रेलवे के विकास का प्रभाव-
भारत में रेलवे के विकास के कई दूरगामी और तात्कालीक प्रभाव परिलक्षित हुये। इनमें से कुछ प्रभाव सकारात्मक रहे जबकि कुछ प्रभाव नकारात्मक रहे। संक्षेप में, रेलवे की स्थापना और उसके विकास के प्रभाव को हम निम्न शीर्षकों से स्पष्ट कर सकते है -
राजनीतिक प्रभाव : भारत में रेलवे की स्थापना और विकास के व्यापक राजनीतिक प्रभाव भी हुये। रेलवे के कारण राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय आधार पर सहयोग की भावना का अभिर्भाव हुआ। रेलवे ने ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध तथा भारतीय जनता के राजनीतिक आन्दोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेलवे के कारण ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपना कार्य कर सकी। विभिन्न शहरों, गॉंवों तथा प्रान्तों को पारस्परिक जोड़ दिये जाने से वहॉं के लोगों को आपस में मिलने तथा विचारों के आदान-प्रदान का अवसर मिला। साथ ही साथ आन्दोलन के लिए कार्यक्रम निर्धारित करने में रेलवे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजनीतिक दृष्टि से रेलवे के महत्व को देखते हुए प्रो0 ए0 आर0 देसाई ने लिखा है कि- ‘‘इसके बिना राष्ट्रीय आन्दोलन की कल्पना ही नही की जा सकती है। आवागमन के आधुनिक साधनों के अभाव में कोई राष्ट्रीय सम्मेलन ही संभव नही हुआ होता।
सामाजिक प्रभाव : रेलवे ने भारत को सामाजिक दृष्टि से भी प्रभावित किया। रेलवे ने अनेक सामाजिक कुप्रथाओं तथा रूढ़िवादित को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेल का इन्जन भारत में बहुत दूर-दूर तक गया और इस तरह उसने विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों के बीच की समाप्त कर भारत में सामाजिक एकता की स्थापना की। इसके अलावा रेलों में विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग के लोग एक साथ यात्रा करते थे जिसमें छूआछूत, ऊॅंच-नीच आदि की भावना कमजोर पड़ती चली गई। इस प्रकार रेलों ने सामाजिक बंधनों को लचीला बना दिया। प्रो0 ए0 आर0 देसाई के शब्दों में- ‘‘रेलवे के चलते लोगों का आवागमन बढ़ा तथा वे आपस में मिलने-जुलने लगे। लगातार सामाजिक आदान-प्रदान से सामाजिक पृथकता के पुराने भाव भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगे।‘‘ इस प्रकार स्पष्ट है कि रेलवे ने भारत को सामाजिक रुप से एकसूत्र में पिरोने का कार्य भी किया था।
आर्थिक प्रभाव : रेलों के कारण कृषि के विभिन्न पहलू विकसित हुए। अब कृषि केवल जीवन निर्वाह के लिए ही नहीं व्यापार के लिए भी की जाने लगी। खाद्य फसलों के साथ-साथ अन्य फसलें भी उगाई जाने लगीं और फसलों का विशिष्टीकरण होने लगा। उदाहरण के लिए बंगाल में जूट, पंजाब में गेहूँ, और बम्बई में कपास की खेती होने लगी और इन सामानों को रेलमार्ग के द्वारा जहाँ-तहाँ भेजकर अधिक आय प्राप्त की जाने लगी। रेलों ने कृषि की उपज के बाजार विस्तृत किये। व्यापारिक फसलों को अधिक-से-अधिक पैदा करने की प्रवृत्ति किसानों में जगी जिन्हें वे बाजारों में बेचकर नकद धन पाने लगे। इससे परिवहन व्यय में कमी आई और रेल के द्वारा कृषि उत्पादित सामानों को कम व्यय करके आसानी से भेजा जाना संभव हो गया। किसान देश के विभिन्न भागों की यात्रा करके कृषि से संबंधित कला और प्रयोग की जानकारी लेने लगे। संक्षेप में कृषि अब स्थानीय महत्ता की अपेक्षा राष्ट्रीय महत्त्व की हो गई और इसका श्रेय रेलों को ही प्राप्त है।
