को बुरी हार खानी पड़ी। मेजर कैमरान 1100 आदमियों के साथ पेरिया दर्रे से होकर पीछे हटने की कोशिश कर रहा था। उसी वक्त विद्रोही उस पर टूट पड़े। मेजर, तीन और अंग्रेज अफसर तथा कितने ही देशी अफसर और सिपाही मारे गये। अंग्रेजों की हालत पतली हो रही थी। ब्रिटिश अधिकृत अंचल पर टीपू के आक्रमण की संभावना बढ़ रही थी। टीपू उधर फ्रांसीसियों से लिखा-पढ़ी कर रहे थे। उन्होंने 20 अप्रैल 1797 को जो पत्र फ्रांसीसी जनरल मांगलों को लिखा था, उसमें मालाबार के विद्रोह के दलदल में फंसे अंग्रेजों की दुर्दशा का वर्णन था। यह पत्र श्रीरंगपट्टम पर अंगरेजों के अधिकार के बाद पाया गया था।

मालावार सेना के मेजर जनरल बोलेस का 10 अप्रैल 1797 ई0 का सरकारी पत्र बताता है कि पायस्सी राजा को कुचलने की सारी तैयारी पूरी हो गयी थी। ट्रैफल्गर सेना और कुरुम्बनाड के राजा की सेना इस कार्य में लगायी गयी थी। लेकिन 9 मई 1797 ई0 के प्राप्त तथ्य बताते हैं कि उस वक्त भी विद्रोही दृढ़ता से मुकाबला कर रहे थे।

इस विद्रोह के जारी रहने में अंग्रेजों ने बड़ा खतरा देखा। फ्रांसीसी और टीपू सुल्तान का अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बन रहा था। भारत के अन्य राजाओं के साथ भी अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बनाने की लिखा-पढ़ी चल रही थी। कुल मिला कर भारत में बहुत बड़ा युद्ध कंपनी के खिलाफ छिड़ जाय, इसके पहले ही पायस्सी राजा का विद्रोह दबा देने का फैसला अंग्रेजों ने किया। इसलिए बंबई के गवर्नर जोनाथन डंकन खुद मालाबार दौड़ आये, कुरुम्बनाड के राजा के साथ हुए समझौते को फाड़ फेंका, पायस्सी राजा के साथ समझौता किया और उन्हें आठ हजार रुपए सालाना की पेन्शन भी दी। इस तरह विद्रोह कुछ समय के लिए ठण्डा पड़ गया।

लेकिन अंग्रेजों तो पायस्सी राजा और दूसरे विद्रोहियों को कुचल देने पर तुले थे।’ इसलिए 1800 में फिर पायस्सी राजा ने विद्रोह का झण्डा बुलंद किया। मैसूर की हार के बाद कंपनी की वाइना मिल गया था। पायस्सी राजा ने इस पर अपना दावा किया और मैसूर के सिपाहियों, नायरों तथा मोपलों को साथ लेकर उस पर अधिकार करने से अंग्रेजों को रोका।

कंपनी ने विद्रोहियों का दमन करने के लिए इस बार अपने नामी सेनापति भेजे। इनमें कर्नल आर्थर वेलेजली थे जो बाद में इतिहास प्रसिद्ध ड्यूब आफ वेलिंगटन कहलाये। दूसरे थे कर्नल स्टेवेन्सन। इतिहासकार लोगन ने लिखा है कि पायस्सी राजा और उनके साथियों का दमन करने में इन महान सेनापतियों को 1800 से 1804 तक बराबर लड़ना पड़ा और एड़ी-चोटी का पसीना एक करना पड़ा। हजारों अंग्रेज और देशी सिपाहियों को इन विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए जमा किया गया। पायस्सी राजा को पकड़वाने वाले को दस हजार रुपए के इनाम की घोषणा की गयी। कंपनी के डाइरेक्टरों ने अंग्रेज अफसरों की, खास कर कर्नल स्टेवेन्सन के कामों की बड़ी प्रशंसा की और विद्रोह के नेता पायस्सी राजा को जल्दी गिरफ्तार करने को कहा।

