window.location = "http://www.yoururl.com"; Tuzuk-e-Baburi. // तुजुक-ए-बाबरी

Tuzuk-e-Baburi. // तुजुक-ए-बाबरी


बाबरनामा -

इतिहस लेखन के इतिहास में तुजुक-ए-बाबरी अर्थात बाबरनामा का विशेष महत्व है क्योंकि इसमें मुगलकाल के इतिहास के प्रारंभिक वर्षो की संक्षिप्त जानकारी प्राप्त होती है। बाबरनामा एक Auto biography (आत्मकथा) है जिनकी रचना बाबर ने स्वयं की है। बाबर समरकन्द का शासक था जिसने 1526 ई0 में पानीपत के युद्ध में दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल वंश की स्थापना की थी। 1589 ई0 में अकबर के आज्ञानुसार बैरम खॉं के पुत्र अब्दुल रहीम खानखाना ने इसका फारसी में अनुवाद किया। बाबरनामा तुर्की भाषा में लिखी गई भारत में पहली पुस्तक थी। वर्ष 1820 ई में दो अंग्रेज विद्वानों Leyden तथा Erskine ने इसका प्रथम अंग्रेजी अनुवाद किया। वर्ष 1905 ई0 में Annette Beveridge ने बाबरनामा का दूसरा अंग्रेजी अनुवाद किया। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि Annette Beveridge का अंग्रेजी अनुवाद Leyden तथा Erskine के अंग्रेजी अनुवाद से अधिक विश्वसनीय माना जाता है। अलीगढ के सैयद अब्बास रिजवी ने इसके कुछ अंशों का हिन्दी में अनुवाद किया। बाबरनामा को तुजुक-ए-जहॉगीरी तथा तैमूर की आत्मकथा से अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। बाबरनामा में वर्ष 1494 ई0 से लेकर 1530 ई0 के बीच के 36 वर्षो का इतिहास नीहित है। 

तुजुक-ए-बाबरी में नीहित तथ्यों को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में बॉटा जा सकता है -

