window.location = "http://www.yoururl.com"; Literature during Sultanate period. // सल्तनतकालीन साहित्य

Literature during Sultanate period. // सल्तनतकालीन साहित्य


कुछ इतिहासकारों ने सल्तनत काल को साहित्यिक दृष्टिकोण से बांझ बताया है। लेकिन, अधिकांश इतिहासकार इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि इस अवधि के दौरान साहित्य के क्षेत्र में एक मध्यम सफलता मिली। न केवल फारसी और संस्कृत में बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी साहित्य का निर्माण हुआ। इसलिए, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि इस अवधि के दौरान कोई साहित्यिक प्रगति नहीं हुई थी। लेकिन, जबकि फारसी साहित्य धार्मिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त था, संस्कृत साहित्य मौलिकता से पीड़ित था। इस प्रकार एकमात्र उल्लेखनीय उपलब्धि, क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य की शुरुआत थी जिसमें भक्ति आंदोलन के संतों ने भी भाग लिया।

फारसी साहित्य:

दिल्ली के सुल्तान फारसी साहित्य की प्रगति में रुचि रखते थे। अल-बरुनी, जो महमूद गज़नबी के भारत अभियान के दौरान में भारत आया था, एक महान विद्वान था। वह फारसी का अच्छे जानकार था और संस्कृत का भी अच्छा ज्ञाता था । उन्होंने भारत का एक ज्वलंत विवरण दिया, जो हमें ग्यारहवीं शताब्दी में भारत के मामलों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।

दिल्ली के अधिकांश सुल्तानों ने अपने दरबार में फारसी के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया जिससे फारसी साहित्य के विकास में मदद मिली। सुल्तान इल्तुतमिश के दरबार में ख्वाजा अबू नस्र, काव्यशास्त्रीय उपनाम नसीरी, अबू बकर बिन मुहम्मद रूहानी, ताज-उद-दीन दबीर और नूर-उद-दीन मुहम्मद अफीफी प्रसिद्ध विद्वान थे। नूर-उद-दीन ने लबाब-उल-अलबाब और जबाव आई-उल-हिकायत वा लावमी-उल-रिवायत लिखा था।

बद्र-उद-दीन मुहम्मद, मुहम्मद तुगलक के दरबार में फारसी के सबसे प्रसिद्ध कवि थे। इतिहासकार इसामी उनके समकालीन लेखक भी थे। सुल्तान फ़िरोज़ तुगलक ने अपनी आत्मकथा लिखी और इतिहासकारों जिआउद्दीन बरनी और शम्स-ए-सिराज आफ़िफ को संरक्षण प्रदान किया।

सुल्तान सिकंदर लोदी ने कई छंद लिखे और विभिन्न विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। रफी-उद-दीन शिराजी, शेख अब्दुल्ला, शेख अजीजुल्ला और शेख जमाल-उद-दीन को लोदी सुल्तानों से संरक्षण मिला। बड़ी संख्या में विद्वान प्रांतीय शासकों के दरबार में भी फले-फूले।

सल्तनत काल के इतिहासकारों में, अल-बरुनी, हसन निज़ामी, मिनहाज-उस- सिराज, जिआउद्दीन बरनी, शम्स-ए-सिराज आफिफ, याहया-बिन-अहमद, ख्वाजा, अबू मलिक इसामी को सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। इस दौरान फ़ारसी भाषा में कुछ संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद भी किया गया था।

संस्कृत साहित्य:

हिंदू शासकों, विशेषकर गुजरात, वारंगल और विजयनगर साम्राज्य के लोगों ने संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन दिया। सभी प्रकार के कार्य- कविता, गद्य, नाटक आदि संस्कृत में निर्मित किए गए थे और विभिन्न विद्वानों द्वारा दर्शन और धार्मिक टीकाओं पर अच्छे काम किए गए थे।

इस प्रकार, इस अवधि के दौरान संस्कृत में व्यापक साहित्य का उत्पादन किया गया था। अगस्त्य प्रतापरुद्र देव के दरबार में एक महान विद्वान थे, जिन्होंने प्रतापरुद्रदेव- यशोभूषण और कृष्ण-चारित्र लिखा था। विद्या चक्रवर्ती जो कि वीर बल्लाल तृतीय के दरबार में थीं, उन्होंने रुक्मणी-कल्याण और मदन को लिखा था जो विरुप्पक के दरबार में फले-फूले थे, विजयनगर के शासक ने नरकासुर-विजय लिखा था। वामन भट्ट बन इस काल के प्रसिद्ध विद्वान थे और उन्होंने नाटक, गद्य और कविता में पुस्तकें लिखीं। उनका एक प्रसिद्ध कार्य पार्वती-परिनया था।

