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Pre-Historic Age (प्रागैतिहासिक काल)




इतिहास का विभाजन प्रागितिहास (Pre-History) आद्य इतिहास (Proto-History) और इतिहास (History) तीन भागों में किया जाता है। प्रागितिहास से तात्पर्य उस काल से है जिसका कोई लिखित साक्ष्य नही मिलता। आद्य इतिहास वह है जिनमें लिपि के साक्ष्य तो है किन्तु उनके अपठनीय होने के कारण कोई निष्कर्ष नही निकलता। जहॉ से लिखित साक्ष्य मिलने लगते है वह काल ऐतिहासिक है। इस दृष्टि से पाषाण कालीन सभ्यता प्रागितिहास तथा सिन्धु एवं वैदिक सभ्यता आद्य इतिहास के अन्तर्गत आते है। ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी से ऐतिहासिक काल प्रारम्भ होता है। यद्यपि कुछ विद्वान ऐतिहासिक काल के पूर्व के समस्त काल को प्रागैतिहासिक काल के नाम से ही सम्बोधित करते है।

पाषाणकालीन युग –

सर्वप्रथम 1863 ई0 में सर्वप्रथम भारत में पाषाण कालीन सभ्यता का अनुसंधान प्रारंभ हुआ जबकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विद्वान राबर्ट ब्रूस फुट ने मद्रास के पास अवस्थित पल्लवरम् नामक स्थान से पाषाण काल का एक पाषाण का उपकरण प्राप्त किया। सबसे महत्वपूर्ण अनुसंधान 1935 ई0 में डी0 टेरा तथा पीटरसन द्वारा किया गया। इन दोनों विद्वानों ने शिवालिक पहाडियों की तलहटी में बसे हुए पोतवार के पठारी भाग का व्यापक सर्वेक्षण किया था। विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता का उदय और विकास प्रतिनूतन काल (Pleistocene age) में हुआ। इस काल की अवधि आज से लगभग पॉच लाख वर्ष पूर्व मानी जाती है।

प्रस्तर अथवा पाषाण काल को मानव सभ्यता की दृष्टि से सबसे आरंभिक काल माना जाता है। इस काल के विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण यानि पत्थर के अपकरणों, मिट्टी के बर्तनों और खिलौनों से होती है। पृथ्वी की आयु लगभग 400 करोड वर्ष मानी जाती है। इसकी परतों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि पृथ्वी विकास की चार अवस्थाओं से होकर गुजरी है। सबसे अन्तिम अवस्था ‘‘चतुर्थिकी‘‘ अथवा Quarternary कहलाती है जिसके दो भाग है- प्लाइसटोसिन अथवा अतिनूतन तथा होलोसीन या अद्यतन। मानव के बारे में यह कहा जाता है कि वह इस पृथ्वी पर ‘‘प्लाइसटोसिन‘‘ काल के आरम्भ में उत्पन्न हुआ और लगभग इसी समय गाय, घोडा, हाथी आदि भी इस धरती पर आये। ज्ञानी मानव अर्थात ‘होमो-सेपियन्स‘ (Homo-Sapiens) का उदय इस घरती पर आज से करीब 30 या 40 हजार साल पहले हुआ।
प्रस्तरकालीन अथवा पाषाणकालीन मानव सभ्यता को तीन कालों में बॉटा जा सकता है –
पुरापाषाण काल (Paleolithic Age)
मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age)
नवपाषाणकाल (Neolithic Age)

पुरापाषाण काल
यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाणकाल) शब्द बना ।यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण। पुरापाषाण के मानव का जीवन यापन शिकार और खाद्य-संग्रह से होता था। यह स्थिती लगभग 9000 ई0पू0 तक बनी रही। भारत में पुरापाषाण कालीन सभ्यता का विकास ‘प्लाइसटोसिन काल ‘ या ‘हिम-युग‘ में हुआ। इस काल में पृथ्वी की सतह का बहुत अधिक भाग खासकर अधिक उॅचाई पर और उसका निकटवर्ती स्थान वर्फ की चादरों से ढका रहता था।