  1. मध्य एशिया में वर्ष 1494 ई0 से 1503 ई0 के मध्य का इतिहास
  2. पश्चिम एशिया अर्थात काबुल में वर्ष 1504 ई0 से 1525 ई0 के मध्य का इतिहास
  3. भारत में वर्ष 1526 ई0 से 1530 ई0 के बीच का इतिहास
यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि बाबरनामा में कुल 36 वर्षो के काल का इतिहास नीहित है किन्तु इसमें सम्पूर्ण रूप से 36 वर्षो का इतिहास नही मिलता है। इसमें सम्पूर्ण रूप से मात्र 18 वर्षो का इतिहास नीहित है। शेष 18 वर्षो का इतिहास नही मिलने के निम्नलिखित कारण बतलाए जा सकते है –
  1. संभवतः अव्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के कारण बाबर अनेक वर्षो का इतिहास न लिख सका हो।
  2. अव्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के कारण हो सकता है कि उसके द्धारा लिखा गया अनेक वर्षो का इतिहास गायब हो गया हो।
  3. यह भी संभव है कि जिस काल के इतिहास का वर्णन तुजुक-ए-बाबरी में नही है, उन वर्षो में घटी घटनाओं को बाबर ने महत्वपूर्ण न समझा हो।
  4. यह भी संभव है कि बाबर ने अपनी असफलता तथा दोषो को छुपाने के लिए जानबूझकर कुछ वर्षो के इतिहास नही लिखे।
    लेकिन इस चौथे मत को Leyden तथा Erskine स्वीकार नही करते क्योंकि उनका तर्क है कि जो व्यक्ति स्वयं अपने चारित्रिक दोषों को अपनी आत्मकथा में स्पष्ट रूप से वर्णित करता है, वह स्वयं ऐसा नही कर सकता है। अतः इस दृष्टि से चौथे मत को स्वीकार नही किया जा सकता है।
जिन 18 वर्षो का इतिहास तुजुक-ए-बाबरी में नही मिलता, वह मूल रूप से तीन खण्डों में वर्णित है –
  1. वर्ष 1503 से 1504 ई0 तक
  2. वर्ष 1508 से 1519 ई0 तक
  3. वर्ष 1520 से 1525 ई0 तक
बाबर की आत्मकथा के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि बाबर घटनाओं का अच्छा पारखी था अर्थात वह घटनाओं का बडा सूक्ष्म अवलोकन करता है। वह जहॉ जहॉ भी गया वहॉ की जलवायु, भौगोलिक स्थिती, आर्थिक स्थिती आदि तथ्यों का स्पष्ट और निष्पक्ष वर्णन उसने अपनी आत्मकथा में किया है। भारत की भौगोलिक दशा के सन्दर्भ में बाबर अपनी आत्मकथा में लिखता है कि – हिन्दुस्तान एक अदुभूत देश है, यहॉ के जंगल, पहाड, नदियॉ, वर्षा, जलवायु आदि सभी कुछ भिन्न प्रकार का है। जब उसने सिन्ध नदी पार किया तो उसने देखा कि यहॉ के निवासी और उनका चरित्र , उनके व्यवहार आदि उसके स्वदेश के लोगों से भिन्न है। उसने अपनी आत्मकथा में यहॉ के नदी और नालों के तेज रफ्तार का भी उल्लेख किया है। यहॉ तक कि उसने यहॉ के पशु-पक्षी, पेड-पौधे, फूल, फल आदि का भी जिक्र किया है। यहॉ के जंगलों का वर्णन करते हुए वह कहता है कि वो इतने घने है कि जो लोग सरकार को भूमि कर नही देना चाहते है वो भागकर अक्सर इन घने जंगलों में छुप जाते है और वही से विद्रोह का झंडा खडा कर देते है। हिन्दुस्तान की वर्षा के सम्बन्ध में बाबर लिखता है कि – यहॉ वर्षा ऋतु में मौसम बडा सुहावना होता है। कभी कभी एक दिन में 15 -20 बार वर्षा होती है। इस ऋतु में ठंडी हवाएॅ बहती है जिनसे वातावरण नम हो जाता है। वह अपनी आत्मकथा में लिखता है कि – ‘‘हिन्दुस्तान में गर्मी में उत्तरी हवाएॅं बहती है, कभी कभी तूफान भी आ जाते है जबकि पूरा आकाश धूल से भर जाता है और एक दूसरे को देखना तक असंभव हो जाता है। लेकिन गर्मी इतनी अधिक पडती है कि वह असहनीय हो जाती है। बल्ख और बदखसा की तुलना में यहॉं पर दुगुनी गर्मी पडती है। वह लिखता है कि – भारत एक विशाल देश है, यहॉं के संसाधन समृद्ध है और यहॉं सोने चॉंदी की बहुलता है, आर्थिक दशा के बारे में उसने जो अनेकों विवरण दिये है उससे स्पष्ट होता है कि उस समय भारत में खाद्य सामग्री न केवल सस्ती थी अपितु प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। हिन्दुस्तान के उद्योग धन्धों तथा व्यवसायों का अवलोकन करने पर बाबर ने यह अनुभव किया कि यहॉं के लोग पीढी दर पीढी एक ही व्यवसाय तथा उद्योग धन्धे अपनाते थे। इसलिए बाबरनामा में उसने लिखा है कि – हिन्दुस्तान के व्यवसाय तथा उद्योग धन्धे आनुवांशिक है। भारत की प्रशंसा करने के साथ साथ उसने अपनी आत्मकथा में यहॉ के अनेक तथ्यों की आलोचना भी की है। जैसे वह लिखता है कि हिन्दुस्तान के गॉंव तथा शहर गन्दे रहते है, यहॉं के लोग खूबसूरत नही है, उसमें अविष्कार करने की क्षमता नही है, उनमें विनम्रता तथा दयालुता जैसे गुणों का अभाव है, यहॉं के लोगों द्धारा बनाए गए भवन असन्तुलित है, भवनों का निर्माण अरबी ज्यायमितिय सिद्धान्तों के अनुरूप नही किया गया है। यहॉ पर अच्छे मदरसे तथा हम्माम का अभाव है। यहॉं अच्छे किस्म के घोडे, अंगूर, तरबूज और अन्य अच्छे फल नही पाए जाते है।

बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘‘तुजुक-ए-बाबरी‘‘ में हिन्दुस्तान की राजनीतिक दशा का भी वर्णन किया है। बाबर लिखता है कि जब हिन्दुस्तान पर उसका अधिकार हुआ तो उस समय हिन्दुस्तान सात राज्यों में बटॉं था जिसमें पॉंच मुस्लिम तथा दो हिन्दू राज्य थे। ये पॉंच मुस्लिम राज्य निम्नलिखित थे – बहमनी साम्राज्य, गुजरात, मालवा, दिल्ली और बंगाल। इसके अतिरिक्त दो हिन्दू राज्य अग्रलिखित थे - मेवाड तथा विजयनगर।