विद्यापति एक और महान विद्वान थे जिन्होंने दुर्गाभक्ति-तरंगिणी के अलावा कई अन्य रचनाएँ लिखीं। एक अन्य विद्वान विद्यारण्य ने शक-विजवा लिखी। दिवाकर, कीर्तिराज और श्रीवारा संस्कृत के अन्य प्रसिद्ध विद्वान थे। जैन विद्वान नायकचंद्र ने हम्मीर-काव्य लिखा। राजा वीरुप्यक ने नारायणविलास और कृष्णदेवराय ने जाम्बवती-कल्याण के अलावा कुछ अन्य भी लिखे।

महान भक्ति संत रामानुज ने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा, पार्थसारथी ने कर्म-मीमांसा पर कई पुस्तकें लिखीं। जयदेव ने अपनी प्रसिद्ध रचना गीता-गोविंदा का निर्माण किया, जय सिंह सूरी ने हम्मीर-मद-मर्दाना लिखा और गंगाधर ने गंगादास प्रताप विलास का निर्माण किया। कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार कल्हण ने राजतरंगिणी लिखी थी, जिसे बाद में जोनाराजा और श्रीवारा ने पूरा किया ।

हिंदू कानून पर सबसे प्रसिद्ध कामों में से एक, मिताक्षरा विज्ञानेश्वर द्वारा लिखा गया था और महान खगोलशास्त्री, भास्कराचार्य भी इस अवधि के दौरान फले-फूले थे। इनके अलावा कई अन्य कृतियों का निर्माण विभिन्न विद्वानों द्वारा किया गया था, जो यह साबित करते हैं कि मुस्लिम-शासकों के संरक्षण के बिना भी, हिंदू संस्कृत साहित्य को समृद्ध करने के अपने प्रयासों में लगे रहे। हालांकि, इस अवधि का साहित्य ज्यादातर मौलिकता की कमी से ग्रस्त था।

इस काल की कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथों का विविरण निम्न है –

चचनामा

यह अरबी भाषा में लिपिबद्ध है। इससे मुहम्मद-बिन-कासिम से पहले तथा बाद के सिन्ध के इतिहास का ज्ञान होता है। इसका फारसी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। इसके लेखक अली अहमद हैं। यद्यपि इसके लेखक को लेकर आज भी विवाद है।

तहकिकात-ए-हिन्द या तारीख-ए-हिन्द (किताब-उल-हिन्द)

इस ग्रंथ का रचयिता अलबरुनी था। वह अरबी तथा फारसी भाषाओं का विद्वान था। यह ग्रंथ फारसी भाषा में लिपिबद्ध है। अलबरूनी विदेशी था तथा भारत में उसने महमूद गजनवी के यहां नौकरी कर ली। वह चिकित्साशास्त्र, धर्म, दर्शन तथा गणित में रूचि रखता था। वह हिन्दू धर्म तथा दर्शन का भी अच्छा ज्ञाता था।

अलबरूनी ने अपने सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘तारीख-उल-हिन्द’ में महमूद के भारत आक्रमण तथा उनके प्रभावों का वर्णन किया है। उसने हिन्दी धर्म, साहित्य तथा विज्ञान का भी सुन्दर वर्णन किया है। इस प्रकार इस ग्रंथ से महमूद के आक्रमणों तथा तत्कालीन सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। सुचारू रूप से इस ग्रंथ को अंग्रेजी में अनुवादित भी किया है।

ताजुल-मासिर

यह ग्रंथ हसन निजामी ने लिखा था। वह गौरी के साथ भारत आया था। इस ग्रंथ से 1192 ई. से 1218 ई. तक के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें विभिन्न स्थानों, मेलों व मनोरंजन का भी वर्णन है तथा सल्तनतकालीन सामाजिक व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलती है, जो अस्पष्ट है। यू.एन. डे के अनुसार, ‘‘यद्यपि पुस्तक की शैली अत्यधिक कलात्मक और अलंकृत है, पर इसमें वर्णित सामान्य तथ्य साधारणतः सत्य है।’’

