विषय-प्रवेश :
मुग़लकालीन स्थापत्य कला की विशेषताएँ –
बाबर काल के दौरान स्थापत्यकला –
हुमायूँ के काल में स्थापत्य कला –
शेरशाह के काल में स्थापत्य कला –
शेरशाह वास्तुकला का बहुत प्रेमी था। डा० कानूनगो के अनुसार वह प्रत्येक शहर में एक किला बनवाना चाहता था शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करने के बाद शेरगढ य़ा दिल्ली शेरशाही नामक नये नगर की नींव डाली। यद्यपि इसके अवशेषों के रूप में अब लाल दरवाजा और खूनी दरवाजा ही देखने को मिलता है।
1542ई. में शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अंदर किला–ए–कुहना नामक मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेर मंडल नामक एक अष्टभुजाकार तीन मंजिला मंडप का निर्माण करवाया।
किन्तु शेरशाह की सबसे महत्वपूर्ण कृति बिहार के सासाराम नामक स्थान पर झील के बीच मे एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित उसका मकबरा है जिसमें भारतीय एवं इस्लामी निर्माण कला का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है। यह मकबरा अपनी भव्यता, सुन्दरता और सुडौलता की दृष्टि से हिन्दू-मुस्लिम शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। कनिंघम ने इसे ताजमहल से भी सुन्दर बताया है।
अकबरकालीन स्थापत्य कला –
मुगलों की स्थापत्य कला सही अर्थ में अकबर के शासनकाल से प्रारम्भ होती है। अकबर के काल की सभी इमारतें । पत्थर की हैं और सजावट के लिए संगमरमर का प्रयोग किया गया है। अकबर द्वारा बनवाए गए भवन या इमारतें निम्न प्रकार हैं –
(1 )आगरे का लालकिला,
(ii) जहाँगीरी महल,
(iii) अकबरी महल, .
(iv) लाहौर का किला,
(v) इलाहाबाद का किला,
(vi) दीवान-ए-आम,
(vii) जोधाबाई का किला,
(viii) बीरबल का महल,
(ix) पंचमहल, यह भी सीकरी में है और हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का मिश्रण
(x) जामा मस्जिद, इसका निर्माण 1571 ई. में हुआ। यह चित्रकारी की से फतेहपुरी सीकरी की सर्वश्रेष्ठ इमारत है।
(xi) बुलन्द दरवाजा, इसे अकबर ने गुजरात की विजय के बाद बनवाया था। फतेहपुर सीकरी में स्थित है और मुगलकालीन दरवाजों में श्रेष्ठ है।
(xii) शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, यह 1571 ई. में बना था। इसकी कारीगरी देखने योग्य है।
(xiii) सिकन्दरा, इसका निर्माण कार्य अकबर ने प्रारम्भ करवाया था, परन्तु 1623 ई. में जहाँगीर के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ।
अकबर द्वारा बनवाए गए भवनों की इतिहासकारों ने बड़ी प्रशंसा की है। विन्सेंट स्मिथ ने फतेहपुर सीकरी की इमारतों को अभूतपूर्व व पत्थर पर अंकित कहानी है।