इसी बीच कंपनी की तरफ से मेजर मैकलायड ने हथियार सौंप देने का हुक्म वाइनाड के सभी लोगों को दिया और सितम्बर 1802 ई0 में जमीन की मालगुजारी बढ़ा दी। इससे विद्रोह की आग में घी पड़ गया। वाइनाड और आसपास के सारे अंचल में विद्रोह की आग धू-धू कर जलने लगी। 11 अक्टूबर 1802 को विद्रोहियों ने एदचेत्रा कुंगन के नेतृत्व में बाइनाड के पानामरम किले पर कब्जा कर लिया और उसकी रक्षा करने वाले कंपनी के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उन्होंने कोट्टियूर और पेरिया के दरों पर कब्जा कर लिया। अंजरकंडी के मसाले के बगानों को नष्ट कर दिया। 1803 ई0 में सारे प्रांत में विद्रोह की लपटें उठने लगीं, चारों तरफ विद्रोह फैल गया। सशस्त्र विद्रोही खुले मैदानों में सुप्रशिक्षित कंपनी सेना का मुकाबला करने लगे।

मालाबार की भूमि छापामार युद्ध के लिए बहुत ही अच्छी है। विद्रोहियों ने यह कौशल अपनाया और कंपनी की सुरक्षित सेना की नाक में दम कर दिया। आखिर में सन् 1804 ई0 में कैप्टेन वाटसन ने कोलकार नामक बदनाम पुलिस दल संगठित किया। इसने विद्रोह की दबाने में बड़ा काम किया। अप्रैल 1805 ई0 में मद्रास सेना ने संगठित विद्रोह एकदम दबा दिया। 16 जून 1805 ई0 को कंपनी की सरकार की तरफ से घोषणा की गयी कि जो विद्रोहियों के बारह नेताओं की गिरफ्तार करा देंगे, उन्हें बड़ा इनाम दिया जायगा। पायस्सी राजा को पकड़ने की बड़ी कोशिश हुई, पर वे हाथ न आये। 30 नवम्बर 1805 को वे अंग्रेजों से लड़ते हुए मारे गये।

31 दिसम्बर 1805 ई0 को छोटे कलक्टर बाबर ने उच्च अधिकारियों को जो रिपोर्ट भेजी, उसमें स्वीकार किया कि इस विद्रोह का समर्थन केरल और मैसूर की जनता भी करती थी। पायस्सी राजा जनता के प्यारे नेता थे। मैसूर के गाँवों से उनके पास वाइनाइ के जंगल में रसद पहुँचती थी। बाबर के अनुरोध से मैसूर के रेजीडेन्ट मेजर विल्कंस ने इसे रोकने की व्यवस्था की थी। बाबर ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि पायस्सी राजा की मृत्यु जनता के दिल से उनकी बाट मिटा नहीं सकती। पायस्सी राजा बाबर के साथ संघर्ष में मारे गये थे। उसने इस बहादुर शत्रु के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया था।

दूसरे विद्रोही नेताओं का क्या हुआ ? इस संदर्भ में बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि एदचेन्ना अम्मू लड़ते हुए मारे गये। एदचेन्ना कुंगन ने दुश्मनों के हाथ पड़ने से बेहतर आत्महत्या समझा। पल्लूर रायरप्पन दुश्मनों के घेरे को तोड़कर निकलते वक्त मारे गये। उनके भाई पल्लूर एयान 1806 ई0 में प्रिंस आफ वेल्स द्वीप में निर्वासित कर दिये गये। समुद्री (जमोरिन) के घराने की पच्छिमी शाखा के राजा ने कुछ विद्रोहियों को शरण दी थी। उन्हें डिंडीगुल दुर्ग भेजा दिया गया। इस प्रकार शीध्र ही पायस्सी राजा का विद्रोह अपने तमाम संघर्ष के बाद समाप्त हुआ।


1 Comments

Previous Post Next Post