तबकात-ए-नासिरी

इस ग्रंथ का रचयिता मिनहाज-उस-सिराज है। इसमें गोरी के आक्रमणों से लेकर 1260 ई. तक की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं का वर्णन है। लेखक का वर्णन पक्षपातपूर्ण रहा है। उसने गोरी एवं इल्तुमिश के वंशों का निष्पक्ष वर्णन नहीं किया है तथा बलबन की आंख मूंदकर प्रशंसा की गयी है। इसके बाद भी यह ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें घटनाएं क्रमबद्ध रूप से वर्णित की गयी है तथा इनकी तिथियां सत्य हैं। यह गुलाम वंश का इतिहास जानने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। फरिश्ता ने इसे ‘एक अति उच्चकोटि का ग्रंथ’ माना है। एलफिस्टन, स्टेवार्ट तथा मार्ले ने भी इसकी काफी प्रशंसा की है। रेवर्टी ने इसे अंग्रेजी में अनुवादित किया है।

अमीर खुसरों के ग्रंथ

अमीर खुसरो मध्यकालीन भारत के बहुत बड़े विद्वान थे। उनका पूरा नाम अबुल हसन यामिन उद्-दीन खुसरो था। वह छह सुल्तानों के दरबार में रहे थे। उसने बलबन से लेकर मुहम्मद तुगलक तक का इतिहास लिखा है। अमीर खुसरो ने वीणा तथा ईरानी तम्‍बूरा से सितार का निर्माण किया । अमीर खुसरव ने अपनी कविताओं में हिंदी शब्दों का प्रयोग किया  जो एक नवीनता थी।  उसने मंगोलो के विरुद्ध युद्ध में भाग भी लिया था जिसमे उसे बंदी बना लिया गया था। उसके ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य हैं, जो इस प्रकार हैं-
  1. नूह सिपहर – इस पुस्तक में कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के इतिहास का विवरण अंकित है।
  2. किरानुस्सादेन - अमीर खुसरो ने यह पुस्तक 1289 ई. में लिखी। इस पुस्तक में कैकुबाद तथा बुगरा खां की भेंट का वर्णन किया है। इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इससे दिल्ली नगर की स्थिति, मुख्य भवन, दरबार का ऐश्वर्य, मद्यपान गोष्ठियों, संगीत तथा नृत्य के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है तथा कैकुबाद व बुगरा खां के चरित्र पर भी प्रकाश पड़ता है।
  3. मिफता-उल-फुतूह - 1291 ई. में रचित यह पुस्तक अमीर खुसरो के तीसरे दीवान ‘गुर्रतुल कमाल’ का भाग है। यह साधारण शैली में लिखी गयी है। इसमें जलालुद्दीन की आरंभिक सफलताओं का वर्णन है।
  4. आशिकां - इस ग्रंथ में खुसरो ने अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खां तथा गुजरात नरेश कर्ण की पुत्री देवल रानी की प्रेमकथा तथा विवाह का वर्णन किया है। इसमें खिज्र खां की हत्या, अलाउद्दीन की बीमारी एवं मलिक काफूर की विजयों का भी वर्णन है। इसमें खुसरो ने यह भी बताया है कि वह मंगोलों द्वारा किस प्रकार बंदी बनाया गया।
  5. खजाइनुल फुतूह अथवा तारीख-ए-अलाई - खुसरो ने यह ग्रंथ 1311 ई. में लिखा। ‘‘तारीख-ए-अलाई एक गद्यात्मक रचना है, जिसे ‘खजाइनुल फुतूह’ भी कहा जाता है। इस ग्रंथ में कृत्रिमता काफी है, लेकिन जो ठोस जानकारी उपलब्ध है, उसे देखते हुए हम कृत्रिमता को क्षमा कर सकते हैं।’’इस ग्रंथ में खुसरो ने अलाउद्दीन की 15 वर्ष की विजयों एवं आर्थिक सुधारों का वर्णन किया है। लेखक के वर्णन में पक्षपात की भावना दिखाई देती है। उसने अलाउद्दीन के सिर्फ गुणों पर प्रकाश डाला है, दोषों पर नहीं। उसने अलाउद्दीन के राज्यारोहण का वर्णन किया है, किन्तु जलालुद्दीन के वध का कोई उल्लेख नहीं किया है। इसके बाद भी यह महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथ है तथा तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक दशा की जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  6. तुगलकनामा - यह खुसरो की अंतिम ऐतिहासिक कविता है। इसमें खुसरो खां के शासनकाल एवं पतन का तथा तुगलक वंश की स्थापना का वर्णन है।