हुमांयूँ का मकबरा – अकबर के शासन कला की बनी प्रथम इमारत दिल्ली में स्थित हुमायूं का मकबरा है हुमायूँ के मकबरे का निर्माण 1565 ई. में हुमायूँ की विधवा तथा अकबर की सौतेली माँ बेगा बेगम(हाजी बेगम) ने फारसी वास्तुकार मीरक मिर्जा गयास की देख-रेख में करवाया था। इस मकबरे को ताजमहल का पूर्वगामी माना जाता है। यह मकबरा ज्यामितीय चतुर्भुज आकार के बने उद्यान के मध्य एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह चार-बाग पद्धति में बना प्रथम स्थापत्य स्मारक था। इस मकबरे की विशेषता-संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुंबद एवं द्विगुंबदीय प्रणाली थी। यह मुगलकालीन एकमात्र मकबरा है जिसमें मुगलवंश के सर्वाधिक लोग दफनाये गये हैं। हाजी बेगम हमीदाबानू बेगम, हुमायूँ की छोटी बेगम, दारा शिकोह, जहांदारशाह, फर्रुखशियर, रफीउरद्दरजात, रफीउद्दौला और आलमगीर द्वितीय। दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर और उसके तीन शहजादों को अंग्रेज लेफ्टीनेंट हड्सन ने 1857ई. में हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार किया था
अकबर कालीन फतेहपुर सीकरी में निर्मित इमारतें-
- अकबर ने 1570-71ई. में फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ पर अनेक भवनों का निर्माण करवाया। जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
- धार्मिक
- लौकिक
- फतेहपुर सीकरी के भवनों की मुख्य विशेषता- चापाकार एवं धारणिक शैलियों का समन्वय है।
दीवाने आम और दीवाने खास लौकिक प्रयोग के लिये बनाये गये थे।दीवाने आम एक आयताकार प्रांगण था। इसी में बादशाह का सिंहासन रखा रहता था।इसकी मुख्य विशेषता –खंभे पर निकली हुई बरामदे की छत थी।
दीवाने खास एक घनाकार आयोजन था। इसके निर्माण में बौद्ध एवं हिन्दू वास्तुकला की झलक मिलती है।
राजपूत रानी जोधाबाई का महल फतेहपुर सीकरी का सबसे बङा महल था । इस पर उत्कीर्ण अलंकरणों की प्रेरणा दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला से ली गई है। इस पर गुजराती शैली का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है।यह फतेहपुर सीकरी का सर्वोत्तम महल है।
पंचमहल या हवामहल- यह पिरामिड के आकार का पाँच मंजिला महल था।यह नालंदा के बौद्ध विहारों की प्रेरणा पर आधारित था।
जामा मस्जिद- फतेहपुर सीकरी की सबसे प्रभावोत्पादक इमारत थी। इसे फतेहपुर का गौरव कहा जाता था। संगमरमर की निर्मित इस मस्जिद को फर्ग्युसन ने पत्थर में रूमानी कथा के रूप में प्रशंसित किया है।
अपनी गुजरात विजय की स्मृति में अकबर ने इस मस्जिद (जामा मस्जिद) के दक्षिणी द्वार पर 1601 में 176 फीट ऊँचा एक बुलंद दरवाजा बनवाया । जिसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। यह ईरान से ली गयी अर्द्ध – गुंबदीय शैली में बना है।
- इसके अतिरिक्त अकबर ने अनेक भवनों का निर्माण कराया। जैसे- तुर्की सुल्ताना का महल, मरियम महल, बीरबल का महल। मरियम महल अकबर की माता हमीदा बानो का महल था। हमीदा बानो मरियम मकानी के नाम से प्रसिद्ध है। मरियम महल से मुग़ल चित्रकला के बारे में भी जानकारी मिलती है। तुर्की- सुल्ताना का महल इतना सुंदर था कि पर्सी ब्राउन ने उसे स्थापत्य कला का मोती कहा है। विसेंट अर्थर स्मिथ – फतेहपुर सीकरी नगर को पत्थरों में डाला गया रोमांस कहां। फर्ग्युसन ने ठीक ही कहा है कि- फतेहपुर सीकरी किसी महान व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है।