  • पुरापाषाण काल के आदिम मानव के जीवाश्म (शारीरिक अवशेष) भारत में कहीं भी नही मिले है। इस समय मानव अस्तित्व होने का प्रमाण उस समय प्रयोग में पाये जाने वाले पत्थर के औजारों के रूप में प्राप्त होता है जिसका समय लगभग 250000 ई0पू0 बताया जाता है।
  • कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थल पर हुए उत्खनन से कुछ ऐसे अवशेष मिले है जिनके आधार पर मानव का अस्तित्व लगभग 14 लाख वर्ष पहले से माना जा सकता है। संभवतः भारत में मानव सभ्यता का विकास दक्षिण अफ्रीका की अपेक्षा बाद में हुआ माना जाता है।
  • पुरापाषाणकालीन आदिम मानव पत्थर के अनगढ तथा अपरिष्कृत औजारों का प्रयोग करता था। पुरापाषाणकालीन मानव अग्नि से अपरिचित थे। वह खेती करने तथा घर बनाकर रहने की कला से भी परिचित नही थे।
  • लगभग एक लाख ई0पू0 के औजार छोटानागपुर के पठार से मिले है।
  • बीस हजार ई0पू0 से दस हजार ई0पू0 के औजार आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल शहर के पास से मिले है।
  • उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की बेलन घाटी में मिले पशुओं के अवशेष से बकरी, भेड, गाय, भैस आदि मवेशी पाले जाने की बात प्रमाणित होती है।
  • अधिकांश हिम-युग आरंभिक पुरापाषाण काल में गुजरा। इसका लक्षण है – कुल्हाडी या हस्त कुठार (Hand-axe ) विदारणी (Cleaver) और खण्डक या गॅडासा। इस काल के स्थल पाकिस्तान की सोहन नदी घाटी में पाये गये है। कुछ स्थल थार के रेगिस्तान, डिडवाना और काश्मीर में भी पाये गये है। सामान्य पत्थरों के कोर तथा फलक्स प्रणाली द्वारा बनाए गए औजार मुख्य रूप से मद्रास में पाए गए है। इन दोनों प्रणालीयों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्जापुर व बेलन घाटी व इलाहाबाद से भी मिले है।
  • मध्यप्रदेश के भोपाल नगर के पास भीमबेटका में मिली पर्वत गुफाएॅ भी महत्वपूर्ण है। इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्ण रूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। संभवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेट (Negraeto) जाति के थे।

पुरापाषाण युग को औजार व उपकरणों के आधार पर तीन अवस्थाओं में बॉटा जा सकता है –

  • काल अवस्थाएॅ
  • निम्न पुरापाषाण काल हस्तकुठार और विदारणी
  • मध्य परापाषाण काल शल्क अथवा फलक्स से बने औजार
  • उच्च पुरापाषाण काल शल्कों और फलाकों अर्थात ब्लेड पर बने औजार

मध्य पुरापाषाण काल के औजार प्रायः शल्क से बनाए जाते थे। इन औजारों में फलक, बेधनी, छेदनी, और खुरचनी प्रमुख है। इस युग का शिल्प कौशल नर्मदा नदी के तटवर्ती तथा तुंगभद्रा नदी के दक्षिणवर्ती अनेंक स्थानों से पाया जाता है।

नव या उच्च पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएॅ है – नये चकमक उद्योग की स्थापना तथा आधुनिक स्वरूप वाले मानव होमो सेपियन्स का उदय। इस समय मानव द्वारा प्रयुक्त गुफाएॅ भोपाल के भोपाल से 40 किलोमीटर दक्षिण स्थित भीमबेटका में मिली है। गुजरात के टिब्बों में इस काल का एक भण्डार भी मिला है जिससे शल्कों, फलाकों, तक्षणियों और खुरचनियों की बहुतायत है। इसी काल में मानव जाति अग्नि से परिचित हुई।

मध्यपाषाण काल-

  • लगभग 9000 ई0पू0 में सामने आने वाली मध्यवर्ती अवस्था में मध्य पाषाण युग के लोग शिकार करके, मछली पकड कर, और खाद्य बस्तुए बटोरकर पेट भरते थे। इस युग की उत्तरावस्था में लोग पशुपालन की ओर भी आकृष्ट हुए। पुरातत्व से यह भी पता चलता है कि इस समय के मानव गाय, बैल, भैंस, भेड, बकरी, घोडे का शिकार करते थे। कुत्ते मानव के सहयोगी तथा पालतू पशु थे। राजस्थान स्थित सॉभर नामक झील की परतों के अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि 7000-6000 ई0पू0 के आसपास यहॉ पौधे लगाये जाते थे। इस समय की मानव अस्थियॉ उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ के सराय नाहर एवं महदहा नामक स्थानों से मिली है।
  • इस युग में जो औजार काम में लाए जाते थे, वे लघु अश्म कहे जाते है। ये औजार मुख्यतः छोटानागपुर, मध्य भारत तथा कृष्णा नदी के दक्षिणी भाग में पाए गए है।

नवपाषाण काल-

  • पाषाण काल की अन्तिम अवस्था नवपाषाण काल के नाम से जानी जाती है। इस समय की एक भारतीय बस्ती मेहरगढ, जो अब पाकिस्तान में है जो 7000 ई0पू0 यानि सबसे पुरानी मानी जाती है। सबसे पहले 1860 ई0 में इस युग का प्रस्तर औजार लीमेसुरियर को उ0प्र0 की टौंस नदी घाटी से प्राप्त करने में सफलता मिली। 1872 ई0 में निविलयन फ्रेजर ने कर्नाटक के बेलारी संभाग को दक्षिण भारत का नवप्रस्तर कालीन केन्द्रीय स्थल बताया। इस युग के लोग पालिशदार पत्थर के औजारों खासकर प्रस्तर कुल्हाडीयों का प्रयोग करते थे।
  • लगभग 6000 ई0पू0 तक यह सभ्यता काश्मीर के बुर्जहोम में रहा। काश्मीर में इस संस्कृति की अनेक विशेषताएॅ है जैसे- गढ्ढों वाले घर, अनेक प्रकार के मृदभाण्ड, पत्थर और हड्डी के औजार एवं छोटे प्रस्तर उपकरणों का अभाव। इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार शिकार और मछली मारना था। ये कृषि कार्य और पशुपालन से परिचित नहीं थे। वे मात्र कुत्ते पालते थे जो मालिक की मृत्यु के बाद साथ ही दफना दिये जाते थे। श्रीनगर स्थित बुर्जहोम के लोग एक झील के किनारे गढ्ढों वाले घरों में रहते थे। इसके अरिरिक्त वे रूखडे धूसर मृदभाण्ड का प्रयोग करते थे।
  • श्रीनगर के पास ही एक अन्य नवपाषाण कालीन स्थल ‘गुफकराल’ है जहॉ के लोग कृषि के साथ-साथ पशुओं को भी पालते थे। पकी मिट्टी की मूर्तिकाओं से पता चलता है कि इस काल के लोग गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि पालते थे। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के नवपाषाण कालीन लोग चावल की खोज 6000 ई0पू0 में कर चुके थे। अन्तिम चरण में ये लोग रागी, कुल्थी उपजाते थे। अतः नवपाषाण कालीन मानव सबसे पुराने कृषक समुदाय थे। वे पत्थर के फावडों (हो) और पत्थर लगे डंडों से जमीन खोदते थे। बर्तन बनाने के लिए सबसे पहले कुंभकारी इसी युग में प्रारंभ हुआ। इन वर्तनों में पालिशदार काला मृदभाण्ड, धूसर मृदभाण्ड और मन्दवर्ण मृदभाण्ड शामिल है।

मध्य गंगा घाटी का सबसे महत्वपूर्ण नव पाषाणकालीन पुरास्थल ‘चिरान्द’ है जो बिहार के छपरा जिले में अवस्थित है। उत्खनन से ज्ञात होता है कि यहॉ के लोग अपने निवास के लिए बॉंस-बल्ली की झोपडियॉ बनाते थे तथा यहॉ के लोग धान, मसूर, गेहूॅ, जौ आदि की खेती करना जानते थे।