जियाउद्दीन बरनी के ग्रंथ

तारीख-ए-फीरोजशाही

बरनी ने इस ग्रंथ में खिलजी तथा तुगलक वंश का आंखों देखा वर्णन लिखा है। इस ग्रंथ के बारे में उसने लिखा है, ‘‘यह एक ठोस रचना है, जिसमें अनेक गुण सम्मिलित हैं। जो इसे इतिहास समझकर पढ़ेगा, उसे राजाओं और के अलावा सामाजिक, आर्थिक एवं न्यायिक सुधारों का भी वर्णन किया है। इसमें कवियों, दार्शनिकों तथा संतों की लम्बी सूची दी गयी है। बरनी ने जलालुद्दीन तथा अलाउद्दीन के पतन के कारणों का भी वर्णन किया है। बरनी इतिहास की विकृत करने के विरूद्ध था। डॉ॰ ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, ‘‘मध्यकालीन इतिहासकारों में बरनी ही अकेला ऐसा व्यक्ति है, जो सत्य पर जोर देता है और चाटुकारिता तथा मिथ्या वर्णन से घृणा करता है।’’ इसके बाद भी इस ग्रंथ में तिथि सम्बन्धी दोष तथा धार्मिक पक्षपात देखने को मिलता है, किन्तु यह अमूल्य ऐतिहासिक कृति है। यू.एन. डे के अनुसार, ‘‘अपने दोषों के बाद भी यह पुस्तक तत्कालीन संस्थाओं के अध् ययन का मुख्य स्रोत है।’’

फतवा-ए-जहांदारी

बरनी ने उच्च वर्ग का मार्गदर्शन करने हेतु एवं फीरोज के समक्ष आदर्श उपस्थित करने हेतु इस ग्रंथ की रचना की। इस पुस्तक में शरीयत के अनुसार सरकार के कानूनी पक्ष का वर्णन है। इसमें मुस्लिम शासकों के लिए आदर्श राजनीतिक संहिता का वर्णन है। बरनी ने महमूद गजनवी को आदर्श मुस्लिम शासक माना है तथा मुसलमान सुल्तानों को उसका अनुकरण करने के लिए कहा है। बरनी कट्टर मुसलमान था, अतः उसने काफिरों का विनाश करने वाले को आदर्श मुस्लिम शासक माना है। उसने आदर्श शासन के लिए कुशल शासन प्रबंध भी आवश्यक बताया है। यदि बरनी के आदर्श शासक सम्बन्धी विचारों में से उसकी धर्मान्धता को निकाल दिया जाये, तो यह शासन प्रबंध में आदर्श सिद्ध हो सकते हैं।

वस्तुतः बरनी की कृतियां ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य हैं तथा ये बाद के इतिहासकारों के लिए प्रेरक रही हैं। इलियट एवं डाउसन ने ‘भारत का इतिहास’ (तृतीय खण्ड) में बरनी के कई उद्धरण दिये हैं तथा डॉ॰ रिजवी ने उसकी कृति ‘तारीख-ए-फीरोजशाही’ का हिन्दी अनुवाद किया है।