जहांगीरकालीन स्थापत्य कला –
जहाँगीर ने वास्तुकला की अपेक्षा चित्रकला को अधिक प्रश्रय दिया। फलस्वरूप उसके समय में बहुत ही कम इमारतों का निर्माण हुआ।
- आगरा के पास सिकंदरा में स्थित अकबर का मकबरा (जिसके निर्माण की योजना अकबर ने बनायी थी किन्तु निर्माण जहाँगीर ने 1613ई. में करवाया था। इस पाँच मंजिले पिरामिड के आकार के मकबरे की सबसे ऊपरी मंजिल पूर्णतः संगमरमर की बनी है। इस मकबरे की उल्लेखनीय विशेषता – इसका गुंबद -विहीन होना तथा बलुआ पत्थर से बना मकबरे का दरवाजा एवं संगमरमर की बनी चार सुंदर मीनारें हैं। जो इससे पूर्व देखने को नहीं मिलती है। यह पूरा मकबरा एक सुव्यवस्थित उद्यान के बीच विशाल चबूतरे पर स्थित है। स्वतंत्र रूप से मीनारों का पहला प्रयोग इसी मकबरे में किया गया है।
जहाँगीर के समय की सबसे उल्लेखनीय इमारत आगरा में बना ऐतमादुद्दौला का मकबरा है। यह मकबरा नूरजहाँ ने अपने पिता की याद में 1626 ई. में बनवाया था। यह आगरा में स्थित है यह चतुर्भुजाकार मकबरा बेदाग सफेद संगमरमर का बना ऐसा पहला मकबरा है, जिसमें बङे पैमाने पर संगमरमर का प्रयोग किया गाय है, तथा अलंकरण के लिए इस्लामिक भवनों में पहली बार-पित्रा -दुरा का प्रयोग मिलता है। पितरादूरा सफेद संगमरमर पर रंगीन की जड़ाई को कहते हैं
यद्यपि इस प्रणाली (पित्रा-दुरा) का प्रयोग इससे पूर्व ही उदयपुर (राजस्थान) के गोल मंडल में 1600ई. में किया जा चुका था।
जहाँगीर के शासन काल की अन्य इमारत लाहौर में रावी नदी के तट पर स्थित शहादरा में बना उसका मकबरा है। जिसके अधिकांश भाग का निर्माण जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने करवाया था। समाधि पर संगमरमर की पच्चीकारी की गई है।
जहाँगीर ने कश्मीर में प्रसिद्ध शालीमार बाग की स्थापना की और उसी ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे में लाल बलुआ पत्थऱ के स्थान पर संगमरमर लगवाया था।
शाहजहां के शासनकाल में स्थापत्य कला –
शाहजहाँ का काल मुगल वास्तुकला का स्वर्ण युग माना जाता है।इसके अतिरिक्त यह काल संगमरमर के प्रयोग का चरमोत्कर्ष काल माना जाता है। आर्शिवादी लाल श्रीवास्तव ने शाहजहाँ के शासन काल को वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्ण काल कहा। इस कला में संगमरमर जोधपुर के मकराना नामक स्थान से मिलता था,जो वृत्ताकार कटाई के लिए अधिक उपयुक्त होता था। उसके द्वारा बनवाई गई इमारतों में मौलिकता,सुंदरता और कोमलता है। इन भवनों में नक्काशी व चित्रकारी विशेष है।
आगरा की इमारतें – आगरे के किले में स्थित दीवाने-आम (1627ई.) संगमरमर से बनी शाहजहाँ के काल की पहली इमारत थी। इसके अतिरिक्त दीने-खास (1637ई.) तथा मोती मस्जिद (1654ई.) संगमरमर से निर्मित अन्य प्रसिद्ध इमारतें थी। इसके अतिरिक्त शीश महल, खास महल,आगरे के किले में बने नगीना मस्जिद एवं मुसम्मन बुर्ज आदि पत्थरों से निर्मित अन्य प्रमुख इमारते हैं। मोती मस्जिद अपनी पवित्रता एवं चारुता के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थी। यह आंगरे की सभी इमारतों में सबसे सुंदर और आकर्षक है। यह शुद्ध सफेद संगमरमर से निर्मित है।