नवपाषाणकालीन संस्कृति अपनी पूर्वगामी संस्कृतियों की अपेक्षा अधिक विकसित थी। इस काल का मानव न केवल खाद्य पदार्थो को उपभोक्ता ही था अपितु वह उनका उत्पादक भी बना। वह कृषि कर्म से पूरी तरह परिचित हो चुका था और पशुपालन की भी शुरूआत कर चुका था। अब इस काल के मानव की जीवन घुमक्कड न रहा, वह एक स्थान पर निवास करने लगा। इसी युग में मानव द्वारा अग्नि के प्रयोग से परिचित होने के कारण उसका जीवन अधिक सुरक्षित हो गया।

ताम्रपाषण काल (Calcolithic Age)-

  • जिस समय मानव ने पत्थर के साथ-साथ ताम्बे के औजारों या उपकरणों का इस्तेमाल करना प्रारम्भ किया उसे ताम्र-पाषाण काल कहते है।
  • तकनीकी दृष्टि से यह सभ्यता सैन्धव सभ्यता से पहले और नवपाषाण काल की समाप्ति पर आया।
  • मानव जीवन में सर्वप्रथम जिस घातु का प्रयोग किया गया (लगभग 5000 ई0पू0) वह ताम्बा था। इस संस्कृति के लोग पत्थर के छोटे-छोटे औजारों व हथियारों को इस्तेमाल करते थे जिनमें फलक, फलकियों का नाम प्रमुख है।
  • अहाड जिसका पुराना नाम ताम्बवती है, के लोगों द्वारा पत्थर की बजाय ताम्बे की सपाट कुल्हाडियॉ, चूडियॉ और चादरें प्रयोग में लाई जाती थी।
  • इस संस्कृति के लोग भॉति-भॉति के मृदभाण्डों का प्रयोग करते थे जिनमें काले व लाल रंग के मृदभाण्डों का प्रयोग व्यापक रूप से होता था।
  • इस काल के लोग घोडे से परिचित थे कि नही, यह स्पष्ट नही है। लोग गो-मांस खाते थे।
  • वे मुख्य अनाजों में धान, गेहूॅ, बाजरा, मसूर, मूॅग, उडद, मटर आदि पैदा करते थे जो सर्वाधिक महाराष्ट्र के तट पर ‘नवदाटोली‘ में पाए गए है। यहॉ के लोग बेर और अलसी भी उगाते थे। दक्कन की काली मिट्टी में कपास होता था तथा निचले दक्कन में रागी, बाजरा आदि होता था।
  • इस काल के लोग वैसे तो पकी ईटों से अपरिचित थे लेकिन कभी-कभी इसके इस्तेमाल के प्रमाण मिलते है।
  • ताम्र पाषाणकालीन लोगों ने ही सबसे पहले चित्रित मृदभाण्डों का प्रयोग किया और इन्ही लोगों ने ही सबसे पहले प्रायद्वीपीय भारत में बडे-बडे गॉव बसाये।
  • इस संस्कृति से हल या फावडा का साक्ष्य नही मिला है, लोग अपनी खंतियों के सहारे केवल झूम खेती ही कर पाते थे। इस काल के लोग न तो नगरों में रहते थे और न ही लिखने की कला जानते थे। यह संस्कृति मुख्यतः ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित थी।

1 Comments

  1. गुमनामी के अँधेरे से निकाल एक पहचान बना दिया
    दुनिया के ग़म से मुझे अनजान बना दिया
    कृपा हुई आपकी मुझपर कुछ ऐसी
    मुझ जैसे नाकाबिल को इंसान बना दिया।
    *********************************
    मेरे जैसे शून्य को ‘शून्य’ का ज्ञान बताया
    हर अंक के साथ ‘शून्य’ जुड़ने का महत्व समझाया।

    मेरे विद्यार्थी जीवन को प्रभावित करने वाले आप हमारे अनोखे टीचर है, आपके द्वारा कही गयी हर एक बाते मुझे हर एक पहलू पर सोचने को मजबूर करती है। मेरे लिए मेरे आप ही एक टीचर हैं और आपसे ही मेरा
    विद्यार्थी जीवन रौशन है। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    Thank u guruji 🙏🙏🙏🙏🙏

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