तारीख-ए-फीरोजशाही

इस ग्रंथ का रचयिता शम्ससिराज अफीफ था। वह दीवाने वजारत में कार्यरत था। वह सुल्तान के काफी नजदीक था। जहां बरनी की तारीख-ए-फीरोजशाही समाप्त होती है, वहीं अफीफ की तारीख-ए- फीरोजशाही शुरू होती है। इसमें उसे फीरोज तुगलक का 1357 ई. से 1388 ई. तक का इतिहास लिखा है। यह ग्रंथ 90 अध्यायों में बंटा हुआ है। इसमें फीरोज के चरित्र, अभियान, शासन प्रबन्ध, धार्मिक नीति तथा उसके दरबारियों का विस्तृत वर्णन है। यह ग्रंथ पक्षपातपूर्ण है, क्योंकि उसने फीरोज की अत्यधिक प्रशंसा की है। इसके बावजूद यह हमारी जानकारी का मुख्य स्रोत है। अफीफ के इस ग्रंथ से राजनीतिक घटनाओं के अलावा सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है। यह कृति बाद के इतिहासकारों के लिये प्रेरक रही है। डॉ॰ ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, ‘‘अफीस में बरनी जैसी न तो बौद्धिक उपलब्धि है और न ही इतिहासकारों की योग्यता, सूझबूझ तथा पैनी दृष्टि ही। अफीफ एक घटना को तिथिक्रम से लिखने वाला सामान्य इतिहासकार है, जिसने प्रशंसात्मक दृष्टि से अपने विचार व्यक्त किये हैं। वह अत्यन्त अतिश्योक्तिपूर्ण शैली में सुल्तान की प्रशंसा करता है। उसमें इतनी अतिश्योक्ति है कि फीरोज के सत्कार्यों के वर्णन को पढ़कर सर हेनरी इलियट ने उसकी तुलना अकबर से कर डाली है।’’

फुतुहात-ए-फीरोजशाही

इस ग्रंथ का रचयिता फीरोज तुगलक स्वयं था। इससे उसके शासन प्रबन्ध तथा धार्मिक नीति की जानकारी मिलती है।

रेहला अथवा अजाइब-अल-सफर

यह ग्रंथ मोरक्को के यात्री इब्नबतूता ने लिखा है। यह उसका यात्रा-वृत्तांत है, जो अरबी भाषा में रचित है। इस ग्रंथ में उसने मुहम्मद तुगलक के दरबार, उसके नियम, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, दास प्रथा एवं स्त्रियों की दशा का सुन्दर वर्णन किया है। उसका वर्णन पक्षपात की भावना से मुक्त है।

अन्य पुस्तकें –

  1. तारीख-ए-यामिनी : उतबी
  2. फूतूह-उस-सलातीन : इसामी
  3. मृगावती : कुतुबन
  4. चंदायन – मुल्ला दाउद
  5. सियासतनामा – निजाम-उल-मुल्क तुसी
  6. खैर-उल-मजलिस – हमीद कलन्दर
  7. तारीख-ए-सुबुक्तगीन – बैहाकी
  8. पृथ्वीराज रासो – चन्दरबाई
  9. तारीख-ए-मुबारकशाही – याहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी (सैयद वंश के शासक मुबारकशाह की प्रशंसा में)
  10. तिब्ब-ए-सिकन्दरी – मियॉं भूआ (सिकन्दर लोदी का प्रधानमंत्री) इस पुस्तक को संस्कृत ग्रन्थों से संग्रहित किया गया था जिसमें चिकित्सा/आयुर्विज्ञान का विवरण है।
  11. चचनामा – सिन्ध पर अरब आक्रमण का विस्तृत विवरण लेखक अज्ञात
  12. पद्मावत – मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित यह ग्रन्थ शेरशाह के शासनकाल में लिखा
    गया जिसमें चित्तौड की रानी पद्मावती की कहानी का विवरण है। अमीर खुसरों ने भी
    इसी कहानी का प्रतीकात्मक विवरण अपनी पुस्तक खजाईन-उल-फूतूह में दिया है।
  13. ‘रागदर्पण‘ नामक प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थ के लेखक भरत मुनि है । ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर (1486-1516) के संरक्षण में ‘‘मान-कुतुहल‘‘ नामक पुस्तक का संकलन किया गया था और इसका फारसी अनुवाद 1673 ई0 में ‘‘राग-दर्पण‘‘ नाम से फकिरूल्लाह द्वारा की गई जो उस समय के संगीत के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालता है। कहने के लिए यह अनुवाद फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में हुआ परन्तु तिथियों के अनुसार यह मैच नही करता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची –

  1. दिनेश चन्द्र भारद्वाज : मध्यकालीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति, 1967
  2. लईक अहमद : भारतीय मध्यकालीन संस्कृति, शारदा पुस्तक भवन, 1968
  3. राजीव कुमार श्रीवास्तव : मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति, युनिवर्सिटी पब्लिकेशन, 2011
  4. हरिश्चन्द्र वर्मा : मध्यकालीन भारत (दो खण्ड), हि0 मा0 का0 नि0, नई दिल्ली
  5. वी0डी0 महाजन : मध्यकालीन भारत, एस0 चन्द एण्ड कम्पनी लि0, नई दिल्ली

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