शाहजहाँ के काल की एक अन्य इमारत आगरे की जामी मस्जिद थी जिसे- मस्जिदे-जहाँनामा कहा जाता था। इसे शाहजहाँ की बङी पुत्री जहाँआरा ने बनवाया था।
दिल्ली की इमारतें – 1638ई. में शाहजहाँ ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अपनी नयी राजधानी शाहजहाँनाबाद का निर्माण प्रारंभ किया जा 1648ई. में जाकर पूरा हुआ। और इसी समय मुगल राजधानी दिल्ली स्थानांतरित हुई।शाहजहाँ ने अपनी नवीन राजधानी(1648ई.) दिल्ली में एक चतुर्भुज आकार का किला बनवाया। जो लाल-बलुआ पत्थर से निर्मित होने के कारण लाल-किले के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका निर्माण कार्य 1648ई. में पूर्ण हुआ। 1 करोङ की लागत से बनने वाला लाल किला हमीद अहमद नामक शिल्पकार की देखरेख में संपन्न हुआ। इस किले के पश्चिमी द्वार का नाम- लाहौरी दरवाजा एवं दक्षिणी द्वार का नाम दिल्ली-दरवाजा है।
दिल्ली के किले में निर्मित दीवाने आाम की विशेषता थी इसके पीछे की दीवार में बना एक कोष्ठ -जहाँ विश्व प्रसिद्ध तख्ते–ताउस रखा जाता था। इसी में ही कोह-ए- नूर हीरा लगा हुआ था ! शाहजहाँ ने मयूर की शक्ल का सिंहासन बनवाया था। यह पलंग के आकार का था तथा सोने का बना था। आकार मे 3-1/2 गज लम्बा, 3/4 गज चौड़ा और 5 गज ऊँचा था। पूरा सिंहासन रत्नों से जगमगाता रहता था, परन्तु आज यह तख्त-ए-ताऊस नहीं है। कोष्ठ में बने कुछ चित्रों पर यूरोपीय शिल्पकला का प्रभाव दिखता है।इसके अतिरिक्त दीवाने-आम में स्थित रंगमहल में न्याय की तराजू में भी यूरोपीय प्रभाव दिखाई देता है। कोष्ठ में बने कुछ चित्रों का विषय फ्लोरेंस नाइटिंगेल से संबंधित है।
दिल्ली के लाल किले में स्थित दीवाने-खास की एक विशेषता है- इसके अंदर की छत चाँदी की बनी है, तथा उस पर सोने,संगमरमर तथा बहुमूल्य पत्थर की मिली-जुली सजावट की गयी है। यही पर यह उत्कीर्ण की गयी है की -“दुनिया में अगर कही सर्ग है तो यही है, यही है, यही है। ” शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले के पास जामा-मस्जिद (1648ई.) का निर्माण करवाया। इसमें शाहजहाँनी शैली में फूलदार अलंकरण की मेहराबें बनी है।
- ताजमहल – शाहजहाँ कालीन वास्तुकला का चरम दृष्टांत आगरे में यमुना नदी के तट पर निर्मित उसकी प्रिय पत्नी मुमताज महल का मकबरा है।(ताजमहल) जो 22 वर्षों में 9 करोङ की लागत से तैयार किया गया है।इसका मुख्य स्थापत्यकार-उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ ने नादिर-उल-असरार की उपाधि प्रदान की थी।