डॉ० जॉनसन ने लिखा है कि रेलों के विकास ने आन्तरिक एवं बाह्य दोनों व्यापारों को विकसित किया। चाय, पटसन, कोयला, लोहा, अनाज, कपास, खाल आदि वस्तुएँ रेलों के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर तेजी से भेजने में सहुलियत हुई और इन वस्तुओं का निर्यात भी किया जाना संभव हो गया। देश के अन्दर वस्तुओं की ढुलाई का काम रेलवे ने बहुत अधिक किया। इसी तरह रेलों ने बन्दरगाहों से देश के भीतरी भागों में माल पहुँचाना प्रारम्भ किया जिससे विदेशी व्यापार का विकास हुआ।
रेलों ने भारत में आधुनिक उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित किया। जैसे-जैसे रेल-पथ बन्दरगाहों से देश के भीतरी भागों तक विकसित होते गये वैसे-वैसे विभिन्न प्रकार के उद्योग भी उन भागों में स्थापित होते गये। चाय बगानों का विकास रेल यातायात के कारण अधिक हुआ। अंग्रेजों ने इन बगानों के विकास में अपनी पूँजी लगाई। इसी प्रकार रेल परिवहन के कारण ही बम्बई में मिलों ने सूती वस्त्र को और बंगाल ने जूट उद्योग को विकसित किया। रेलों के द्वारा कच्चा माल, कोयला, तेल आदि चीजों को औद्योगिक क्षेत्रों में पहुँचाया जाने लगा और औद्योगिक कारखानों द्वारा उत्पादित सामानों वो देश में वितरित किया जाने लगा। वन उद्योग, खनिज उद्योग, इंजिनियरिंग उद्योग आदि के विकास में रेलों ने अहम भूमिका निभाई। श्रमिकों की गतिशीलता बढ़ाने में भी रेलों ने काम किया। इस तरह भारत में आधुनिक उद्योगों के विकास का द्वार रेलों ने खोला।
अन्य प्रभाव :
रेलवे के विकास ने भारत को एक राष्ट्र के रुप में परिणित कर दिया। फलस्वरुप भौगोलिक गतिशिलता को बढ़ाने में सहायता मिली। इसी के कारण ही तीर्थ स्थानों, धार्मिक स्थलों तथा पर्वो का महत्व भी बढ़ा। इसके अलावा रेलवे ने शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई। रेलवे के विकास के कारण ही भारतीय ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग दूरस्थ स्थानों पर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। रेलवे की मदद से किसी एक क्षेत्र की वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों को राष्ट्रीय सम्पिŸा बनाया जा सकता था। वैज्ञानिक, कलाकार, समाजशास्त्री, दार्शनिक तथा अन्य बुद्धिजीवी अपना ज्ञान भण्ड़ार तथा कला का आनन्द अब जन-जन तक पहुॅंचा सकते थे क्योंकि अब वे आसानी के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते थे।
रेलवे का नकारात्मक प्रभाव : रेलों ने भारत पर कुछ बुरे और नकारात्मक प्रभाव भी छोड़े। यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी हुई, लेकिन उस पर रेलों के कारण बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा और भारत को कई तरह की हानियाँ उठानी पड़ीं। रेल ने भारतीय उद्योगों के विनाश में अपना हाथ बटाया। उत्पादित देशी माल को रेलों ने देश के भीतरी भाग तक पहुँचाया, वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजारों के विकास में सहायता की और इस प्रकार स्वदेशी उद्योग ठप पड़ने लगे। इसके अतिरिक्त रेलमार्गों के विकास के कारण भारत में विदेशों से सस्ती वस्तुएँ आने लगीं। अतः ऐसी वस्तुओं की प्रतियोगिता में भारत के घरेलू उद्योगों से निर्मित वस्तुएँ महँगी होने के कारण टिक नहीं सकीं। अतः कुटीर एवं स्वदेशी उद्योग पतनोन्मुख हो गये।