यदि वास्तव में बाबर के आक्रमण के समय का हम भारत की राजनीतिक स्थिती का अध्ययन करते है तो बाबर का यह राजनीतिक ज्ञान अधूरा प्रतीत होता है क्योंकि इसके अलावा भी भारत में अनेक हिन्दू – मुस्लिम साम्राज्य अस्तित्व में थे। बहमनी राज्य का अस्तित्व बाबर के आने के पूर्व ही समाप्त हो गया था और यह पॉंच स्वतंत्र शिया राज्य – बीदर, बरार, गोलकुण्डा, बीजापुर तथा अहमदनगर में विभाजित हो गया था। बाबर को यह भी मालूम नही था कि भारत के पश्चिमी तट पर पुर्तगाली बस चुके थे जिनका 1510 ई0 में गोवा तथा 1530 ई0 में दमन दीव पर अधिकार हो चुका था।

बाबर की आत्मकथा बाबरनामा से बाबर के व्यक्तित्व पर भी प्रकाश पडता है। बाबर लिखता है कि उसके जीवन में अनेक बार विपरीत परिस्थितीयॉं आई पर उसने अपना कभी भी धैर्य नही खोया। तुजुक-ए-बाबरी के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि बाबर बहुत बडा प्रकृति प्रेमी था। अपनी आत्मकथा में उसने अपने दोषों पर भी प्रकाश डाला है। जैसे अपनी आत्मकथा में वह बपनी बार बार शराब पीने की आदतों का उल्लेख करता है। वह यह मानता है कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसलिए वह प्रतिज्ञा करता है कि 40 वर्ष की आयु हो जाने पर वह शराब पीना बन्द कर देगा लेकिन उपर्युक्त समय आने पर वह अपनी प्रतिज्ञा भूल जाता है। यद्यपि अपनी आत्मकथा में वह तीन बार शराब न पीने की शपथ लेता है लेकिन फिर भी जीवनपर्यनत वह शराब पीता रहता है। इसके अलावा बाबर ने यह भी स्वीकार किया है कि शराब के अतिरिक्त भी वह अन्य पेयो का इस्तेमाल करता है। उसने अपनी आत्मकथा में उन अवसरों का भी उल्लेख किया है जबकि उसे एक आम आदमी की भॉंति काम करना पडा था। वास्तव में यदि बाबर चाहता तो वह अपनी चारित्रिक दोषों को छुपा भी सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया है। संभवतः इसलिए उसे एक महान आत्मकथाकार कहा जाता है। उसेने अपनी पुस्तक में अपने समकालीन व्यक्तियों जैसे – इब्राहिम लोदी, दौलत खॉं, महाराणा संग्राम सिंह आदि के चरित्र तथा व्यक्तित्व का भी मूल्यांकन किया है। इस मूल्यांकन की सबसे बडी विशेषता यह है कि दूसरों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते समय उसके उपर व्यक्तिगत मित्रता अथवा शत्रुता का कोई प्रभाव नही पडा था। बाबरनामा में अनेक ऐसे तथ्य तथा विवरण भी है जो त्रुटिपूर्ण भी है संभवतया इसलिए क्योंकि वह यहॉं के संस्कारों को अच्छी तरह समझ नही पाया, उसके सम्मुख भाषा की समस्या भी आई होगी और अनेक बार उसने घटनाओं का सामान्यीकरण भी किया होगा लेकिन इन त्रुटियों के बावजूद बाबरनामा अथवा तुजुक-ए-बाबरी प्रथम श्रेणी की आत्मकथा है। यह भाषा तथा शैली के दृष्टिकोण से उच्चकोटि की पुस्तक है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नही है।

बाबरनामा की रचनातिथि के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है लेकिन बाबरनामा के आन्तरिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि बाबर ने वर्ष 1519 ई0 के बाद से तुजुक-ए-बाबरी लिखना प्रारम्भ किया।
Erskine ने भी लिखा है कि जब बाबर को भारत में सफलता मिलनी प्रारम्भ हो गई तभी उसने अपनी आत्मकथा लिखना प्रारम्भ किया होगा।

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