और इसका प्रधान मिस्री या निर्माता उस्ताद ईसा था। इसका निर्माण 1631 ई0 में प्रारम्भ हुआ तथा यह करीब 22 वर्षों में 1653 में पूरा हुआ। सम्पूर्ण ताजमहल का केंद्र है मुमताज़ महल का मकबरा. यह बड़े बड़े, सफ़ेद संगमरमर का बना है. इस मकबरे के ऊपर बहुत बड़ा गुंबद इसकी शोभा बढ़ा रहा है. मुमताज़ का मकबरा लगभग 42 एकड़ में फैला हुआ है. यह चारों तरफ से बगीचे से घिरा हुआ है. इसके तीन ओर से दीवार बनाई गयी है. इस मकबरे की नींव वर्गाकार है. वर्गाकार के प्रत्येक किनारे 55 मीटर के हैं. मकबरे की चार मीनार इमारत का चौखट बनती हुई दिखाई देती है. मुमताज़ महल के मकबरे के शिखर ( सबसे ऊपर) पर सफ़ेद संगमरमर के गुंबद मौजूद है. यह गुंबद एक उल्टे कलश के जैसा शोभित है. गुंबद को सहारा देने के लिए इसके चारों ओर छोटे गुंबद के आकार की छतरियाँ बनाई गयी है. इनके आधार से मुमताज़ महल के मकबरे पर रोशनी पड़ती है. 1800 ई. में ताजमहल के शिखर गुंबद पर स्थित कलश सोने का बना हुआ था, परंतु अब इसे कांसे के द्वारा निर्मित किया गया है. इस कलश पर चंद्रमा की आकृति है, जिसकी ऊपरी आकृति स्वर्ग की ओर इशारा करती है. चंद्रमा की आकृति तथा कलश की नोंक मिल कर त्रिशूल का आकार बनाती है, यह त्रिशूल हिन्दू मान्यता के भगवान शिव का चिन्ह को दर्शाता है. ताजमहल के चारों कोनों पर 40 मीटर ऊंची चार मीनारें हैं. इन चारों मीनारों का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि यह चारों मीनार हल्की सी बाहर की तरफ झुकी हुई हैं. इनका बाहर की तरफ झुकाव के पीछे यह तर्क रखा गया कि, इमारत के गिरने की स्थिति में यह मीनारें बाहर की तरफ ही गिरे, जिससे की मुख्य ताजमहल की इमारत को कोई नुकसान न पहुंचे. जैसे ही आप ताजमहल के द्वार से ताजमहल में प्रवेश करते हैं, आप एक अलग ही शांति का अनुभव करते हैं. इसके द्वार पर बहुत ही सुंदर सुलेख है, “हे आत्मा ! तू ईश्वर के पास विश्राम कर, ईश्वर के पास शांति के साथ रहे तथा उसकी पूर्ण शांति तुझ पर बरसे.” इन लेख का श्रेय फारसी लिपिक अमानत खां को जाता है. ताजमहल के गुम्बद के निर्माण कर्ता इस्माइल खाँ रुमी थे। आजकल मानव जीवन तथ मानव निर्मित इमारतों पर पर अम्ल वर्षा का दुष्प्रभाव होने लगा है. ताजमहल भी इसके प्रभाव से अनछुआ नहीं रहा है. सामान्यतः पानी का ph मान 5.6 होता है. परंतु जब पानी में सल्फर तथा नाइट्रोजन के ओक्साइड्स (oxides) मिल जाते हैं तब पानी का ph मान 5.6 से कम होने लगता है. इस स्थिति में जब वर्षा होती है, तब वर्षा का जल इन ओक्साइड्स के साथ रासायनिक क्रिया करता है तथा पानी के ph मान को घटा कर, पानी में एसिड (अम्ल) की मात्रा बढ़ा देता है. जो फिर अम्ल वर्षा (Acid Rain) का रूप लेता है. अम्ल वर्षा के कारण सफ़ेद संगमरमर पीला पड़ने लगता है, जिससे ताजमहल अपना सौन्दर्य खोने लगा है।
- रोचक बातें –
- ताजमहल को बनाने में तिब्बत से नीला रत्न, श्रीलंका से पन्ना, पंजाब से जैस्पर और चीन से क्रिस्टल को मंगाया गया था।
- ताजमहल की वास्तु शैली में फ़ारसी, तुर्क,भारतीय, और इस्लामी वास्तु कला का मिश्रण है।
- 1000 हांथियों के जरिये ताजमहल के निर्माण सामग्री को लाया गया था।
- मुमताज़ की मृत्यु बुरहानपुर में हुई थी और वही ताप्ती नदी के किनारे दफ़न कर ताजमहल बनवाने का प्रस्ताव था लेकिन बुरहानपुर में जरूरत के अनुसार सफ़ेद संगमरमर नहीं पहुंच सकने के कारण बाद में इसे आगरा में बनाने का फैसला किया गया.