रेलों ने कृषक और कृषि दोनों पर अपने बुरे प्रभाव डाले। कृषि का वाणिज्यीकरण होने से कपास, पटसन, चाय आदि की खेती बढ़ गई जिसका रेलों के माध्यम से व्यापार होने लगा जबकि दूसरी तरफ खाद्यान्न की कमी हो गई जिसके फलस्वरूप भारत में दुर्भिक्ष पड़े। शिल्प कला के विनाश से कृषि पर जनसंख्या का भार बढ़ गया। भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई और कृषि के वाणिज्यीकरण ने कृषकों को ऋणग्रस्त बना दिया। इस प्रकार किसानों की आत्मनिर्भरता स्वतः समाप्त होने लगी।
स्पष्ट है कि औपनिवेशिक सरकार की रेल नीति के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर भारी भार पड गया। रेल निर्माण की पुरानी और नई गारंटी पद्धतियों के कारण भारतीय जनता का शोषण किया गया। रेल निर्माण का खर्च जनता पर करों का भार लाद कर जुटाया गया। इसके अतिरिक्त रेलों के द्वारा कच्चे माल को ढोकर इंग्लैंड ले जाया गया। खाद्यान्नों का निर्यात करके देश को दरिद्र बनाया गया। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सरकार की इस रेल व्यवस्था ने देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया। ए० आर० देसाई ने लिखा है कि ब्रिटिश सरकार ने मूलतः अपने लाभ के लिए भारत में रेल का विकास किया था, इसलिए भारत की हर प्रकार की व्यवस्था पर तत्काल इसका कुप्रभाव पड़ना ही था।
आधुनिक भारत के निर्माण में रेलों की भूमिका :
यह सही है कि भारत में रेलवे तथा परिवहन के अन्य साधनों का विकास ब्रिटिश हित की दृष्टि से किया गया और यह एकांगी रहा, फिर भी आधुनिक भारत के निर्माण में इसकी प्रगतिशील भूमिका से हम इनकार नही कर सकते।
भारत के प्रान्तों में समाज के आर्थिक आधार को नष्ट करने में रेलवे ने ऐतिहासिक दृष्टि से प्रगतिशील नई आर्थिक शक्तियों की मदद की। उन्होंने आधुनिक समाज के औद्योगिक माल को भारत में पहुँचाने में मदद की और इस तरह गाँवों की आर्थिक आत्मनिर्भरता को समाप्त किया। उन्होंने भारत को एक आर्थिक इकाई बनाने में मदद की और विश्व की मण्डी से भारत का संबंध जोड़ा। रेलवे के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था सम्भव हो सकी, जो भारतीय राष्ट्र का मौलिक आधार है। भारत में उद्योगीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने में रेलवे की भूमिका अहम थी। रेलवे से भारत के व्यापारियों, जमीन्दारों और बुद्धिजीवियों को कुछ आर्थिक लाभ हुए जिसके फलस्वरूप भारत में स्वतन्त्र उद्योग का जन्म सम्भव हो सका। आधुनिक भारत के निर्माण में इन उद्योगों की भूमिका रही है। इसके चलते औद्योगिक सर्वहारा वर्ग भी पैदा हुआ और राष्ट्रीय आंदोलन पर निरंतर दबाव बढ़ता गया। कार्ल मार्क्स ने ठीक ही लिखा है कि रेलवे भारत में सही रूप में आधुनिक उद्योग का अग्रदूत है।
रेलवे ने भारतीय कृषि में काफी क्रांति ला दी। इसके कारण ही कृषि के उत्पादनों की बिक्री सम्भव हो गई। भारत का कृषि तंत्र राष्ट्रीय और विश्व के अर्थतंत्र का अंगभूत अंश बन गया। वाणिज्यीकरण से नुकसान भी हुआ पर भारत के पास धन भी जमा होने लगा जिससे जरूरत की चीजें खरीदी जाने लगीं और जीवन स्तर ऊँचा उठने लगा और धन ने शिक्षा के विकास में भी मदद की। अकाल पर रेलवे ने नियंत्रण डालकर भारतीयों को चिन्तन करने का, अपनी स्थिति के बारे में सोचने-समझने का अवसर दिया। देसाई के शब्दों में- “अकाल के दिनों में तो रेलवे वरदान ही सिद्ध हुआ। देश के दूसरे भागों की फसल का अधिशेष दुर्भिक्ष वाले इलाकों में तेजी से लाया जा सका और इस तरह इलाके के लोगों की तकलीफों को दूर किया जा सका।”
रेलवे का शक्तिशाली प्रभाव सामाजिक जीवन पर पड़ा। रेलवे ने सामाजिक स्तर पर भारतीय जनता को एकबद्ध किया, लोगों को एक दूसरे के निकट लाया और इस प्रकार पुराने संकीर्ण विचार और दृष्टिकोण निरन्तर समाप्त होते गए। इसके चलते व्यापक राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय आधार पर सहयोग का रास्ता प्रशस्त हुआ। देसाई लिखते हैं कि- “भोजन-पान, शारीरिक संबंध व्यवहार, और ऐसी ही अन्य बातों के विषय में जो रूढ़िवादी या सामाजिक आदतें थीं, उनको समाप्त करने में और आधुनिक भारत के निर्माण का रास्ता प्रशस्त करने में रेलवे ने बहुत बड़ा योगदान दिया। रेलवे ने भारतीय जनता के राजनीतिक आन्दोलन को संगठित करने का काम किया। आधुनिक रेलवे, बस, डाक तथा तार के बिना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, लिबरल फेडरेशन, नेशनल डेमोक्रेट्स, यूथ लीग, ऑल इण्डिया विमेन्स कॉफ्रेन्स, अखिल भारतीय छात्र संगठन, ऑल इण्डिया किसान सभा, जैसी संस्थाओं का न तो जन्म ही होता और न वे राष्ट्रीय स्तर पर अपना कार्य ही कर पाते। विभिन्न शहरों, गाँवों, जिलों, प्रान्तों के लोगों को रेलवे के द्वारा आपस में मिलने का, विचारों के आदान-प्रदान का और आन्दोलन के लिए कार्यक्रम निश्चित करने का मौका मिला और इसके बिना राष्ट्रीय आन्दोलन की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
रेलवे के द्वारा लोगों के बीच प्रगतिशील सामाजिक और वैज्ञानिक विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ। इनके चलते देश में सर्वत्र वैज्ञानिक और प्रगतिशील साहित्य का वितरण होने लगा। वैज्ञानिक, कलाकार, सामाजशास्त्री, दार्शनिक आदि अपना ज्ञान भण्डार और कलाजन्य आनन्द लोगों तक पहुंचाने लगे। आधुनिक भारत के निर्माण के सभी द्वार रेलवे ने खोल दिये थे। भारत को अब नई सभ्यता और रोशनी में भ्रमण करना था।
मूल्यांकन -
इस प्रकार रेलवे के विकास से हुए आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों को भुलाया नहीं जा सकता है। यह सत्य है कि कम्पनी ने रेलवे की स्थापना अपने हितों को ध्यान में रखकर ही किया था तथा उसका मूल उद्देश्य भारत और भारतीयों का आर्थिक शोषण ही करना था। तात्कालीन राष्ट्रीय लेखकों दादाभाई नौरोजी, जी0बी0 जोशी, ड़ी0ई0वाचा तथा आर0सी0दŸा आदि ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि तात्कालीन रेल विकास वरदान के स्थान पर अभिशाप ही प्रमाणित हुआ है क्योंकि इसने कुटीर उद्योग-धन्धों को विनष्ट कर दिया तथा ब्रिटेन में निर्मित सामानों से भारत का कोना-कोना भर गया। यहॉं यह उल्लेखनीय है कि इसी से ब्रिटेन के कोयला एवं इस्पात उद्योग का विकास हुआ।
लेकिन रेलवे निर्माण के साथ जुड़े हुए दुःखद परिणामों के वावजूद यह भारत में अंग्रेजों का सबसे स्मरणीय प्रयास था। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारतीय जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नही था जो इसके प्रभाव से अछूता रहा हो। रेलवे के प्रभाव की चर्चा करते हुए चोपड़ा पुरी व दास ने लिखा है कि- ‘‘इससे एक नये आद्यौगिक युग की शुरूआत हुई, अर्थव्यवस्था का गतिरोध समाप्त हुआ तथा जनता अब अन्य स्थानों को जाने लगी तथा परिवहन के तरीकों व व्यापार-वाणिज्य के तौर-तरीकों में क्रान्ति आई।‘‘
आर्थिक उद्देश्यों के अतिरिक्त रेलवे के विकास ने स्वयं को सामाजिक उदारता, राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रीय भावना का सक्षम माध्यम प्रमाणित किया। यही कारण है कि रेलों को राष्ट्र की जीवन रेखा की संज्ञा दी गई है।