window.location = "http://www.yoururl.com"; Prayer Society. // प्रार्थना समाज

Prayer Society. // प्रार्थना समाज



ब्रह्म समाज  के प्रभाव से 1867 में बंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। इसके संस्थापक डॉ. आत्माराम पांडुरंग थे। जी.आर. भण्डारकर और महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। इस समाज का उद्देश्य भी ब्रह्म समाज की तरह एकेश्वरवाद और समाज सुधार था सामाजिक क्षेत्र में इस संस्था के मुख्य उद्देश्य थे-

  1. विधवा विवाह का प्रचार करना,
  2. जाति-प्रथा को अस्वीकार करना,
  3. स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देना,
  4. बाल विवाह का बहिष्कार करना,
  5. विवेकपूर्ण उपासना करना,
  6. अन्य सामाजिक सुधार करना।
प्रार्थना समाज के अनुयायियों ने अपना प्रमुख ध्यान अंतर्जातीय विवाह,विधवा विवाह और महिलाओं व हरिजनों की शोचनीय दशा में सुधार करने की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने अनाथाश्रम,रात्रि पाठशालाएँ, विधवाश्रम, अछूतोद्धार जैसी अनेक उपयोगी संस्थाएँ स्थापित की। प्रार्थना समाज ने हिन्दू धर्म से अलग होकर कोई नवीन संप्रदाय स्थापित करने का प्रयास नहीं किया इसकी सफलता का श्रेय जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे को है। श्री रानाडे ने अपना संपूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढाने में लगा दिया। वे समाज सुधार के साथ राष्ट्रीय प्रगति के कट्टर हिमायती थी। महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है। इन्हें अपनी प्रचण्ड मेधाशक्ति के कारण महाराष्ट्र का सुकरात भी कहा जाता था। रानाडे ने ‘एक आस्तिक की धर्म में आस्था’ नाम 39 अनुच्छेदों वाली पुस्तक लिखी। रानाडे ने 1861 में  सार्वजनिक समाज की स्थापना की थी। रानाडे ने शुद्धि आंदोलन को प्रारंभ किया, जिसे अखिल भारतीय स्वरूप प्राप्त हुआ। कर्वे के सहयोग से इन्होने 1867 में विधवा आश्रम संघ की स्थापना की। उन्होंने 1884 में दकन एडूकेशन सोसाइटी तथा विधवा विवाह संघ की स्थापना की। उन्होंने अपने अथक प्रयासों द्वारा भारतीय सुधारों को एक नवीन दिशा प्रदान की। प्रार्थना समाज धार्मिक गतिविधियों की अपेक्षा सामाजिक क्षेत्र में अधिक कार्यशील रहा और पश्चिमी भारत में समाज सुधार संबंधी विभिन्न कार्यकलापों का केन्द्र रहा। प्रार्थना समाज ने महाराष्ट्र में समाज सुधार के लिए वही कार्य किया, जो ब्रह्म समाज ने बंगाल के लिए किया था।

नियम और सिद्धांत

  1. प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत निम्नलिखित हैं :
  2. ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का रचयिता है।
  3. ईश्वर की आराधना से ही इस संसार और दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है।
  4. ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा, उसमें अनन्य आस्था-प्रेम, श्रद्धा, और आस्था की भावनाओं सहित आध्यात्मिक रूप से उसकी प्रार्थना और उसका कीर्तन, ईश्वर को अच्छे लगनेवाले कार्यों को करना–यह ही ईश्वर की सच्ची आराधना है। मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करना, ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है।
  5. ईश्वर अवतार नहीं लेता और कोई भी एक पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो, अथवा जो पूर्णतः दोषरहित हो
प्रार्थना समाज संस्था के सहयोग से कालान्तर में दलित जाति मंडल, समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। पंजाब में इस समाज के प्रचार-प्रसार में दयाल सिंह के प्रन्यास ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। दक्षिण भारत में विश्वनाथ मुदलियर के नेतृत्व में ‘वेद समाज’ का नाम बदल कर ‘दक्षिण भारत ब्रह्मसमाज’ रखा गया। वेद समाज की स्थापना केशव चंद सेन ने 1864 ई0 में मद्रास में की थी

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