- ताजमहल के बारे में कहा जाता है कि इसे बनाने वाले सभी कारीगरों के हाथ या अंगूठा काट लिए गए थे जिससे नाराज़ होकर कारीगरों ने जान-बूझकर ताजमहल के गुम्बद में एक छेद छोड़ दिया था जिससे बरसात के समय आज भी पानी टपकता है।
- आपको जानकार यह हैरानी होगी की ताजमहल का आधार या नीव लकड़ी पर टिकी है।
- 1983 में ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया गया था और यह दुनिया के सात आश्चर्यजनकों में से एक है।
- ताजमहल में लगे फव्वारे किसी भी पाइप लाइन से नहीं जुड़े है बल्कि हर फव्वारे के नीचे एक ताम्बे का टैंक है जो सभी एक ही समय पर भरते है और दबाव बनने पर एक साथ सभी फव्वारे चल जाते है।
औरंगज़ेब के काल की इमारतें-
औरंगज़ेब को ललित कलाओं में कोई रुचि नहीं थी अपने पूर्वजों के विपरीत औरंगजेब ने, कलाओं के प्रति कोई प्रेम प्रदर्शित नहीं किया। फिर भी उसके काल में कुछ इमारतें बनी। औरंगजेब कालीन प्रमुख इमारतों में दिल्ली के लाल किले में स्थित मोती मस्जिद (पूर्ण संगमरमर), लाहौर की बादशाही मस्जिद(1674ई.) तथा रबिया बीबी का मकबरा प्रमुख है। औरंगजेब ने अपनी प्रिय पत्नी रबिया दुर्रानी की याद में 1678ई. में औरंगाबाद में एक मकबरा बनवाया जो बीबी का मकबरा नाम से प्रसिद्ध है। इसे दक्षिण का ताजमहल भी कहा जाता है। यह द्वितीय ताजमहल के नाम से प्रसिद्ध है।
मुग़लकालीन अन्य इमारतें –
जहांआरा का कब्र शेख निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के दक्षिण में जालीदार संगमरमर के परदों सहित एक बिना छत का घेरा है।इस कब्र के खोखले ऊपरी भाग पर घास रहती है। जहांआरा के मकबरे पर एक मर्मस्पर्शी लेख खुदा है जिसका अर्थ है- सिवाय हरी घास के मेरी कब्र को किसी भी चीज से न ढका जाए, क्योंकि केवल घास ही इस दीन की कब्र ढकने के लिए काफी है। जहांआरा के मकबरे के समान एक छोटे अहाते में मुहम्मद शाह का मकबरा है। इसी अहाते में अकबर द्वितीय का पुत्र मिर्जा जहांगीर भी दफनाया गया है।
ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी(कुतुब साहिब) की कब्र जो दिल्ली में स्थित है के पश्चिमी दीवार में औरंगजेब ने रंगीन टाइल जङवायी।इस कब्र के आस-पास का क्षेत्र कालांतर में कब्रिस्तान में परिवर्तित हो गया। कुतुब साहिब के अहाते में दफनाये गये प्रमुख लोगों में शामिल हैं- बहादुरशाह प्रथम (1707-12ई.), अकबर द्वितीय (1806-37ई.)। उल्लेखनीय बात यह है कि बहादुरशाह द्वितीय ने भी अपने लिये यहां कब्र बनवायी थी लेकिन रंगून निर्वासित हो जाने के कारण उनकी कब्र खाली ही पङी रही।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची –
- दिनेश चन्द्र भारद्वाज : मध्यकालीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति, 1967
- लईक अहमद : भारतीय मध्यकालीन संस्कृति, शारदा पुस्तक भवन, 1968
- राजीव कुमार श्रीवास्तव : मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति, युनिवर्सिटी पब्लिकेशन, 2011
- हरिश्चन्द्र वर्मा : मध्यकालीन भारत (दो खण्ड), हि0 मा0 का0 नि0, नई दिल्ली
- वी0डी0 महाजन : मध्यकालीन भारत, एस0 चन्द एण्ड कम्पनी लि0, नई दिल्ली
- पर्सी बाउन : इण्डियन आर्किटेक्चर, रीड बुक लिमिटेड
- आर्शीवादी लाल श्रीवास्तव : मध्यकालीन भारतीय, संस्कृति शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी